कांग्रेस ने तीज-त्योहार और भाषा-बोली को लेकर अभियान चलाकर ‘छत्तीसगढ़ियत’ उभारी, बीजेपी इन सबका तोड़ निकालने में नाकाम

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Atul Tiwari
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कांग्रेस ने तीज-त्योहार और भाषा-बोली को लेकर अभियान चलाकर ‘छत्तीसगढ़ियत’ उभारी, बीजेपी इन सबका तोड़ निकालने में नाकाम

RAIPUR. इस वर्ष अगले कुछ महीने में कर्नाटक से लगाकर राजस्थान तक में होने वाले विधानसभा चुनाव भारत के चुनावी इतिहास के सबसे दिलचस्प मुकाबले होने जा रहे हैं। इसमें भी छत्तीसगढ़ में होने वाला चुनाव में जीत हासिल करना बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती सिद्ध हो रहा है। कांग्रेस के लिए भी छत्तीसगढ़ को अपने सबसे अकेले सुदृढ़ गढ़ के रूप में बचाना, अपने राजनीतिक भविष्य को बचाने जैसा है।

 

छत्तीसगढ़ का चुनाव जितना राजनीतिक रूप से संवेदनशील है, वहीं वह चुनावी आंकडों की नजर से दिलचस्प है। इसका कारण यह है कि छत्तीसगढ़ में विधानसभा की कुल 90 सीटों के लिए 2018 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने यहां 68 सीटें जीती थीं। छत्तीसगढ़ बिना किसी अवरोध के 15 साल राज करने के बाद भाजपा 15 सीट पर अटक गई थी। इस चुनाव में बसपा को 2 सीटों और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ को 5 सीटें मिली थीं। बहरहाल, पिछले चार साल में हुए 5 उपचुनावों के कारण, कांग्रेस की सीटें 68 से बढ़कर 71 हो गईं। भाजपा की सीटें 15 से घट कर 14 रह गई और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ की सीटें 5 से घट कर 3 रह गई। बसपा की स्थिति यथावत 2 सीट बनी रही।

 

बीजेपी की कठिनाई का एक बड़ा कारण यह है कि इन चार साल में बीजेपी में राजनीतिक अंतर्संघर्ष बहुत बढ़ा है और कोई राज्यभर में समान रूप से प्रभावशील कोई एक नेता नहीं रहा। इस वजह से उसकी राजनीतिक सक्रियता कम हुई है। बीजेपी के हाईकमान ने अपने वरिष्ठ नेताओं को भेजकर और यहां बीजेपी प्रांतीय अध्यक्ष तथा विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष को बदलकर स्थिति सुधारने की कोशिश की हैं, लेकिन उसका कोई गुणात्मक प्रभाव नहीं पड़ा। 



कांग्रेस ने तीज-त्योहार, खान-पान और भाषा-बोली को लेकर सुनियोजित अभियान चलाकर यहां ‘छत्तीसगढ़ियत’ याने ‘छत्तीसगढ़ अस्मिता’ की भावना को बहुत तेजी से उभारा है। इससे बढ़कर छत्तीसगढ़ राजगीत, छत्तीसगढ़ महतारी, छत्तीसगढ़ी गमछा, छत्तीसगढ़ी मिलेट्स जैसे मुद्दों को प्राथमिकता देकर छत्तीसगढ़ की अलग पहचान बनाई है। इससे आम आदमी के साथ कांग्रेस सरकार का जुड़ाव अधिक भावनात्मक नजदीकी का हुआ है। यही नहीं, किसान न्याय योजना के तहत धान की खरीदी, गोबर और गौमूत्र की खरीदी, लघु वन उपज की खरीदी जैसे उपायों के द्वारा किसानों और आदिवासियों तथा अनुसूचित जाति के लोगों के हाथ में पैसा पहुंचाया है। इतना ही नहीं, भूमिहीन किसान मजदूरों को प्रतिमाह 7000 रु. देकर आर्थिक स्थिति बेहतर करने की भी कोशिश की है। सरकार कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना लागू करके कांग्रेस सरकार ने उन्हें संतुष्ट किया है और इन कांग्रेसी उपायों का बीजेपी कोई तोड़ निकालने में असमर्थ रही है।

  

प्रथम दृष्टया, छत्तीसगढ़ की राजनीतिक बिसात पर कांग्रेस बहुत मजबूत दिखाई दे रही है और बीजेपी राज्य में कांग्रेस को बड़ा नुकसान पहुंचाने की स्थिति में नहीं है। बीजेपी की कोशिश यह है कि वह कांग्रेस में टीएस सिंह देव और भूपेश बघेल के बीच चल रहे विवाद का लाभ उठाए। सिंह देव का प्रभाव सरगुजा क्षेत्र में है और वहां भूपेश समर्थक विधायक सिंह देव के विरूद्ध अभियान चला रहे हैं। पिछले चुनाव में सरगुजा संभाग में 14 की 14 सीटें कांग्रेस को मिली थीं, किंतु अब कांग्रेस सरगुजा क्षेत्र में आपनी पुरानी असाधारण सफलता दोहरा सकने की स्थिति में नहीं है।

 

बस्तर में बीजेपी और कांग्रेस से अलग सर्व आदिवासी समाज एक राजनीतिक संगठन के रूप में खड़ा हो गया है। सर्व आदिवासी समाज को कांग्रेस के एक बड़े नेता का अरविंद नेताम का समर्थन हासिल है। इस बीच बस्तर में धर्मांतरण का मुद्दा फिर से उभरकर आया है। दक्षिण बस्तर में नक्सली हिंसा उभरने लगी है। पिछले चुनाव में बस्तर संभाग की 12 में से 11 सीटें कांग्रेस को मिली थीं। बीजेपी यह उम्मीद करती है कि कांग्रेस का यह सुरक्षित गढ़ वह भेद सकती है।

 

विगत चुनाव में छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाकों में अर्थात् बिलासपुर, रायपुर और दुर्ग संभागों की कुल 64 सीटों में से कांग्रेस को 43 सीटें, बीजेपी को 14 सीटें, बसपा को 2 सीटें और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ को 5 सीटें मिली थीं यानी बीजेपी ने इसी क्षेत्र से अपनी साख बचाई थी। इस क्षेत्र में पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं की बहुलता है। इसे ध्यान में रखकर बीजेपी ने अपने प्रांतीय अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष को बदला है और इसी क्षेत्र के दो पिछड़ा वर्ग के नेताओं को नियुक्त किया है। अनुसूचित जाति ने पिछली बार कांग्रेस को बड़ा समर्थन दिया था। बीजेपी इस बार अनुसूचित जाति के वोटों को अपने पक्ष में करने के अभियान में धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है। 



बसपा और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ की राजनीतिक स्थिति पिछले चुनाव के मुकाबले बेहद कमजोर हुई है। ये दोनों दलों का कांग्रेस या भाजपा से तालमेल नहीं बैठ सकता, इस कारण ये दल छत्तीसगढ़ के बाहर के क्षेत्रीय दलों से तालमेल बैठा कर अपनी पहचान बचाने की कोशिश कर सकते हैं। बहरहाल, ऐसा होने पर भी ये दल चुनाव परिणाम को प्रभावित करने की स्थिति में नहीं हैं। 



इधर आम आदमी पार्टी की राजनीतिक आकांक्षा एक प्रभावी राष्ट्रीय दल के रूप में अपनी ताकत बढ़ाने की है। इस लिहाज से आम आदमी पार्टी छत्तीसगढ़ में पिछले चुनाव में अत्यंत निराशापूर्ण प्रदर्शन के बाद, यहां तेजी से सक्रिय हो रही है। आप को उम्मीद है कि कांग्रेस और बीजेपी से असंतुष्ट नेता उसके साथ आ सकते हैं। राज्य में कई एनजीओ हैं, जो सामाजिक क्षेत्रों में प्रभावशील हैं। आम आदमी पार्टी इन एनजीओ का समर्थन लेकर अपनी राजनीतिक शक्ति बढ़ा सकती है। किन्तु... और यह किन्तु महत्वपूर्ण हैं- छत्तीसगढ़ के चुनावी इतिहास में 1946 से लेकर 2019 तक कभी भी कोई तीसरा दल अपनी सरकार बनाने लायक या अन्यथा भी प्रभावी प्रदर्शन नहीं कर सका है। ऐसी स्थिति में आम आदमी पार्टी केवल कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने का काम कर सकती हैं, लेकिन उससे बीजेपी को बड़ा फायदा नहीं मिल सकता। 

    

कुल मिलाकर फरवरी माह के आखिरी दिन छत्तीसगढ़ में कांग्रेस फिर से सरकार बनाने की सुदृढ़ स्थिति में नजर आती है। उसे मैं राजनीतिक गणित के हिसाब से 10 में से 6.5 अंक देता हूं। बीजेपी अपनी स्थिति को पिछले चुनाव के मुकाबले कुछ बेहतर कर सकती है। इस कारण बीजेपी को 10 में से 3.5 अंक देता हूं।


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