छत्तीसगढ़ में बीजेपी-कांग्रेस आंतरिक कलह की शिकार, जमीनी कार्यकर्ता नेताओं पर लगा रहे उपेक्षा का आरोप; मतदाता मौन और कर्मचारी मुखर

author-image
Raunak shivhare
एडिट
New Update
छत्तीसगढ़ में बीजेपी-कांग्रेस आंतरिक कलह की शिकार, जमीनी कार्यकर्ता नेताओं पर लगा रहे उपेक्षा का आरोप; मतदाता मौन और कर्मचारी मुखर

RAIPUR. साल 2023 के अंत मे होने वाले छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के लिए आदिवासी अंचल बस्तर में भी सियासी कवायद तेज हो गई है। बस्तर में विधानसभा की कुल 12 सीटें है जिन पर वर्तमान में कांग्रेस का कब्जा है। 2018 के विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त झेल चुकी बीजेपी इस चुनाव में पिछली हार का बदला लेने व्याकुल दिखाई दे रही है। वहीं, कोंटा और दंतेवाड़ा विधानसभा क्षेत्रों में भाकपा भी पेसा कानून में विसंगति और जल, जंगल और जमीन के मुद्दे को लेकर चुनावी समर में कूदने कमर कस रही है। कुल मिलाकर फागुन के महीने में ही बस्तर के सियासी फिजा में फाल्गुनी रंग चढ़ने लगा है।





बीजेपी-कांग्रेस में अंतर्कलह...





बस्तर में बीजेपी और कांग्रेस दोनों दलों में एक समानता है कि दोनों दल आंतरिक कलह का शिकार हैं। जमीनी कार्यकर्ता अपने नेताओं पर उपेक्षा का आरोप लगा रहे हैं। कांग्रेस सत्तारूढ़ दल है, इसलिए लोग खुलकर बोलने से परहेज करते हैं, पर दबी जुबान से आलाकमान और अपने लोगों के बीच इसे व्यक्त करने से गुरेज भी नही करते। वहीं, बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ पिछली विधानसभा के दौरान उपजे असंतोष से लोग अब तक नहीं उबर पाए हैं। वर्तमान में स्थानीय स्तर में उनके ही हाथों में संगठन की कमान भी है, इसलिए हालात ज्यादा नहीं सुधार पा रहे। बीजेपी के पास योग्य सेकंड लाइन लीडरशिप भी नहीं है, इसलिए संभावित प्रत्यशियों को लेकर कांग्रेस से तुलना होती है तो बीजेपी, कांग्रेस के मुकाबले उन्नीस साबित होती है। जीतने योग्य नए प्रत्याशियों की तलाश बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती साबित हो रहा है।





आरक्षण, धर्मांतरण और पेसा बड़े मुद्दे...





बस्तर अनुसूचित क्षेत्र है। यहां संविधान की पांचवीं अनुसूची लागू है। आरक्षण, पेसा कानून और धर्मांतरण को लेकर बस्तर में सर्व आदिवासी समाज काफी मुखर रहा है। वहीं, पेसा एक्ट को लेकर बने कानून को कागजी बताते हए भाकपा भी लगातार आंदोलन करती आ रही है। हालांकि, इसके लिए मुख्य दोषी कौन है, इसको लेकर समाज की राय बंटी हुई है। कुछ लोग कांग्रेस पर तो कुछ राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठाते हुए भाजपा पर इसका ठीकरा फोड़ रहे हैं, यही कारण है कि हाल ही में भानुप्रतापपुर के उपचुनाव में सर्व आदिवासी समाज ने विरोध जताते हुए अपना प्रत्याशी भी मैदान में उतारा था। नारायणपुर में धर्मांतरण के विरोध में लगी आग अब तक शांत नही हुई है। इसके बाद कोंडागांव, जगदलपुर और सुकमा में भी आदिवासी समाज द्वारा विरोध प्रकट किया जा चुका है। दक्षिण और उत्तर बस्तर के कई इलाकों में सिलगेर की तर्ज पर आज भी आदिवासियों के आंदोलन जारी है।





मतदाता मौन हैं कर्मचारी मुखर...





बस्तर के मतदातों को रिझाने राजनैतिक दल तरह-तरह के स्वांग रच रहे है। कांग्रेस जहां विकास, सुरक्षा और विश्वास की बात कर रही है, वहीं भाजपा 15 वर्षों के अपने कार्यकाल और केंद्रीय योजनाओं का बखान करते नहीं थक रही है। भाकपा, बसपा और आप भी अपनी अपनी झोली से लॉलीपॉप निकाल कर मतदाताओं को अपनी ओर करने की कवायद शुरू कर चुकी हैं। लेकिन, बस्तर का मतदाता भी अब परिपक्व हो गया है, सियासी दलों का एजेंडा और उनके दावे और वादों को खामोशी से सुनकर चुप्पी साधे बैठा हुआ है। दक्षिण बस्तर की 3 विधानसभाओं बीजापुर, दंतेवाड़ा और कोटा में कमोबेश यही स्थिति दिखाई दे रही है, लेकिन इनसे उलट स्थिति कर्मचारियों की है जो कभी डीए, कभी एरियर्स और तो कभी आरक्षण, नियमितीकरण और पदोन्नति को लेकर अपनी भावनाओं को व्यक्त करते रहते हैं।



 



छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 गर्भ में सरकार-किसकी होगी जय-जयकार Assembly Election CG-2023 CG Assembly Election 2023 छत्तीसगढ़ में किसकी बनेगी सरकार छत्तीसगढ़ में बीजेपी की चुनौती छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की चुनौती Whose government will be formed in CG