कर्नाटक के 19 जिलों में 18 रैलियां और 6 रोड शो, श्रीकांतेश्वरा मंदिर गए, फिर भी कर्नाटक में नहीं दिखा पीएम मोदी का जलवा

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कर्नाटक के 19 जिलों में 18 रैलियां और 6 रोड शो, श्रीकांतेश्वरा मंदिर गए, फिर भी कर्नाटक में नहीं दिखा पीएम मोदी का जलवा

NEW DELHI. 13 मई को आए कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 के परिणाम से कांग्रेस में जहां उत्साह का माहौल है तो वहीं बीजेपी के अंदर आत्मचिंतन का दौर शुरु हो गया है। दरअसल कर्नाटक विधानसभा चुनाव के एक साल बाद ही 2024 के मई महीने में ही लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में कर्नाटक चुनाव को बीजेपी के लिए बड़ी तैयारी के तौर पर देखा जा रहा था। बीजेपी पिछले 9 सालों से केंद्र की सत्ता पर काबिज है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी की राज्य ईकाई और केंद्रीय नेतृत्व ने अपनी जीत दर्ज करने और फिर सत्ता हासिल करने में कोई कमी नहीं छोड़ी। चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री मोदी समेत कई दिग्गज कर्नाटक की सड़कों पर नजर आए, लेकिन नतीजे सामने आने के बाद साफ नजर आ रहा है कि पीएम मोदी की यह कोशिश कर्नाटक में रंग नहीं ला पाई। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद एक बार फिर ये बहस फिर से शुरू हो गई है कि क्या कांग्रेस अब बीजेपी को कड़ी टक्कर देने में सक्षम है, क्या अब मोदी मैजिक खत्म होने लगा है। क्या अब केंद्र में भी बीजेपी की सत्ता को बदला जा सकता है। जानिए आखिर इन चर्चाओं का आधार क्या है। 





पीएम मोदी ने की प्रथा बदलने की कोशिश





कर्नाटक का किंग बनने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी ने जी-जान लगा दिए थे। चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी पूरे सात दिनों में 17 रैलियों में शामिल हुए और पांच रोड शो भी किए थे। बीजेपी चाहती थी कि कर्नाटक में उनकी पार्टी की जीत हो ताकि वह आने वाले चुनावों में इस जीत को भुना सके। कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी ने ज्यादा से ज्यादा रैलियां और रोड शो कर किए। उनका कर्नाटक पर ज्यादा ध्यान इसलिए भी था क्योंकि इस राज्य में साल 1985 के बाद से कोई सत्ताधारी दल दोबारा सत्ता में वापसी नहीं कर सका था। और पीएम इस बार राज्य की इस प्रथा को चुनौती देकर अपना रुतबा और पार्टी का कद दोनों बढ़ाना चाहते थे। लेकिन नतीजों ने उनके इरादों पर पानी फेर दिया और कांग्रेस कर्नाटक की किंग बनकर सामने आई।





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कर्नाटक में सबसे ज्यादा सक्रिय थे पीएम मोदी और अमित शाह





बीजेपी की तरफ से चुनाव प्रचार के दौरान सबसे ज्यादा सक्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिखे। 29 अप्रैल से लेकर 7 मई  7 दिन पीएम मोदी ने प्रचार किया, इस दौरान पीएम मोदी कर्नाटक के 31 जिलों में से 19 जिलों में रैलियां 18 रैलियां और 6 रोड शो किए। कर्नाटक चुनाव प्रचार के उन्होंने रोड शो के जरिए 28 विधानसभा सीटों को कवर किया। पीएम ने मैसूर के श्रीकांतेश्वरा मंदिर में दर्शन के बाद अपने चुनाव प्रचार का समापन किया। इसी के साथ गृह मंत्री अमित शाह की बात करें तो उन्होंने भी कर्नाटक में 9 दिनों तक प्रचार किया। शाह ने  राज्य में 31 में से 19 जिलों में रैलियां और रोड शो किया, जिसमें 16 रैली और 20 रोड शो शामिल हैं। इतनी मेहनत के बाद भी बीजेपी कर्नाटक में सत्ता नहीं बचा सकी और उसे कांग्रेस के हाथों करारी शिकस्त खानी पड़ी। 





नड्डा, राजनाथ, स्मृति, योगी, शिवराज सब फेल साबित हुए!





इतना ही नहीं बीजेपी ने कर्नाटक में स्टार प्रचारकों की फौज उतार रखी थी। पार्टी के स्टार प्रचारकों में शामिल यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कर्नाटक में बीजेपी के लिए जी जान लगाकर प्रचार किया। योगी ने 9 जिलों में रैलियां और रोड शो किया। सीएम योगी ने राज्य में 10 रैली और 3 रोड शो किया बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज सिंह समेत बीजेपी के 40 बड़े नेताओं ने कर्नाटक की सड़कों पर वोट मांगे पर मतदाताओं ने इन्हें नकार कर कांग्रेस का हाथ थामा।





आखिर क्यों नहीं दिखा मोदी मैजिक





कर्नाटक की 224 विधानसभा सीटों पर 72.82 प्रतिशत लोगों ने वोट डाले थे, 13 मई को इस विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आए जिसमें किसी भी पार्टी को सत्ता पाने के लिए 113 सीटों की जरुरत होती। कांग्रेस ने जहां बहुमत के आंकड़े को पार करते हुए 135 सीटों पर जीत हासिल की है तो वहीं बीजेपी को महज 66 सीटों से ही संतोष करना पड़ा। जबकि एगिजट पोल में किंगमेकर कही जाने वाले देवगौड़ा की पार्टी जेडीएस को मात्र 19 सीटों से ही संतोष करना पड़ा। ऐसे में सवाल उठता है की बीजेपी के इतने प्रचार तंत्र के बाद भी जनता ने आखिर कांग्रेस को ही क्यों चुना?  इसका सबसे बड़ा कारण ये रहा कि कर्नाटक का चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों के बदले स्थानीय मुद्दों पर केंद्रित हो गया था और कांग्रेस ने इसमें बाजी मार ली। कांग्रेस ने प्रचार के दौरान बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, लॉ एंड ऑर्डर और आरक्षण जैसे मुद्दों पर अधिक बात की। जनता के बाीच सरकार कमियों को खोल कर रख दिया। जनता के मन में पनप रहे सत्ता विरोधी गुस्से को भुनाने में कांग्रेस सफल रही। तो वहीं बीजेपी अपनी किसी भी योजना के फायदे और बढ़ती मंहगाई, बेरोजगारी और लॉ एंड ऑर्डर पर अपना पक्ष रखने की जगह हिजाब, हलाला, मुस्लिम आरक्षण और बजरंगबली पर बयानबाजी करती नजर आई। जनता ने इन चीजों को नकार दिया और नतीजा ये रहा कि कांग्रेस को जनता ने बहुमत दिया और बीजेपी को विपक्ष में बैठने का जनादेश।





हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण नहीं चला





इस चुनाव में बीजेपी जीत के लिए पूरी तरह से पीएम मोदी पर निर्भर हो गई थी। कर्नाटक चुनाव के परिणाम ने यह साबित कर दिया है कि बार-बार पीएम मोदी पर ही चुनावी जीत के लिए निर्भर रहना बीजेपी के लिए घातक हो सकता है। इस चुनाव के परिणाम में ने ये साबित कर दिया कि हर राज्य में हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण नहीं चल सकता। साल 2014 में बीजेपी के केंद्र में आने से कुछ महीने पहले पश्चिम उत्तर प्रदेश में दंगे हुए थे। जिसका परिणाम ये हुआ कि काफी समय से यूपी में अपनी जमीन तलाश रहे बीजेपी को हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण का लाभ मिला था। 





विधानसभा को लोकसभा से जोड़ना गलत





इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि मतदाता विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में जनादेश अलग-अलग तरह से देते हैं। उदाहरण के तौर पर राजस्थान को ही ले लीजिए, राजस्थान में साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली थी लेकिन लोकसभा चुनाव में इसी राज्य की 25 में से 24 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के नतीजे भी कुछ ऐसे ही रहें थे। ऐसे में कांग्रेस इस जीत को लेकर आश्वस्त नहीं हो सकती कि लोकसभा में भी उसे जीत मिलेगी। एक और उदाहरण आपको बताते हैं साल 2013 का कर्नाटक विधानसभा चुनाव ही ले लीजिए। इस चुनाव में बीजेपी को 224 विधानसभा सीटों में 40 सीटें ही मिली थी लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में वह पार्टी 28 सीटों में से 17 सीटें अपने नाम कर ली थी। वहीं साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी 28 में से 25 सीटों पर जीत मिली थी।



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