भोपाल. मिशन 2023 को लेकर बीजेपी सरकार चुनावी मोड में है। हर वर्ग को साधने की तमाम कोशिशें हो रही हैं। लेकिन पार्टी का सबसे पहला फोकस प्रदेश के आदिवासी वर्ग के वोट बैंक पर है। इसी को ध्यान में रखकर पार्टी के लीडर्स सक्रिय हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह 22 अप्रैल को भोपाल आ रहे हैं। शाह जंबूरी मैदान में होने वाले तेंदूपत्ता संग्राहकों के सम्मेलन में शामिल होंगे। बीते 7 महीने में प्रदेश का यह उनका दूसरा दौरा है। इस आयोजन की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। पार्टी विधानसभा चुनाव 2018 के परिणामों से सबक लेकर अपनी जमीन को मजबूत करने में लगी है।
एमपी में टॉप लीडरशिप एक्टिव
राज्य सरकार 22 अप्रैल को तेंदूपत्ता संग्राहकों का सम्मेलन आयोजित कर रही है। इसके मुख्य अतिथि अमित शाह होंगे। इससे पहले वे 18 सितंबर 2021 को आदिवासियों से जुड़े कार्यक्रम में शामिल होने जबलपुर आए थे। उनके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आदिवासियों के कार्यक्रम में शामिल होने भोपाल आ चुके हैं। वे 15 नवंबर 2021 को आदिवासी वर्ग के कार्यक्रम में शामिल हुए थे।
अमित शाह का दौरा काफी अहम
गुजरात में इस साल के अंत में और मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा इन प्रदेशों में चुनावी मोड में है। पार्टी का पूरा फोकस उन जिलों और विधानसभा सीटों पर है, जहां पिछले चुनाव में पार्टी को हार मिली थी। इस लिहाज से शाह का ये दौरा अहम माना जा रहा है।
अपनी ताकत बढ़ाना चाहती है बीजेपी
पॉलिटिकल एनालिस्ट बताते हैं कि राजनीतिक दलों का विकास और विस्तार निरंतर सक्रियता की अपेक्षा करता है। पार्टी संपर्क और संवाद में जितनी अधिक सक्रिय रहती और सहभागिता करती है, उतनी ही उसकी ताकत बढ़ती जाती है। जनता के बीच में उसका स्थान बनता जाता है। इस दृष्टि से देखें तो PM नरेंद्र मोदी के बाद अमित शाह भाजपा में दूसरे स्थान पर हैं। संगठन में उन्होंने दक्षता और क्षमता को बार-बार सिद्ध किया है। मध्यप्रदेश में 2023 में चुनाव होंगे। जाहिर है कि उस दृष्टि से बीजेपी ने पहले से तैयारी शुरू कर दी है। मप्र में आदिवासी वर्ग बहुत बड़ा है। मप्र में पार्टी की ताकत बढ़ाने और उसकी पहुंच बढ़ाने में वह अपनी ताकत का पूरा उपयोग करना चाहेंगे।
पिछले चुनाव में 25 सीटों का नुकसान
प्रदेश में आदिवासियों की आबादी 2 करोड़ से ज्यादा है, जो 230 में से 84 विधानसभा सीटों पर असर डालती हैं। 2018 के चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। कांग्रेस को 114, बीजेपी को 109, बसपा को 2, सपा को 1 सीट मिली थी। 4 निर्दलीय जीते थे। प्रदेश में कुल 82 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं। आदिवासियों का गढ़ मानी जाने वाली विधानसभा सीटों पर भी भाजपा को 2018 के विधानसभा चुनाव में नुकसान उठाना पड़ा था। अजा की 47 सीटों में से वर्तमान में 30 पर कांग्रेस का कब्जा है, तो 17 पर बीजेपी है। बीजेपी इस गणित को बदलकर अपने पक्ष में करने में जुटी है।