Bhopal. चुनाव पर चुनाव हार रही कांग्रेस में जान फूंकने की नई कवायद शुरू हुई है। प्रशांक किशोर पहले ही कांग्रेस को बेसहारा करके जा चुके हैं। अब कांग्रेस फिर अपने ओल्ड फैशन्ड पॉलीटिशियन्स और बासी हो चुकी राजनीतिक रणनीतियों के भरोसे हैं। उन्हीं राजनेताओं में अब नए जमाने के पॉलीटिकल ट्रेंड को फॉलो करने की समझ भरी जाएगी और रणनीतियों को ताजा करने पर चर्चा होगा। इसके लिए पूरी कांग्रेस एक छत के नीचे जमा होगी। उदयपुर के राजसी महलों के बीच कांग्रेस की बैठक होनी है। जाहिरतौर पर बैठक बहुत बड़ी है और शायद कांग्रेस में जान फूंकने का आखिरी मौका भी। क्योंकि इस बैठक में तीन दिल चले मंथन के बाद कुछ नहीं निकला तो ये तय माना जाएगा कि कांग्रेस का अमृत कलश अब सूख चुका है।
नौ दिन चले अढ़ाई कोस
ये पुरानी कहावत फिलहाल कांग्रेस के हाल से मेल खाती है। कुछ ही समय में केंद्र की सत्ता पर काबिज हुए बीजेपी को पूरे नौ साल हो जाएंगे। कांग्रेस एड़ी चोटी का जोर लगा चुकी है। लेकिन जिस दिन से नरेंद्र मोदी ने देश के मुखिया का पद संभाला है उसके बाद से अपनी सीटों की गिनती बढ़ा नहीं सकी है। जिस प्रदेश में पहले कांग्रेस मजबूत थी। अब तो वो प्रदेश भी कांग्रेस के हाथ से फिसल चुके हैं। और, बचे खुचे भी फिसल जाएं तो ताज्जुब नहीं होगा। इस लिहाज से कांग्रेस की रफ्तार नौ दिन चले अढाई कोस की कहवात से भी ज्यादा सुस्त नजर आती है।
कांग्रेस की चाल सुस्त है और वक्त कम है। अभी पांच राज्यों के चुनाव निपटे हैं। दो राज्यों के चुनाव इस साल के अंत तक होंगे। अगले साल पांच राज्यों के चुनाव हैं और उसके बाद लोकसभा चुनाव। हो सकता है इस साल गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव में कांग्रेस कुछ कमाल न दिखा सके। लेकिन अगले साल होने वाले पांच राज्यों के चुनाव में मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ भी शामिल हैं। ये तीनों वो राज्य हैं, जहां 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। हालांकि इसमें से मध्यप्रदेश उनके हाथ से निकल गया। अब माना जा रहा है कि कांग्रेस की रणनीति इन्हीं राज्यों पर फोकस करेगी।
कांग्रेस ने नव संकल्प शिविर
कांग्रेस को कई मोर्चों पर एक साथ लड़ाई भी लड़ना है। अपने भीतर ही पनप रहे असंतोष को खत्म करना है। बीजेपी के हिंदुत्व से टकराना है। सोशल मीडिया के मोर्चे पर भी जंग छेड़नी है। नए जमाने के इस मैदान में बीजेपी पहले ही अपनी गहरी पैठ जमा चुकी है। जबकि कांग्रेस इस मोर्चे पर बुरी तरह पिछड़ी नजर आती है। तो, क्या तीन दिन में कांग्रेस हर मोर्चे को मजबूत करने की रणनीति बना लेगी। या, नतीजे फिर वही ढाक के तीन पात शामिल होंगे।
एक-एक प्रदेश को बचाने में पार्टी को पूरी ताकत लगानी पड़ रही
देश की सबसे पुरानी पार्टी फिलहाल देश की सबसे परेशान और सबसे पस्त पार्टी नजर आ रही है। इसके राजनेता इसी माटी में रचे बसे हैं। लेकिन इसी देश की बदलती हुई राजनीतिक नब्ज को भांप नहीं पाए। हालात ये है कि एक एक प्रदेश को बचाने में पार्टी को पूरी ताकत लगानी पड़ रही है। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी कांग्रेस के माहौल को समझने के बाद दूरी बनाकर चलते बने। अब पार्टी को जो करना है अपने बूते करना है। तीन दिन की बैठक में कांग्रेस के सभी नेता एक साथ बैठकर ब्रेन स्टॉर्मिंग करेंगे। शायद कोई ऐसा बवंडर तैयार कर सकें जो बीजेपी की आंधी के सामने टिक सके।
कांग्रेस का नव संकल्प शिविर
मई की 14,15 और 16 तारीख को राजस्थान के उदयपुर में कांग्रेस के बड़े नेताओं का जमावड़ा होगा। तकरीबन 400 नेता यहां एक साथ बैठकर कांग्रेस के हालात बदलने पर चिंतन करेंगे। बड़ा सवाल ये है कि कांग्रेस किस एजेंडे पर यहां चर्चा करेगी। या, कौन सा ऐसा रिवाइल प्लान कांग्रेस के पास है, जिसके दम पर चुनावी जीत का खाका खींचा जा सके। वैसे इस तीन दिवसीय शिविर को कांग्रेस ने नव संकल्प शिविर नाम दिया है। यानि कांग्रेस समझ चुकी है कि अब पुराने संकल्पों के दम पर जीत हासिल करना आसान नहीं है। लेकिन नए संकल्पों से ज्यादा जरूरी है नई रणनीति और नई धार के साथ काम करना। लेकिन ये बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस का ये एग्रेशन पूरी तरह गायब है।
कांग्रेस चुनावी राज्यों में गठबंधन पर भी चिंतन करेगी
कांग्रेस की इस बैठक में पार्टी आलाकमान सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी मौजूद होंगे। अंदरखानों की खबर ये है कि पीके भले ही साथ न हो लेकिन वो जिन बिंदुओं पर चर्चा करके गए हैं, उन्हीं के आधार पर बैठक में चर्चा आगे बढ़ेगी। इसके तहत कांग्रेस चुनावी राज्यों में गठबंधन पर भी चिंतन करेगी। इसके अलावा कांग्रेस का फोकस आर्थिक हालात के साथ साथ प्रदेश के किसानों पर भी होगा। ये वही फॉर्मूला है जिसने 2018 में कांग्रेस को एमपी में बढ़त दिलाई थी।
कांग्रेस ने 6 कमेटियां बनाईं हैं
तमिलनाडु, महाराष्ट्र और झारखंड में कांग्रेस पहले से ही गठबंधन सरकार का हिस्सा है। लेकिन उत्तरप्रदेश, ओडिशा, बंगाल और बिहार में कांग्रेस किसी ताकतवर क्षेत्रीय पार्टी से हाथ नहीं मिला सकी। इस एजेंडे पर आगे कैसे अमल करना है ताकि आने वाले चुनावों में कांग्रेस को ज्यादा नुकसान न हो। इस पर मंथन होगा। इस मंथन के मद्देनजर कांग्रेस कुछ अहम कमेटियां पहले ही बना चुकी हैं। राजनीतिक मामलों की कमेटी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे तो आर्थिक मामलों की कमेटी के अध्यक्ष पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम, सामाजिक न्याय संबंधित कमेटी के अध्यक्ष सलमान खुर्शीद बनाए गए हैं। वहीं सचिन पायलट को आर्थिक मामलों की कमेटी में सदस्य बनाया गया है। किसानों के मामले से संबंधित कमेटी का अध्यक्ष हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के नाराज़ गुट G23 के सदस्य भूपिंदर सिंह हुड्डा को बनाया गया है।
रणनीति का पहला इम्तिहान गुजरात में
इस महाचिंतन औऱ महामंथन से कांग्रेस को पूरी ताकत लगाकर अमृत कलश निकालना ही है। क्योंकि अब नई जान फूंकने के लिए कांग्रेस के पास कोई और संजीवनी नहीं बची है। जिसे आजमा कर पार्टी को नई जान और सूरत के साथ पेश किया जा सके। अब जो रणनीति बनेगी उसका पहला इम्तिहान गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव में होगा। 2023 के विधानसभा चुनाव आखिरी लिटमस टेस्ट होंगे। यहां रणनीति फेल हुई तो लोकसभा इलेक्शन की तैयारी के लिए पार्टी को पूरा एक साल भी नहीं मिलेगा। यानी कांग्रेस के लिए अभी नहीं तो कभी नहीं वाली स्थिति मानी जा सकती। इस पूरे मसले पर दुष्यंत कुमार की एक कविता याद आती है-
इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।