क्या राज ठाकरे और उद्धव आने वाले हैं एकसाथ? शिवसेना भवन के पास लगे पोस्टर, इसलिए लग रहे कयास

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BP Shrivastava
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क्या राज ठाकरे और उद्धव आने वाले हैं एकसाथ? शिवसेना भवन के पास लगे पोस्टर, इसलिए लग रहे कयास

MUMBAI. एनसीपी से अजीत पवार की बगावत के बाद से महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल मची हुई है। इस बीच शिवसेना (उद्धव गुट) नेता संजय राउत के राज ठाकरे को लेकर एक बयान से भी नए कयास लगने लगे हैं। दरअसल, शुक्रवार (7 जुलाई) को राउत ने कहा कि उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे भाई-भाई हैं और उनको किसी मध्यस्थता की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा, राज ठाकरे से मेरी दोस्ती सबको पता है, हमारे राजनीतिक रास्ते अलग हो गए हैं लेकिन हमने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा एक-दूसरे के साथ साझा किया है। हमारा अब भी भावनात्मक लगाव है। मालूम हो, उद्धव ठाकरे के पास 16 विधायक बचे हैं, वहीं राज ठाकरे का एक विधायक है। फिलहाल राज की स्थति मजबूत मानी जा रही है। ऐसे में अगर ये दानों भाई मिल जाते हैं तो बीजेपी के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है। 



शिवसेना भवन के पास लगे पोस्टर, 'एकजुट हों उद्धव और राज ठाकरे



एनसीपी नेता अजीत पवार की बगावत के बाद महाराष्ट्र की सियासत में अब पोस्टर वॉर शुरू हो गया है। मुंबई की सड़कों पर उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के पोस्टर लगाए गए हैं। इस पोस्टर में बालासाहेब ठाकरे को भी जगह दी गई है। पोस्टर के जरिए राज और उद्धव ठाकरे से एक साथ आने की अपील की गई है। दरअसल, ये पोस्टर मुंबई के शिवसेना भवन के पास लगाया गया है। राज और उद्धव ठाकरे के इस पोस्टर को महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नेता लक्ष्मण पाटिल ने लगवाया है। पोस्टर में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के कंधे पर हाथ रखे बालासाहेब ठाकरे दिखाई दे रहे हैं। पोस्टर में लिखा गया है कि 'महाराष्ट्र की राजनीति में बहुत गंदगी हो गई है, अब राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे से यह अपील है कि दोनों साथ में आ जाओ, एक महाराष्ट्रीयन सैनिक आपके हाथ जोड़ रहा है।'



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राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे की सियासी दुश्मनी की पूरी कहानी...



राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे की सियासी दुश्मनी साल 1995 से ही शुरू हो गई थी। हालांकि, उस वक्त राज ठाकरे शिवसेना में ही थे और चाचा बाल ठाकरे के सबसे करीबी थे। राज में हर वो खूबियां थीं, जो शिवसेना की कमान संभाल सके, लेकिन सियासत में कब क्या हो जाए, कोई नहीं जानता। शिवसेना में भी अचानक से सबकुछ बदलने लगा। 



उद्धव की शिवसेना में इंट्री, राज की नाराजगी



साल 1995 में उद्धव ठाकरे ने शिवसेना के कामकाज में दखल देना शुरू कर दिया। बाल ठाकरे कार्यकर्ताओं को उनके पास भेजने लगे। साल 1997 में बीएमसी चुनाव हुए, जिसमें ज्यादातर टिकट उद्धव ठाकरे के इशारे पर दिए गए। इसके बाद राज ठाकरे की नाराजगी भी सामने आई, लेकिन शिवसेना ने बीएमसी चुनाव जीत लिया और उद्धव ठाकरे के फैसलों पर मुहर लग गई। इसके बाद से शिवसेना पर उद्धव ठाकरे की पकड़ मजबूत होती गई और राज ठाकरे किनारे होते गए। इसके बाद से ही राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे में अंदरूनी मनमुटाव बढ़ने लगा और पार्टी में खेमेबाजी शुरू हो गई।



2003 : उद्धव को मिली शिवसेना की कमान



साल 2003 में महाबलेश्वर में उद्धव ठाकरे को अध्यक्ष बनाए जाने का प्रस्ताव पेश हुआ। सबको हैरानी उस वक्त हुई, जब राज ठाकरे ने खुद ये प्रस्ताव दिया। इसके बाद सर्वसम्मति से इस पर मुहर लगा गई। उद्धव को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया। शिवसेना आधिकारिक तौर पर उद्धव ठाकरे को कप्तान मान चुकी थी, अब राज ठाकरे के लिए शिवसेना में कोई जगह नहीं बची थी। दोनों भाइयों मे दूरियां बढ़ती गई और इसका अंत राज ठाकरे के शिवसेना छोड़ने से हुआ।



2006 : राज ठाकरे ने बनाई अलग पार्टी



साल 2006 में राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़कर नई पार्टी का गठन किया। 2009 विधानसभा चुनाव में राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने 13 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि 24 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही हालांकि, 2009 आम चुनाव में एमएनएस को कोई कामयाबी नहीं मिली। इसके बाद से एमएनएस का प्रदर्शन लगातार खराब होता गया। साल 2014 विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट पर जीत मिली।



2019 : उद्धव बने मुख्यमंत्री, राज ठाकरे ने कहा ‘भोगी’



साल 2019 विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी से गठबंधन किया। उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने। शपथ ग्रहण समारोह में राज ठाकरे ने भी शिरकत की, लेकिन एक बार फिर राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे की सियासी लड़ाई सड़क पर आ गई है। राज ठाकरे ने बिना नाम लिए उद्धव ठाकरे को भोगी तक कह डाला।



एक मर्डर से तय हो गई थी राज की किस्मत



साल 1996 में रमेश किनी का मर्डर हुआ था, जिसमें राज ठाकरे का नाम उछला था। कहा जाता है कि शिवसेना के लोग उसका फ्लैट चाहते थे। रमेश की पत्नी ने राज ठाकरे पर हत्या का आरोप लगाया था। मामले की तफ्तीश सीबीआई ने की, हालांकि राज ठाकरे को बरी कर दिया गया। कहा जाता है कि इस मर्डर केस में राज का नाम उछलने के बाद से ही शिवसेना में उनकी उल्टी गिनती शुरू हो गई थी। इस मर्डर केस के बाद से ही उद्धव ठाकरे की शिवसेना में सक्रियता बढ़ गई थी। 



ठाकरे घराना...



कार दुर्घटना में हुई थी बाला साहेब के बड़े बेटे की मौत



बाला साहेब के सबसे बड़े बेटे बिन्दुमाधव ठाकरे थे। 20 अप्रैल 1996 को बिन्दु माधव का एक सड़क हादसे में निधन हो गया था। उस वक्त उनकी उम्र महज 42 साल थी। घटना के वक्त बिन्दुमाधव, उनकी पत्नी माधवी, बेटे निहाल, बेटी नेहा लोनावाल से छुट्टियां मनाकर लौट रहे थे। उनके साथ दो बॉडीगार्ड और ड्राइवर भी थे। बिन्दुमाधव फिल्म निर्माता थे। उनकी राजनीति में रुचि नहीं थी। बिन्दुमाधव के बेटे निहाल की शादी पिछले साल ही महाराष्ट्र सरकार के पूर्व मंत्री हर्षवर्धन पाटिल की बेटी से हुई थी। वहीं, नेहा के पति डॉ. मनन ठक्कर मुंबई के मशहूर डॉक्टर हैं।



उद्धव ठाकरे का परिवार 



बाला साहेब के सबसे छोटे बेटे उद्धव ठाकरे हैं। जो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। पार्टी बचाने के लिए जूझ रहे उद्धव की पत्नी रश्मि ठाकरे भी शिवसेना के संगठन में सक्रिय रही हैं। उद्धव के बड़े बेटे आदित्य ठाकरे उनकी सरकार के दौरान मंत्री थे। आदित्य वर्ली के विधायक भी हैं। आदित्य के छोटे भाई तेजस अपने पिता की ही तरह फोटोग्राफी के शौकीन हैं। तेजस की भी राजनीति में आने की अटकलें काफी अर्से से चल रही हैं। 



राज ठाकरे का परिवार



ठाकरे परिवार के चर्चित नामों में राज ठाकरे का नाम भी आता है। राज ने 16 साल पहले शिवसेना से अलग होकर नई पार्टी मनसे बना ली थी। राज के पिता श्रीकांत ठाकरे थे। श्रीकांत बाला साहेब के भाई थे। राज की पत्नी शर्मिला ठाकरे हैं। राज और शर्मिला के दो बच्चे हैं। बेटे अमित ठाकरे राजनीतिक मंचों पर नजर भी आ चुके हैं। राज ठकारे की बेटी उर्वशी बॉलीवुड में असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में काम कर चुकी हैं। 



परिवार की जड़ें : आठ भाई-बहन थे बाला साहेब ठाकरे



बाला साहेब ठाकरे आठ भाई बहन थे। बाला साहेब और श्रीकांत के अलावा उनके एक और भाई का नाम रमेश है। बाला साहेब की पत्नी मीना ताई और उनके भाई श्रीकांत की पत्नी कुंदा आपस में बहनें थीं। बाला साहेब की पांच बहनें संजीवनी, प्रेमा, सुधा, सरला और सुशीला भी हैं। बाला साहेब के पिता प्रबोधंकर ठाकरे और मां रमा बाई ठाकरे थीं। प्रबोधंकर ठाकरे का असली नाम केशव सीताराम ठाकरे था। उन्होंने अंधविश्वास, छुआछूत, बाल विवाह और दहेज के खिलाफ अभियान चलाया था। वह संयुक्त महाराष्ट्र समिति के प्रमुख नेताओं में से एक थे, जिसने महाराष्ट्र के भाषाई राज्य के लिए सफल अभियान चलाया था। इसके साथ ही प्रबोधंकर एक लेखक भी थे।


Sanjay Raut's statement संजय राउत का बयान Uddhav Thackeray and Raj Thackeray both brothers can be one Flurry in the politics of Maharashtra posters pasted near Shiv Sena Bhawan in Mumbai उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एक हो सकते हैं दोनों भाई महाराष्ट्र की सियासत में सुगबुगाहट मुंबई में शिवसेना भवन के पास लगे पोस्टर