'मर जाना कबूल पर BJP के साथ जाना नहीं' इस बयान के 12 महीने के भीतर नीतीश बीजेपी के साथ; जानिए नीतीश बाबू ने कब-कैसे मारी पलटी

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BP Shrivastava
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'मर जाना कबूल पर BJP के साथ जाना नहीं' इस बयान के 12 महीने के भीतर नीतीश बीजेपी के साथ; जानिए नीतीश बाबू ने कब-कैसे मारी पलटी

BHOPAL.'अब मर जाना कबूल है, लेकिन बीजेपी के साथ जाना कभी कबूल नहीं है।' यह बयान 30 जनवरी 2023 को पटना के गांधी घाट पर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देने पहुंचे नीतीश कुमार ने दिया था। इस बयान को पूरा 1 साल होने में अभी 2 दिन बाकी हैं और नीतीश बाबू पलटी मारकर वापस बीजेपी के साथ चले गए हैं।

यहा बता दें ये नीतीश कुमार के सियासी जीवन की छठी पलटी है। कभी कथित जंगलराज के खिलाफ नई पार्टी बनाई, कभी अंतरात्मा की आवाज पर राजद (RJD) से नाता तोड़ा, कभी बीजेपी के साथ न जाने की कसमें खाईं। जानिए बारी-बारी से सभी पलटी के किस्से…

पहली पलटी: लालू चमकने लगे तो नीतीश ने बदला रास्ता

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साल 1994 की बात है। नीतीश कुमार ने जनता दल का साथ छोड़ दिया और समाजवादी आंदोलन के प्रमुख नेता जॉर्ज फर्नाडिस के साथ मिलकर समता पार्टी बनाई। उन दिनों बिहार में जनता दल की धूम थी। लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री होने के साथ सबसे लोकप्रिय नेता थे। नीतीश कुमार भी जनता दल में थे, लेकिन उनकी अपनी महत्वाकांक्षा थी।

इस दौरान नीतीश कुमार ने जनता दल से अलग होने के पीछे की वजह पार्टी में फैले जातिवाद और लालू यादव के जंगलराज को बताया था।

परिणाम: 1996 के आम चुनाव में समता पार्टी ने बीजेपी से गठबंधन कर लिया। साल 2003 में नीतीश कुमार की समता पार्टी और शरद यादव की जनता दल का विलय करके नई पार्टी जनता दल ( यूनाइटेड ) का गठन किया गया। जेडीयू और बीजेपी का गठबंधन भी बना रहा। इस दौरान नीतीश 3 बार मुख्यमंत्री बने।

दूसरी पलटी: मोदी का कद बढ़ा तो बीजेपी से तोड़ा नाता

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साल 2013 में जैसे ही बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री कैंडिडेट घोषित किया और पार्टी में मोदी का कद बढ़ा तो नीतीश कुमार ने एनडीए से किनारा कर लिया। नीतीश कुमार ने बीजेपी से 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ लिया और 2014 लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का फैसला किया। इस दौरान नीतीश कुमार ने कहा था- बीजेपी ने हमें गठबंधन तोड़ने के लिए मजबूर किया। मिट्टी में मिल जाएंगे पर बीजेपी के साथ वापस नहीं जाएंगे।

2010 में NDA के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी भी पहुंचे। अगले दिन बीजेपी ने नीतीश और मोदी की तस्वीर एक साथ छपवाई, जिसमें बाढ़ राहत के लिए 5 करोड़ रुपए देने पर धन्यवाद दिया गया था।

 नीतीश कुमार ने इस विज्ञापन को बिहार की जनता का अपमान बताया और बीजेपी नेताओं के साथ डिनर में भी शामिल नहीं हुए। यहां से नीतीश और मोदी के बीच दूसरियां बढ़ी।

इसके बाद 2013 में मोदी के पीएम पद के उम्मीदवार बने तो नीतीश ने गठबंधन तोड़ लिया। नीतीश कुमार अपनी सेकुलर छवि के साथ समझौता नहीं करना चाहते थे। जानकार मानते हैं कि वो खुद को भी प्रधानमंत्री पद का दावेदार समझते थे।

परिणाम: 2014 का लोकसभा चुनाव जेडीयू ने अकेले लड़ा और महज 2 सीटों पर सिमट गई। लोकसभा चुनाव में हार के बाद नीतीश कुमार ने सीएम पद से भी इस्तीफा दे दिया। उन्हीं की पार्टी के जीतन राम मांझी बिहार के नए सीएम बने।

तीसरी पलटी: जंगलराज भूलाया वापस लालू के साथ लौटे

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साल 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव से पहले लालू प्रसाद यादव के साथ हाथ मिलाया। जदयू, राजद और कांग्रेस ने महागठबंधन बनाकर बिहार में चुनाव लड़ा। इसकी मूल वजह-2014 लोकसभा चुनाव में जेडीयू 2 सीटों पर सिमट गई थी। पीएम मोदी प्रधानमंत्री बन चुके थे। NDA से संबंध खराब थे, इसलिए वापसी का विकल्प नहीं था। नीतीश कुमार समझ चुके थे कि वो अकेले चुनाव नहीं जीत सकते, लेकिन राजद के साथ मिलकर बीजेपी को हरा जरूर सकते हैं।

परिणाम: RJD ने 80 और JDU नं 71 सीटों पर जीत हासिल की। नीतीश 5वीं बार बिहार के सीएम और तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम बने।

चौथी पलटी: अंतरात्मा की आवाज पर 2017 में महागठबंधन से किनारा

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साल 2017 में नीतीश कुमाकरा ने महागठबंधन से किनारा किया और सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। रातोंरात बीजेपी से हाथ मिला लिया और वापस फिर मुख्यमंत्री बन गए।

इस बार गठबंधन तोड़ने के बाद बोले नीतीश कुमार- इस सरकार को चलाने का कोई मतलब नहीं था। यह मेरे स्वभाव और मेरे काम करने के तरीके के खिलाफ है। लालू प्रसाद यादव ने कहा था- नीतीश कुमार बिहार की राजनीति के पलटू राम हैं। उन्होंने फिर साबित कर दिया है कि वह सत्ता के लिए कुछ भी कर सकते हैं।

2017 में नीतीश ने मोदी सरकार के नोटबंदी और GST जैसे फैसलों का समर्थन किया। इस बीच डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने लगने शुरू हुए। सरकार में सीएम और डिप्टी सीएम में दूसरियां बढ़ी तो नीतीश के मोदी के साथ रिश्ते बहाल हो गए थे। उन्हें लगा बीजेपी के साथ उनको ज्यादा राजनीतिक फायदा मिल सकता है।

परिणाम: 2019 लोकसभा चुनाव में जदयू ने 16 सीटों पर जीत हासिल की,जबकि बीजेपी को 17 सीटें मिलीं। हालांकि 2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू केवल 43 सीटों पर ही सिमट गई। जदयू और बीजेपी ने मिलकर सरकार बनाई। सीएम फिर भी नीतीश कुमार ही बने।

पांचवीं पलटी: 2022 में बीजेपी को धोखेबाज कहकर लालू को फूल थमाया

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साल 2022 में NDA गठबंधन से अलग हुए और RJD के साथ महागठबंधन में शामिल हुए। और 8वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।

यह परिस्थितियां इसलिए निर्मित हुई क्योंकि राजद को लोकसभा चुनाव 2019 में 16 सीटें जीतने के बाद उन्हें मोदी मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया। 2020 विधानसभा चुनाव में 2015 के मुकाबले 28 सीटों को नुकसान हुआ। इसके लिए नीतीश ने बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया।

विधानसभा चुनाव 2020 में कम सीटें मिलने से नीतीश निराश थे। उन्हें आशंका हुई कि बीजेपी उनकी पार्टी को डेमेज कर रही है।

फिर नीतीश कुमार बोले- बीजेपी ने हमें खत्म करने की साजिश रची है। बीजेपी ने हमें अपमानित किया और लगतातार पार्टी को कमजोर करने की कोशिश की। उन्होंने पार्टी के विधायककों को तोड़ने की कोशिश की, इसलिए हमने यह निर्णय लिया है।

परिणाम: कम सीटें होने के बावजूद नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया गया। तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम बने। विपक्ष को एकजुट करके INDIA गठबंधन बनाने में बड़ी भूमिका निभाई।

छठी पलटी: 28 जनवरी 2024 में फिर बीजेपी से गठबंधन

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28 जनवरी 2024 को नीतीश कुमार ने फिर महागठबंधन यानी लालू-कांग्रेस से गठबंधन तोड़ दिया है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले नीतीश ने NDA में वापसी की है।

हालांकि 13 दिसंबर को नीतीश कुमार ने कहा था कि 2025 किा विधानसभा चुनाव तेजस्वी के नेतृत्व में लड़ेंगे। माना जा रहा था कि उन पर तेजस्वी के लिए सीएम पद को छोड़ने का दबाव बढ़ता जा रहा था। राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के बाद बीजेपी के पक्ष में हवा बनती दिख रही है। 2024 लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार नहीं चाहते थे कि उनके सांसदों की संख्या घटे। अब देखना होगा कि बीजेपी उन्हें बिहार में कितनी लोकसभा सीटों पर मैदान में उतरने देती है।

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