NEW DELHI. 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर सभी दलों ने कमर कस ली है। इसी के साथ प्रधानमंत्री प्रत्याशी को लेकर नाम आगे आने लगे हैं। विपक्षी गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस (I.N.D.I.A.) की मुंबई में 31 अगस्त और 1 सितंबर को बैठक होनी है। इसमें न्यूनतम साझा कार्यक्रम और गठबंधन के संयोजक को लेकर मंथन होने की संभावना जताई जा रही है।
विपक्ष में कौन बनेगा प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी?
इस बैठक से पहले विपक्षी एकजुटता की कवायद के अगुवा नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली बिहार सरकार में मंत्री जमा खान ने प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को लेकर बड़ा बयान दिया है। जमा खान ने कहा है कि देश की जनता नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहती है। इस बयान के बाद बहस छिड़ गई है कि विपक्ष में कौन बनेगा प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी। इनमें नीतीश के साथ, राहुल गांधी, ममता बनर्जी, शरद पवार, के. चंद्रशेखर राव, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल जैसे बड़े नेताओं के नाम सामने आने लगे हैं। दबी जुबान से ये सभी अपना जोर लगा रहे हैं।
नीतीश इनकार कर रहे, जेडीयू नाम आगे बढ़ा रही..
कई मौकों पर नीतीश खुद भी साफ कह चुके हैं कि वे प्रधानमंत्री पद की रेस में नहीं हैं। एक ओर नीतीश पीएम पद के लिए अपनी दावेदारी से इनकार करते रहे हैं, वहीं दूसरी ओर जेडीयू के नेता गाहे-बगाहे उनका नाम आगे बढ़ा रहे हैं। हाल ही में नीतीश दिल्ली आए थे। उन्होंने इस दौरान किसी भी विपक्षी नेता से मेल-मिलाप नहीं किया। विपक्षी नेताओं से उनकी दूरी और अब पीएम पद के लिए उनके ही मंत्री का बयान.. ये सब महज संयोग है या जेडीयू की दबाव की रणनीति?, हालांकि अब तक नीतीश की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।
बैठक से पहले मंत्री का बयान.. क्या हैं मायने?
बिहार के मंत्री जमा खान के बयान के कई मायने निकाले जा रहे हैं। 31 अगस्त और 31 सितंबर को विपक्षी गठबंधन की मुंबई में बैठक होनी है। इसमें विपक्षी गठबंधन के संयोजक को लेकर भी चर्चा होनी है। विपक्ष के नजरिए से अहम बैठक के पहले जमा खान के बयान से विपक्षी गठबंधन में प्रधानमंत्री पद के लिए नई रेस शुरू हो सकती है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, मंत्री के इस बयान को संयोजक पद के लिए प्रेशर टैक्टिस (दबाव की रणनीति) बताया जा रहा है। ऐसे में अब ये मामला भी बैठक में उठने की पूरी संभावना है।
नीतीश कितने मजबूत, कौन-कौन करेगा 'पीएम पद' का समर्थन?
गठबंधन में नीतीश की सियासी ताकत का गुणा-भाग होने लगा है। बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं। नीतीश की पार्टी जेडीयू का राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ पहले से ही गठबंधन है। लेफ्ट पार्टियां भी नीतीश सरकार का समर्थन कर रही हैं और विपक्षी गठबंधन का हिस्सा भी हैं। 2019 में जेडीयू ने 17 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। इसमें उसे 16 सीटों पर जीत मिली थी। विपक्षी गठबंधन में भी जेडीयू की कोशिश यही है कि कि कम से कम 2019 चुनाव की ही तरह 17 सीटें उसके हिस्से आएं। अगर जेडीयू अपने कोटे की सभी सीटें जीत लेती है तो भी प्रधानमंत्री पद के लिए नीतीश की दावेदारी संख्याबल के लिहाज से मजबूत हो सकती है।
...तो क्या हो सकती है वजह?
संख्याबल का गणित अपने पक्ष में नहीं होगा, ये जानते हुए भी जेडीयू के नेता नीतीश का नाम बार-बार आगे बढ़ा रहे हैं तो इसके पीछे वजह क्या हो सकती है। विपरीत हालात में जेडीयू को नीतीश के पीछे उनकी बेदाग छवि, बिहार जैसे राज्य में सरकार चलाने का अनुभव वजह बताया जा रहा है। नीतीश को गठबंधन सरकार चलाने का लंबा अनुभव है। अब वे गठबंधन का मार्गदर्शन भी कर रहे हैं।
अब सवाल- क्या नीतीश के नाम पर मुहर लगाएगी कांग्रेस?
राहुल गांधी की संसद सदस्यता बहाल होने के बाद कांग्रेस साफ कर चुकी है कि हमारा चेहरा राहुल गांधी ही हैं। ऐसे में क्या कांग्रेस नीतीश कुमार की प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदारी पर सहमत होगी? बेंगलुरु की बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने स्पष्ट किया था कि हमारा लक्ष्य सत्ता पाना नहीं, हमें प्रधानमंत्री पद का लालच भी नहीं है। अन्य कांग्रेस के नेता भी ये साफ कहते रहे हैं कि राहुल गांधी ही हमारा चेहरा होंगे। ऐसे में कांग्रेस राहुल की बजाय किसी और चेहरे को स्वीकार करेगी? इसके आसार नहीं के बराबर हैं। ऐसे में जेडीयू का सपना अब सपना ही रह सकता है।
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राहुल गांधी
कांग्रेस विपक्ष का सबसे बड़ा दल है। कांग्रेस की ओर से राहुल प्रधानमंत्री पद के सबसे मजबूत दावेदार माने जाते हैं। विपक्ष के कई दलों ने उनका समर्थन भी किया, लेकिन कई दलों ने उनसे दूरी बना रखी है। कांग्रेस ने कभी आधिकारिक तौर पर राहुल को पीएम उम्मीदवार नहीं बताया है, हालांकि कभी-कभी कुछ कांग्रेसी नेता जरूर ये बात दोहराते रहे हैं। राहुल गांधी अगर विपक्ष को एकजुट करने में सफल हो जाते हैं तो उनकी दावेदारी सबसे मजबूत होगी, क्योंकि विपक्ष में कांग्रेस इकलौती ऐसी पार्टी है, जिसका जनाधार उत्तर भारत से लेकर दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक है। अगर कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष के अन्य दलों के मुकाबले ज्यादा सीटें जीत लेती है तो पीएम पद के लिए राहुल की दावेदारी मजबूत हो जाएगी।
ममता बनर्जी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी भी विपक्ष को साथ लाने की कोशिश करती रही हैं और वर्तमान में भी कर रही हैं। हालांकि, इस वक्त वो थोड़ी शांत दिखाई दे रही हैं। ममता ने कभी खुद ये बात नहीं कही है, लेकिन उनके पार्टी के कई नेताओं ने ममता को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बताया है। लोकसभा में टीएमसी के 23 लोकसभा सदस्य और 13 राज्यसभा सदस्य हैं। ममता ने 2024 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कई राज्यों में पार्टी का विस्तार शुरू कर दिया है। अगर 2024 के लोकसभा चुनाव में टीएमसी अच्छा प्रदर्शन कर लेती है तो ममता की दावेदारी और मजबूत हो जाएगी।
नीतीश कुमार
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी बीजेपी से अलग होने के बाद से विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश में जुटे हैं। जदयू के 16 लोकसभा सदस्य और 5 राज्यसभा सदस्य हैं। नीतीश को राजद का भी साथ है। राजद के पास अभी 5 राज्यसभा सदस्य हैं। अगर दोनों मिलकर 2024 लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करते हैं तो नीतीश कुमार की दावेदारी और मजबूत हो सकती है। हालांकि, नीतीश के सामने भी कई बड़ी चुनौतियां हैं। पहला ये कि बीजेपी से अलग होने के बाद से नीतीश की पार्टी में बगावत तेज हो गई है। कई दिग्गज पार्टी छोड़ रहे हैं। नीतीश अकेले दम पर कभी भी पीएम पद की दावेदारी नहीं कर सकते। इसके लिए उन्हें राजद और अन्य दलों का साथ चाहिए होगा।
शरद पवार
विपक्ष के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक शरद पवार भी प्रधानमंत्री पद के दावेदारों में हैं। शरद पवार की पार्टी एनसीपी 90% महाराष्ट्र तक ही सीमित हैं। ऐसे में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस, टीएमसी, जेडीयू जितनी सीटें मिलना तो मुश्किल है। इसके बावजूद पवार पीएम पद की रेस में उन चंद दावेदारों में शामिल हैं, जो काफी मजबूत माने जाते हैं। इसका बड़ा कारण ये है कि पवार के रिश्ते विपक्ष के सभी दलों के नेताओं के साथ काफी अच्छे हैं। अगर किसी एक नाम पर विपक्ष की सहमति नहीं बनती है तो पवार का नाम आगे हो सकता है।
के. चंद्रशेखर राव
तेलंगाना के मुख्यमंत्री और टीआरएस प्रमुख के. चंद्रशेखर राव ने खुलकर खुद को कभी पीएम पद का उम्मीदवार नहीं बताया, लेकिन राजनीतिक जानकारों का कहना है कि वे विपक्षी दलों को एकजुट करके खुद को पीएम उम्मीदवार बनाने में जुट गए हैं। राव ने अपनी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर का बनाने के लिए टीआरएस का नाम बदलकर भारतीय राष्ट्र समिति भी कर दिया है। टीआरएस के पास लोकसभा में 9 और राज्यसभा में 7 सांसद हैं। राव अब आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु जैसे राज्यों में भी पांव पसार रहे हैं। राव के सामने सबसे बड़ी चुनौती विपक्षी दलों का समर्थन हासिल करना है, जिसके लिए कम ही दल तैयार हों।
अखिलेश यादव
समावजादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव का नाम भी अब पीएम पद के दावेदारों में जुड़ गया है, हालांकि उन्होंने खुद कभी भी पीएम बनने की सोच नहीं जाहिर की। उनके समर्थक जरूर समय-समय पर ये बात बोलते रहते हैं। अखिलेश देश के सबसे बड़े राज्य यूपी की राजनीति में मुख्य भूमिका निभाते हैं। यूपी में लोकसभा की 80 सीटें हैं। अन्य किसी भी राज्य से कहीं ज्यादा। यही कारण है कि विपक्षी एकता के लिए यूपी का हाथ होना जरूरी है। बगैर यूपी के विपक्ष 2024 लोकसभा चुनाव में मजबूत नहीं हो सकती है। अगर यूपी में सपा ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब होती है तो जरूर वे आगे चलकर विपक्ष की तरफ से पीएम पद की उम्मीदवारी कर सकते हैं।
अरविंद केजरीवाल
आम आदमी पार्टी (आप) के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी पीएम पद के मजबूत दावेदार माने जाते हैं। कम समय में अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। दिल्ली के बाद पंजाब में भी आप की सरकार है। गोवा और अब गुजरात में भी केजरीवाल की पार्टी की मौजूदगी ने कांग्रेस समेत कई क्षेत्रीय दलों के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं। भले ही केजरीवाल खुद को पीएम का उम्मीदवार नहीं बताते हैं, लेकिन उनकी पार्टी के नेता जरूर इस बात को कहते हैं। केजरीवाल धीरे-धीरे देशभर में पार्टी का विस्तार कर रहे हैं। अगर 2024 के लोकसभा चुनाव में आप ने उम्मीद के हिसाब से सीटें जीत लीं तो केजरीवाल जरूर पीएम पद के लिए दावेदारी ठोक सकते हैं।