BHOPAL. मध्यप्रदेश में बारिश भले ही थम गई हो, पर सियासी गर्मी तेज हो चली है। एक के बाद एक केंद्रीय मंत्रियों के दौरे हो रहे हैं। सरकार बनाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी हर वो जतन कर रहे हैं, जिससे बीजेपी के पक्ष में माहौल बन सके। कभी जिला, कभी तहसील तो कभी लोकार्पण और विकास कार्यों का ऐलान। आप हैरान होंगे कि उज्जैन महाकाल लोक के बाद मामा ब्रह्मांड जैसे लोक मध्यप्रदेश में बनाने का ऐलान कर चुके हैं। वे आत्मविश्वास से लबरेज भी नजर आते हैं। चुनाव से करीब 70 दिन पहले मंत्रिमंडल के विस्तार पर वे कहते हैं कि 70 दिन बाद फिर हमारी ही सरकार आएगी, ये मंत्री तब फिर काम आएंगे। ये तो हुई कल की बात। अब ताजा खबर यह है कि मोदी के 'मन' से मामा निकल गए हैं। बीजेपी के थीम सॉन्ग 'मोदी के मन में एमपी, एमपी के मन में मोदी' से उनका नाम हट गया है। खबरें तो देश- प्रदेश में और भी हैं, आप तो सीधे नीचे उतर आईए और 'बोल हरि बोल' के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए।
20 साल के 'राज' पर क्या पानी फिर गया...!
20 साल से प्रदेश में राज कर रहे मामा को बीजेपी के थीम सॉन्ग में जगह नहीं मिली है। 'मोदी के मन में एमपी, एमपी के मन में मोदी' गाने से उन्हें फिर गायब कर दिया गया। पूरे गाने में शिवराज सिंह का जिक्र ही नहीं है। इसके पहले ये थीम सॉन्ग सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था तो बीजेपी नेताओं ने तर्क दिया था कि किसी मोदी समर्थक ने वायरल किया है। इससे पार्टी का कोई लेना देना नहीं है, लेकिन फिर इसे 'नव सदस्यता अभियान' में बाकायदा मंच से लॉन्च किया गया। मजे की बात ये है कि डेढ़ घंटे चले इस कार्यक्रम में केवल 'भाई साहब' ने अपने भाषण में एक सेकंड के लिए मामा का नाम लिया। मुन्ना भैया से लेकर सभी पदाधिकारियों ने पूरे कार्यक्रम का फोकस एमपी के मन में मोदी पर ही रखा। कार्यक्रम के बाद कुछ नेताओं ने पदाधिकारियों से पूछा कि क्या ऊपर से लाइन आ गई मामा को साइडलाइन करने की! इस पर एक बड़े पदाधिकारी ने मुस्कुराते हुए कहा कि मामा तो मुख्यमंत्री हैं ही ना। दरअसल युवाओं में मोदी लोकप्रिय हैं, मोदी के नाम से युवा पार्टी से जुड़ेंगे, इसलिए उनके नाम को आगे रखा है। सामने वाले ने दूसरा सवाल दागा कि इसका मतलब मामा को युवा पसंद नहीं करते। पदाधिकारी ने कहा कि आप सवाल बहुत करते हैं, चलिए अब सदस्यता अभियान को सफल बनाने पर ध्यान दीजिए।
सर्वे के बाद बनाए तीन मंत्री
दूसरी बड़ी खबर भी अंदरखाने से है। अब तक आपने सुना होगा कि पार्टियां सर्वे के आधार पर टिकट देती हैं, लेकिन मध्यप्रदेश में पहली बार सर्वे के आधार पर तीन मंत्री बनाए गए हैं। चौंका देने वाला दूसरा वायरल तथ्य यह है कि शपथ लेने के बाद भी इनका 'कार्यकाल' करीब एक हजार घंटे का ही होगा। बीजेपी के प्रदेश प्रभारी भूपेन्द्र यादव और सह प्रभारी अश्विनी वैष्णव के पास पहुंची सर्वे रिपोर्ट में कहा गया कि राजेन्द्र शुक्ला को मंत्री बनाकर विंध्य साधा जा सकता है। गौरीशंकर बिसेन को मंत्री बनाकर बालाघाट के आस-पास का एरिया कवर कर सकते हैं। लोधी समाज से एक मंत्री बनाकर बुंदेलखंड और ग्वालियर संभाग की शिवपुरी जिले के लोधी समाज को पक्ष में किया जा सकता है। मामला चंबल से लाल सिंह आर्य को मंत्री बनाकर एससी वोटर्स को साधने का भी आया था, लेकिन ग्वालियर-चंबल में ज्यादा मंत्री बनने से दूसरे संभागों में गलत संदेश ना जाए, इसलिए चार की जगह सिर्फ तीन मंत्री ही बनाए। यह फैक्ट भी रोचक है कि मध्यप्रदेश की 193 विधानसभा सीटों पर जातियां ही गेमचेंजर साबित होती हैं। कुल 230 में से करीब 45 सीटों पर राजपूत, 24 सीटों पर कुशवाह समाज का वर्चस्व है तो करीब 60 सीटों पर ब्राह्मण मतदाताओं के वोट निर्णायक साबित होते हैं। लिहाजा, इसी तरह का गणित बैठाया गया है।
पंडितजी से सब परेशान
मंत्रालय की पांचवीं मंजिल पर बैठने वाले पंडितजी से दमदार आईएएस अफसर भी खासे परेशान हैं। मामला कई बार सीएम तक पहुंच चुका है, लेकिन पंडितजी का नाम आते ही मामला फुस्स हो जाता है। बताया जाता है कि पंडितजी की लिंक दिल्ली में सीधे संघ के बड़े पदाधिकारी से जुड़ी है। यही वजह है कि पंडितजी की मनमानी के आगे अच्छे खासे दिग्गज अफसर भी मौन साधने पर मजबूर हैं। हाल ही में एक अफसर को लंबे समय तक लूप लाइन में रखकर पंडितजी अपना जलवा दिखा ही चुके हैं। वैसे भी सीएमओ में पंडितों का ही जलवा है, हर महत्वपूर्ण निर्णयों में उनकी अहम भूमिका होती है।
‘समंदर’ के उफान से मंत्री संकट में
एक नेता कम बिजनेसमैन कम किसान कई वर्षों से सियासत की जमीन पर पैर जमाने की कोशिश में लगे हैं… महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए 'महाराज' के साथ बीजेपी में शामिल भी हुए, लेकिन यहां पहले से कद्दावर मंत्री जमे हुए हैं। लगातार चार बार से जीत रहे हैं। अपनी दाल गलते ना देख साहब ने फिर से कांग्रेस में वापसी कर ली है। समंदर के इस उफान से मंत्री परेशान हैं, कारण है कि अब तक कांग्रेस के पास इतना दमदार चेहरा नहीं था, लेकिन इन साहब के पास धन-बल और समाज बल दोनों ही हैं। ऐसे में मंत्री अब इनकी काट निकालने के लिए स्थानीय कांग्रेसियों को उकसाने में लग गए हैं। मंत्री का मानना है कि इनका विरोध बढ़ने पर कांग्रेस से टिकट कट सकता है। यदि ऐसा होता है तो मंत्रीजी पांचवीं बार फिर सीट फतह कर लेंगे।
तीन प्रमोटी आईएएस परेशान
माननीय की वक्र दृष्टि पड़ने के बाद से तीन प्रमोटी आईएएस खासे परेशान हैं। दरअसल दो महीने पहले इन तीनों के खिलाफ आदिवासी की जमीन को बेचने की अनुमति देने के मामले में जांच एजेंसी ने मामला दर्ज किया था, लेकिन आज तक ना तो सरकार को और ना ही इन तीनों को उन पर दर्ज हुए मामले से संबंधित कोई जानकारी दी गई। तीनों अफसर जांच एजेंसी के फैसले के खिलाफ कोर्ट जाना चाहते हैं। इसके लिए इन्होंने सूचना के अधिकार में जानकारी भी मांगी, लेकिन उसमें भी माननीय ने धाराओं का उल्लेख करते हुए देने से इनकार कर दिया। इन तीनों अफसरों को डर है कि समय रहते मामले को सैटल नहीं किया तो उनका रिटायरमेंट खराब हो सकता है।
तीन रिटायर्ड आईपीएस की क्लास
तीन रिटायर्ड आईपीएस इन दिनों परेशान हैं। तीनों जब नौकरी में थे, तब इन्होंने मौज काटी। उन्हें सपने में भी इस बात का अहसास नहीं था कि रिटायर होने के बाद जिल्लत झेलनी पड़ेगी। तीनों तत्कालीन कमलनाथ सरकार के खास थे। अब शिवराज सरकार के चंगुल में फंस गए। तीनों अफसर जांच से बाहर आने के लिए गृह विभाग के चक्कर काट-काटकर थक गए हैं। सरकार ने रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में विभागीय जांच समिति बना दी है। बताया जा रहा है कि माननीय इन्हें जांच के लिए बुलाकर चार-चार घंटे बाहर बैठाकर रखते हैं। इनमें दो अफसर चैन स्मोकर हैं तो माननीय के बुलावे के इंतजार में चार- पांच पैकेट धुआं फूंक लेते हैं, लेकिन इंतजार है कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा।
आईजी को हरिराम की तलाश
गोपनीय बातें लीक होने से आईजी स्तर के एक अधिकारी खासे परेशान हैं। उन्होंने अपने घर के स्टाफ पर भी नजर रखना शुरू कर दिया है, लेकिन उनकी गोपनीय बातें लगातार बाहर आ रही हैं। अब उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि आखिर वो 'हरिराम' कौन है, जो उनकी हर छोटी बड़ी बात बाहर कर रहा है और इस सब से साहब को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।