BHOPAL. कांग्रेस के बड़े नेता और पूर्व मंत्री जयवर्धन सिंह ने हाल ही में दावा किया है कि बीजेपी में ज्योतिरादित्य सिंधिया की भूमिका संदिग्ध है। केवल इतना ही नहीं जयवर्धन सिंह ने यहां तक कहा है कि उनके समर्थकों को भी इस बार टिकट मिलना मुश्किल है। बीजेपी के जो हालात और खासतौर ज्योतिरादित्य सिंधिया इन दिनों जितने खामोश उसे देखकर कांग्रेस का दावा सही भी नजर आता है। न सिंधिया न उनके समर्थक चुनाव में उतने सक्रिय नजर आते हैं जितना उन्हें होना चाहिए। इस सियासी सन्नाटे की आखिर वजह क्या है। क्या बीजेपी में वाकई सिंधिया को फिलहाल साइडलाइन कर दिया है या असल प्लानिंग कुछ और है। 2023 की बिसात पर सिंधिया बीजेपी की तुरूप की चाल भी हो सकते हैं।
कांग्रेस में ज्योतिरादित्य का चेहरा हर छोटे बड़े कार्यक्रम में चमकता था
साल 2018 में हुए मध्यप्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव का मंजर जरा याद कीजिए। याद कीजिए जब कांग्रेस की छोटी से लेकर बड़ी रैली या सभा हुआ करती थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया का चेहरा हर छोटे बड़े कार्यक्रम में चमकता था। महाराज के चाहने वाले, फॉलोअर्स और समर्थक फूलों से उनका स्वागत करते थे। कार के गेट पर लटक कर महाराज भी सबका अभिवादन करते थे। 2020 में पार्टी बदलने के बाद भी सिंधिया का ये जलवा कायम रहा। उनके प्रदेश आने पर समर्थकों का जमावड़ा, रोड शो, फूलों का उड़ना, जयकारे लगना सब जारी रहा। कुल मिलाकर नई पार्टी में भी सिंधिया का शक्ति प्रदर्शन जारी रहा। कांग्रेस लाख दावे करती रही कि सिंधिया का पॉलिटिकल करियर खत्म, लेकिन हर बार सिंधिया उससे बड़ा मजमा सजा कर जवाब देते रहे। केंद्र में मंत्री बने और प्रदेश के हर आयोजन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ कंधे से कंधा मिलाकर साथ खड़े नजर आए।
अब चुनाव एक बार फिर सिर पर है। अब तक जो सिंधिया मप्र में बुरी तरह एक्टिव थे। अब पूरी तरह शांत हैं आखिर इसकी वजह क्या है। क्या कांग्रेस उनके बारे में जो दावे कर रही है वो सौ फीसदी सही है।
बीजेपी में पोस्टर तो क्या कार्यक्रमों से भी गायब नजर आ रहे हैं
कांग्रेस की जीत का पोस्टर बॉय बीजेपी में आकर पोस्टर तो क्या कार्यक्रमों से भी गायब नजर आ रहा है। यूं सिंधिया छोटे बड़े हर कार्यक्रम में एक्टिव होते हैं, लेकिन फिलहाल हर कार्यक्रम से नदारद और सिर्फ ग्वालियर चंबल में सिमटे नजर आ रहे हैं। उनका ये हाल देखकर कांग्रेस के दावे सच नजर आ रहे हैं। न सिर्फ सिंधिया बल्कि उनके समर्थकों का भविष्य डूबता दिखाई दे रहा है। शायद उनके समर्थकों में जो अफरातफरी और दलबदल की कोशिश दिख रही है उसकी वजह भी यही खामोशी है। इसे जो लोग ये मान चुके हैं सिंधिया अब सिर्फ ग्वालियर चंबल तक सिमटे रहेंगे तो ये उनकी गलती है। फिलहाल सिंधिया को साइडलाइन करना या बैकफुट पर लाना बीजेपी की माइक्रो प्लानिंग की एक बड़ी चाल है। जिसमें न सिर्फ कांग्रेस बल्कि, बीजेपी के ही बहुत से नेता उलझ सकते हैं।
समर्थकों की कांग्रेस में वापसी पर भी सिंधिया खामोश हैं
चुनाव की भागमभाग के बीच ज्योतिरादित्य सिंधिया की कमी यकीनन खलती है। बीजेपी में चुनावी सरगर्मियां तेज होती जा रही हैं तब सिंधिया का गायब उनसे गायब रहना। कई सवाल खड़े करता है। सिर्फ सिंधिया ही नहीं उनके समर्थक भी साइलेंट मोड में ही हैं। सिंधिया की ये खामोशी कांग्रेस को मौका दे रही है और समर्थकों में भगदड़ मचा रही है। शिवपुरी के एक सिंधियानिष्ठ भाजपा जिला उपाध्यक्ष राकेश गुप्ता ने भाजपा से नाता तोड़ लिया है। इससे पहले भी छोटे से लेकर बड़े स्तर तक के सिंधिया समर्थक कांग्रेस में वापसी कर ही चुके हैं। इस पर भी सिंधिया खामोश हैं।
कांग्रेस लगातार दावा कर रही है कि अब बीजेपी में जाकर सिंधिया का चैप्टर खत्म हो चुका है। उनकी खामोशी कई सवाल खड़े करती है।
- क्या सिंधिया को पुराने बीजेपी नेताओं ने साइडलाइन कर दिया है?
सिंधिया समर्थकों को लेकर प्रदेश के कार्यकर्ताओं में गहरी राजनीति है
सवाल कई हैं इनके जवाब में बीजेपी के पास कहने को कोई ठोस बात नहीं है। पर बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों की माने तो फिलहाल सिंधिया को बैकफुट पर रखना या बैकफुट पर शो करना बीजेपी की रणनीति का बड़ा हिस्सा हो सकता है। चुनावी जानकारों के मुताबिक बीजेपी माइक्रो लेवल की प्लानिंग करती आई है। फिलहाल सिंधिया समर्थकों को लेकर प्रदेश के कार्यकर्ताओं में गहरी राजनीति है। ऐसे हालात में सिंधिया को तेजी से सक्रिय करना बीजेपी के लिए नुकसानदायी हो सकता है। इसलिए सिंधिया को फिलहाल कुछ ही जगह सामने लाया जा रहा है, लेकिन समय रहते सिंधिया के फेस का इस्तेमाल सही जगह, सही समय और सही तरीके के साथ होगा।
फिलहाल सिंधिया पर सिर्फ कांग्रेस ही नहीं उनके समर्थक भी वेट एंड वॉच की स्थिति में है।
समर्थकों को टिकट नहीं मिलता है तो यह सिंधिया की हार मानी जाएगी
इस पिक्चर को भी क्लियर होने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। टिकट बांटने का मौका अब नजदीक है। अपना सियासी भविष्य सिंधिया के भरोसे कांग्रेस से बीजेपी में लेकर आए नेताओं को अगर टिकट नहीं मिलता है तो ये सिंधिया की बीजेपी में बड़ी हार ही मानी जाएगी। उसके बाद ये तय मान लिया जाएगा कि महाराज का दम खम अब पहले सा नहीं रहा। वैसे सिंधिया मध्यप्रदेश में सीएम का विकल्प भी माने जाने लगे थे, लेकिन नगरीय निकाय चुनाव में ही टिकट वितरण में उनका दबदबा कम नजर आया। उनकी बजाय नरेंद्र सिंह तोमर के फैसलों पर मुहर लगी। अब विधानसभा में उनकी कितनी चलेगी वो फैसले बीजेपी में उनका रसूख कायम करेंगे। तब तक के लिए उनकी भूमिका पर सस्पेंस बरकरार ही रहेगा।