BHOPAL. केंद्र की जीत और फिर उत्तर प्रदेश की बड़ी जीत के बाद पीएम मोदी बार बार ये दावा कर चुके हैं की जीत की असल वजह पार्टी की वंशवाद से दूरी है। लेकिन जब हार का डर दिखा तो पार्टी ने अपने सबसे लोकप्रिय चेहरे के सबक को ही हवा करने की तैयारी कर ली है। इस मामले में मध्यप्रदेश में बीजेपी की दूसरी लिस्ट चौंका सकती है। हो सकता है इसमें ऐसे चेहरे नजर आ जाएं जो खुद ये उम्मीद खो चुके थे कि सियासी फलक पर उनका नाम इतनी जल्दी दर्ज हो जाएगा। सर्वे में बहुत अच्छी स्थिति नहीं आने के बाद से बीजेपी लगातार हर वो कदम उठा रही है जो उसे जीत की मंजिल तक पहुंचाए। ऐसे में बीजेपी अब वंशवाद से तौबा करने के इरादे को ताक पर रख दे तो आश्चर्य मत किजिएगा।
अपने ही उसूलों से समझौता करने पर मजबूर पार्टी
वंशवाद को इतर रख कर बीजेपी ने जीत के बड़े बड़े दावे किए हैं। और हर जीत के बाद दावा किया कि वंशवाद की नहीं चली इसलिए जीत मिली पर, मध्यप्रदेश के हालात ने पार्टी को अपने ही उसूलों से समझौता करने पर मजबूर कर दिया है शायद, प्रदेश की एक एक सीट बचाने के लिए पार्टी अब वंशवाद यानी कि नेतापुत्रों को टिकट देने को भी तैयार हो सकती है। जाहिर है अपना ही रूल ब्रेक करने की तैयारी है तो जवाब भी कुछ ठोस सोच ही लिया गया होगा। मसलन कि जो उम्मीदवार योग्य होगा उसे ही टिकट मिलेगा। पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता पहले भी ऐसी दलीलें दे चुके हैं। अब यही दलीलें आलाकमान की अदालत में स्वीकार की जा रही हैं।
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टिकट के लिए नेतापुत्रों की वेटिंग लिस्ट बेहद लंबी
दूसरी सूची में ऐसे नाम दिखाई दे सकते हैं जो बीजेपी के वंशवाद की खिलाफत पर सवालिया निशान लगा दें। मध्यप्रदेश में टिकट के लिए नेतापुत्रों की वेटिंग लिस्ट बेहद लंबी है। कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश विजयवर्गीय को टिकट मिला तो सबको एक उम्मीद जगी थी। लेकिन बेटे को मिले टिकट के बदले में कैलाश विजयवर्गीय खुद प्रदेश से बाहर हो गए पर, अब हालात अलग है अब मालवा को बचाने के लिए बीजेपी खुद कैलाश विजयवर्गीय को वहां की कमान सौंप चुकी है। बदलते हालात ये इशारा कर रहे हैं कि नेतापुत्रों को मौका मिल सकता है, हारी हुई सीटों के लिए जारी होने वाली दूसरी लिस्ट शायद इस पर मुहर भी लगा दे। मोदी और शाह के करीबी नेता के पुत्र की खातिर ही वंशवाद वाला रूल तोड़ा जा सकता है। सवाल ये है कि क्या उसके बाद दूसरे नेतापुत्रों के लिए भी रास्ते खुल जाएंगे।
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नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे देवेंद्र प्रताप तोमर को टिकट मिलने की अटकलें
खबर आम है कि बीजेपी की दूसरी लिस्ट जल्द जारी होगी। जिसमें हारी हुई सीटों पर प्रत्याशियों के नाम घोषित हो सकते हैं। इस लिस्ट में एक नाम ऐसा है जो बहुत ही ज्यादा अप्रत्याशित और चौंकाने वाला हो सकता है और दूसरा नाम ऐसा है जो बीजेपी की मजबूरी को साफ नुमाया कर रहा है। अटकलें हैं कि ग्वालियर जिले की एक विधानसभा सीट से नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे देवेंद्र प्रताप तोमर को टिकट मिल जाए। तोमर आलाकमान के नाम पर नजर आने वाले तीनों चेहरों के विश्वासपात्र नेता हैं। चुनाव से पहले भी उन्हें प्रदेश की कमान सौंप दी गई है। जिसके बाद अपने बेटे के लिए सियासी द्वार खोलने का मौका भी तोमर को मिलता दिखाई दे रहा है।
पुराने उसूलों से क्यों समझौता कर रही बीजेपी ?
दूसरा नाम है सिद्धार्थ मलैया का, जो जयंत मलैया के बेटे हैं। पिछले चुनाव में जयंत मलैया दमोह से चुनाव हार गए थे। अब उसी सीट से सिद्धार्थ मलैया को टिकट मिल सकता है। ऐसा होता है तो ये इस बात का इशारा होगा कि वाकई पुराने और वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी बीजेपी पर बेहद भारी पड़ रही है। उन्हें शांत रखने के लिए बीजेपी की बेबसी अब पुराने उसूलों से तौबा करने पर मजबूर कर रही है।
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दूसरे नेता भी पार्टी के सामने होंगे मुखर
नेतापुत्रों को टिकट मिलने के बाद इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि दूसरे विधायकों और नेताओं को भी अपने बच्चों का भविष्य उज्जवल नजर आने लगे, जिसमें से एक शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल के सीनियर मोस्ट लीडर गोपाल भार्गव ही हैं। जो कई बार अपने बेटे के लिए टिकट की मांग कर चुके हैं पर, हर बार उनकी मांग ठुकरा दी गई। उनके बाद भी ऐसे नेताओं की लिस्ट लंबी है जो अपने बेटे या बेटियों के लिए टिकट की मांग करते रहे हैं। गौरी शंकर बिसेन तो यहां तक कह चुके हैं कि उनकी जगह उनकी बेटी मौसम को टिकट दे दिया जाए।
नेतापुत्र इन वेटिंग
- शिवराज सिंह चौहान के बेटे कार्तिकेय
ऊपर दिए सभी लीडरसंस टिकट की आस लगाए बैठे हैं। हालांकि सभी ये जरूर कहते हैं कि जो पार्टी तय करेगी वहीं फैसला सर्वमान्य होगा। लेकिन उम्मीदें इतनी आसानी से कहां टूटती हैं। कुछ समय पहले पार्टी के वरिष्ठ नेता सत्यनारायण जटिया भी ये कह चुके हैं कि वंशवाद की कोई बात नहीं है जो डिजर्विंग होगा उसे टिकट मिलेगा। वैसे ऐसा नहीं है कि बीजेपी में इससे पहले परिवार के किसी अन्य सदस्य को टिकट हासिल न हुआ है। मध्यप्रदेश में ही ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं। जिनमें परिवारवाद की झलक नजर आती है।
- पूर्व सीएम सुंदरलाल पटवा के भतीजे सुरेंद्र पटवा पूर्व मंत्री और वर्तमान में विधायक हैं।
क्या ये लिस्ट ये जाहिर नहीं करती कि वंशवाद की खिलाफत की बात भी तब तक ही जब तक हार का डर न सताए। अगर तोमर और मलैया के बेटों को टिकट मिलता है तो ये बात और भी ज्यादा पक्की हो जाएगी। ऐसे में जिन नेताओं के बच्चों को टिकट नहीं मिलता क्या वो दूसरी सियासी राह चुनने पर मजबूर नहीं होंगे।
नेताओं की नाराजगी दूर करने और गुटबाजी खत्म करने की कोशिश में बीजेपी
बीजेपी की आने वाली लिस्टों से ये साफ होता जाएगा कि वंशवाद से किस हद तक समझौता किया जा सकता है। क्राइटेरिया से परे जाकर अगर लीडर सन को टिकट दिया जाता है तो बीजेपी के नेताओं को ये बताना भी होगा कि ये फैसला क्यों लिया गया क्योंकि, ये सवाल पार्टी के अंदर भी उठेंगे और बाहर भी वो मतदाता भी जरूर ये सवाल करेंगे कि दूसरे दलों के वंशवाद पर सवाल उठाने वाली पार्टी खुद इसके आगे सिर क्यों झुका रही है। पुराने नेताओं की नाराजगी दूर करने और गुटबाजी खत्म करने के लिए बीजेपी हर मुमकिन कोशिश कर रही है। कहीं ऐसा न हो कि कुछ नेतापुत्रों को मौका देकर और कुछ को नकार कर बीजेपी बगावत की आग को एक जगह से बुझा कर दूसरी जगह सुलगा दे।