BHOPAL. व्यक्ति बड़ा या संगठन ? अगर बात बीजेपी को होती तो जवाब यकीनन संगठन ही होगा। कांग्रेस पर गुटबाजी का आरोप लगाने वाला हर बीजेपी नेता यही कहता है कि बीजेपी में संगठन ही सर्वोपरि है, लेकिन मध्यप्रदेश में अब बीजेपी का हाल बदलता दिखाई दे रहा है। बीजेपी की मजबूरी हो या बीजेपी के लिए जरूरी हो, लेकिन अब पुराने नेताओं को अग्रिम पंक्ति में लाकर बड़ी जिम्मेदारी देना पार्टी की मजबूरी बन चुका है। पार्टी माने या न माने लेकिन क्षत्रपों की राजनीति अब बीजेपी में पनप चुकी है और अपनी ताकत भी दिखा रही है। चुनाव जीतने की मजबूरी के चलते अब संगठन ने भी इन नेताओं की ताकत को कबूल कर लिया है।
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पार्टी पर हावी हो चुके दिग्गज !
कैलाश विजयवर्गीय को इंदौर में आयोजन कराने का मौका मिलना और उसमें सफल साबित होना इस बात का सबूत है कि दिग्गज पार्टी पर हावी हो चुके हैं। कैलाश विजयवर्गीय के बाद अब पार्टी दूसरे और नेताओं को मौका देने के मूड में है। जो बहुत जल्द आलाकमान के साथ मंच साझा करते दिख सकते हैं।
मालवा पर दावा कर चुके हैं कैलाश विजयवर्गीय
बीजेपी में वो हो रहा है जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। शॉर्ट नोटिस पर इंदौर में अमित शाह का कार्यक्रम तय होना और उससे भी शॉर्ट नोटिस पर उसे जबरदस्त तरीके से अंजाम देकर कैलाश विजयवर्गीय ने ये साबित कर दिया कि भले ही वो प्रदेश से बाहर की जिम्मेदारी संभालते रहे हों, लेकिन प्रदेश और खासतौर मालवा में उनका दबदबा कम नहीं हुआ है। कैलाश विजयवर्गीय के बाद अब बहुत से और नेता हैं जो अपनी ताकत दिखाने के इंतजार में हैं। कैलाश विजयवर्गीय मालवा पर दावा कर चुके हैं। अब महाकौशल की बारी जल्द आने वाली है। 4 अगस्त को इस क्षेत्र में अमित शाह का दौरा है। उम्मीद जताई जा रही है कि महाकौशल का बड़ा चेहरा राकेश सिंह और फग्गन सिंह कुलस्ते यहां से मंच पर दिख सकते हैं। इस तरह अमित शाह का दौरा हर संभाग में प्रस्तावित है और हर संभाग से या कम से कम अंचल के बड़े नेता को वो मौका देते हुए दिखाई देंगे जिसके बाद ये माना जा रहा है कि अब चुनावी चेहरा भले ही बदला न गया हो, लेकिन हर अंचल का एक चेहरा होगा जिसके साथ कार्यकर्ता और पार्टी चुनाव का रास्ता तय करेगी।
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कांग्रेस का स्टाइल, हर अंचल में एक-एक क्षत्रप
ये राजनीति में कांग्रेस का स्टाइल रहा है जिसके हर अंचल में एक-एक क्षत्रप रहे हैं। विंध्य में अर्जुन सिंह से इसकी शुरुआत हुई। ग्वालियर-चंबल में माधव राव सिंधिया दिग्गज रहे। मध्य पर दिग्विजय सिंह का दबदबा रहा। निमाड़ की राजनीति सुभाष यादव के हिस्से आई। महाकौशल में खुद कमलनाथ हावी रहे, लेकिन समय के साथ कांग्रेस में क्षत्रपों की राजनीति तकरीबन खत्म हो चुकी है। अब पूरी कांग्रेस कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के साथ चल रही है और बीजेपी, कांग्रेस की परंपरा पर आगे बढ़ रही है। मध्यप्रदेश के कुछ पुराने दिग्गजों को प्रदेश में ही बड़ा चेहरा बनाया जा रहा है तो टीम जेपी नड्डा में भी तवज्जो दी गई है।
क्षत्रपों को आगे बढ़ाना बीजेपी की मजबूरी
क्षत्रपों को आगे बढ़ाना अब बीजेपी की बड़ी मजबूरी बन चुका है। 2023 के चुनाव में बीजेपी मध्यप्रदेश को गंवाना नहीं चाहती है और साल 2024 तक जीत का सिलसिला जारी रखना चाहती है, लेकिन एंटीइनकंबेंसी और कार्यकर्ताओं की नाराजगी के चलते बीजेपी समझौता करने पर मजबूर हो ही गई। कैलाश विजयवर्गीय को आगे लाकर मालवा का जिम्मा तो सौंप ही दिया है अब उन्हें कुछ पुराने रूठे हुए साथियों को मनाने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई है। कुल मिलाकर बीजेपी आलाकमान पार्टी में निचले स्तर तक पनप चुके असंतोष और नाराजगी को भांप चुके हैं, जिसे मिटाने के लिए पुराने नेताओं का ही एकमात्र सहारा नजर आ रहा है। जो कार्यकर्ताओं को एकजुट भी कर सकते हैं और अपने कुछ पुराने साथियों को मनाकर पार्टी के प्रति निष्ठावान भी बनाए रख सकते हैं।
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पुराने नेताओं को दोबारा मिल रहा मौका
प्रदेश में पुराने नेताओं को दोबारा मौका मिल ही रहा है। टीम जेपी नड्डा में भी प्रदेश के 3 दिग्गजों को तवज्जो दी गई है। कैलाश विजयवर्गीय राष्ट्रीय महामंत्री पद ही काबिज हैं। विदिशा से जुड़े नेता सौदान सिंह और डिंडोरी से ताल्लुक रखने वाले बड़े आदिवासी चेहरे ओमप्रकाश धुर्वे को भी अहम पद से नवाजा गया है। यानी हर स्तर पर दिग्गजों को अहमियत दी जा रही है। बीजेपी कई स्टेट्स में सीएम फेस बदल चुकी है, लेकिन मध्यप्रदेश में सत्ता-संगठन में बदलाव न करते हुए बीजेपी ने दिग्गजों को आगे लाने की राजनीति अपनाई है। क्या ये इस बात का इशारा नहीं है कि सिर्फ शिवराज सिंह के चेहरे से बीजेपी जीत के लिए आश्वस्त नहीं है। अमित शाह के हर दौरे के साथ ये उम्मीद जताई जा रही है कि पुराने चेहरे नए दम के साथ मंच पर नजर आएगा।
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माइक्रो प्लानिंग करके आगे बढ़ती है बीजेपी
बीजेपी की हमेशा से ये स्ट्रेटजी रही है कि वो माइक्रो प्लानिंग कर आगे बढ़ती है। मध्यप्रदेश में बीजेपी का अंदाज सबसे अलग हटकर नजर आ रहा है। यहां अचानक बड़े फेरबदल या विस्तार नहीं हुए। सीएम वही हैं, प्रदेशाध्यक्ष वहीं हैं। मंत्रिमंडल भी वैसा का वैसा ही, लेकिन पुराने नेताओं को नए सिरे से एक्टिव किया जा रहा है। जीत की खातिर बीजेपी ने यहां शायद झुकने की राजनीति अपनाई है। प्रदेश में पैठ बनाए रखने के लिए गुटबाजी या क्षत्रपों की राजनीति की शर्त पर भी अब पुराने नेताओं को बड़ा चेहरा बनाकर प्रोजेक्ट करने की तैयारी हो चुकी है। कैलाश विजयवर्गीय से हुई ये शुरुआत राकेश सिंह, फग्गन सिंह कुलस्ते के सहारे आगे बढ़ सकती है और शायद तब तक जारी रहेगी जब तक हर अंचल में बीजेपी को मनमाफिक नतीजों की गारंटी नहीं मिल जाती। ये भी तय है कि क्षत्रपों की ये राजनीति शिवराज सिंह चौहान के वन मैन शो के लिए घातक साबित होगी।