छत्तीसगढ़ के BJP ऑफिस में ढाई घंटे पड़ा रहा साय का इस्तीफा, किसी ने सुध नहीं ली, 3 साल से किसी पद पर नहीं थे और भूपेश नहीं चूके

author-image
Yagyawalkya Mishra
एडिट
New Update
छत्तीसगढ़ के BJP ऑफिस में ढाई घंटे पड़ा रहा साय का इस्तीफा, किसी ने सुध नहीं ली, 3 साल से किसी पद पर नहीं थे और भूपेश नहीं चूके

RAIPUR. नंद कुमार साय (79) ने उस दल बीजेपी को अलविदा कह दिया, जिस दल में वे कम से कम 45 बरस से ज्यादा “माननीय” पदों पर रहे। इनमें विधायक (अविभाजित मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़), सांसद ( राज्यसभा और लोकसभा), नेशनल ट्राइबल कमीशन के अध्यक्ष (केंद्रीय मंत्री दर्जा ) रहे। उनका करीब 10 बरस का वक्त संगठन में बेहद अहम पदों पर उनका गुजरा। नंद कुमार साय प्रदेश अध्यक्ष जैसे अहम पदों पर रहे। उम्र के इस पड़ाव में बीते करीब तीन साल ऐसे थे, जबकि साय के पास कोई दायित्व नहीं था। नंद कुमार साय को यह तिरस्कार की तरह लगा और यही बीजेपी छोड़ने के निर्णय का सबसे बड़ा कारण भी बना, लेकिन यह इकलौता कारण नहीं था। 



वो आखिरी ढाई घंटे



नंद कुमार साय किस कदर प्रदेश संगठन को अनमना कर चुके थे, उसे समझने के लिए बीजेपी के भीतरखाने का वह किस्सा जान लीजिए, जिससे साय का ड्रॉइंग रूम भी वाकिफ है। साय के इस्तीफे का पत्र लिफाफे में बीजेपी कार्यालय पहुंच गया। करीब ढाई घंटे तक वह पत्र पड़ा रहा। बताते हैं कि यह पत्र संगठन के आला अधिकारी के पास था। इस पत्र में साय का वह नंबर था, जिस पर साय उपलब्ध थे। लेकिन ढाई घंटे तक ना तो वह पत्र देखा गया, ना कोई तवज्जो दी गई। वे ढाई घंटे जैसे ही खत्म हुए। साय के निरंतर संपर्क में रह रहे सीएम भूपेश के करीबी राजधानी के अल्पसंख्यक वर्ग के निर्वाचित युवा नेता उन्हें लेकर चले गए। साय उस राह पर गए, जिसकी बिलकुल विपरीत दिशा पर उनका पूरा राजनैतिक जीवन गुजरा। अगर ढाई घंटे के भीतर वह पत्र पढ़ लिया जाता और तत्काल फोन चला जाता तो दल-बदल की यह खबर प्रदेश की सबसे बड़ी खबरों में नहीं आती।



क्या रहीं साय के जाने की वजहें



एक लंबा अरसा “माननीय” और “सम्माननीय” शब्दों के साथ गुज़ारने वाले नंद कुमार साय का राजनीतिक लालन-पालन प्रशिक्षण जिस गुरुकुल में हुआ, वह कुशाभाऊ ठाकरे, गोविंद सारंग की पीढ़ी से आने वाले लखीराम अग्रवाल थे। नंद कुमार साय लखीराम के दुलारे थे और उनके संरक्षण में वे दिन-दूनी, रात-चौगुनी उस ऊंचाई पर पहुंचते गए कि किसी को भी चकित होना पड़े। जब ऐसा होता है तो महत्वाकांक्षा ज्वार-भाटे की तरह उबाल मारती हैं। राजनीति में महत्वाकांक्षी होना अनिवार्य है, लेकिन बाढ़ भी जरूरी है, पर गैर जरूरी की सफाई भी। नंद कुमार साय शायद यहां चूक गए।

 

साय की नाराजगी शुरू हुई मरवाही चुनाव में। जहां नंद कुमार साय को अजीत जोगी के सामने चुनाव लड़ा दिया गया। नंद कुमार की सीट तपकरा थी, जहां से वे जीतते, लेकिन मरवाही से उन्हें लड़ाया गया। बीजेपी की ओर से इसे यह माना गया कि नकली आदिवासी के सामने असली आदिवासी का चुनाव होगा और साय जीतेंगे। लेकिन अजीत जोगी को मरवाही से हराने का अर्थ यह था कि सूर्य पश्चिम से उदित होता। साय चुनाव हार गए। इस चुनाव हारते ही वे विधानसभा से दूर हो गए, लेकिन बीजेपी सत्ता में आ गई। नंद कुमार साय यह मानते रहे थे और रहे हैं कि उन्हें मरवाही से लड़वाना साजिश थी, ताकि सीएम का पद जो कि साय और उनके समर्थकों के ख़्याल अनुसार बिलकुल तय था, उससे दूर बहुत दूर हो गए। उसके बाद साय को जब अवसर मिला, जब भी जैसा भी, उन्होंने बीजेपी शासन यानी डॉ. रमन सिंह को हमेशा निशाने पर लिया। 



यही वह दौर था जबकि उन्हें लोकसभा राज्यसभा और फिर ट्राइबल कमीशन में केंद्रीय नेतृत्व ने भेजा। लेकिन इन सबके बीच वे बीजेपी प्रदेश में बेहद सधे तरीके से अप्रासंगिक होते गए। इसके पीछे वजह साय के उन बयानों को माना गया जिसमें वे लगातार “रोक-टोक” की बात कहते रहे। हालिया तीन साल में साय के पास ना तो कोई पद और ना ही कोई दायित्व नहीं था। साय ने फिर चेताया कि दल आज भी उन हाथों में हैं, जिनकी वजह से पार्टी 15 के न्यूनतम स्कोर पर विधानसभा में है। वे अटल की बीजेपी की याद दिलाते रहे, लेकिन दौर बदल चुका था। साय और किनारे कर दिए गए। 



अटल की याद के साथ सीएम भूपेश की तारीफें



प्रदेश संगठन की प्रासंगिकता से किनारे किए जा चुके इस बुजुर्ग ने 2018 के बाद कई मौकों पर कई मंचों पर सीएम भूपेश बघेल की खुलकर तारीफ की। राम वन पथ, गाय गोबर गोमूत्र जैसी योजनाओं को लेकर सीएम भूपेश की तारीफ करते हुए साय ने फिर सवाल किया- “यह तो बीजेपी का विषय था, सनातन संस्कृति का विषय था, अटल जी यही तो कहते थे, सही तो करना था, पंद्रह बरस के शासन में हमारी सरकार ने क्यों नहीं किया?” साय ने यह भी कहा- “गौठान जैसी योजनाओं के आंकड़ों को लेकर सरकारी दावे बहुत ज्यादा हो सकते हैं और जमीन पर कम काम हुआ हो ऐसा भी है, लेकिन भूपेश जी ने किया तो.. किसानों की सरकार के रूप में पहचान तो दिला गए।”



चतुर चपल भूपेश ने मौका नहीं गंवाया



मुख्यमंत्री भूपेश बघेल राजनीति में बिलाशक बेहद चपल चतुर हैं। हो सकता है कि वे सियासत की उन विधाओं के विशेषज्ञ ना हों, जिन्हे राजनीति का श्याम चेहरा माना जाता है। लेकिन वे उस अनिवार्य स्याह पक्ष के बेहद काबिल छात्र हैं, जिसमें उनके घोषित अघोषित सलाहकारों का भरपूर संबल हासिल है। यह भी तय ही है कि चुनाव भूपेश के सीएम रहते ही लड़ा जाएगा। सीएम भूपेश यह जानते थे कि साय आदिवासियों के बीच बीजेपी के हितैषी दावे को खारिज करने में पूरी ना सही, लेकिन अहम किरदार निभा सकते हैं। भूपेश चूके नहीं और साय कांग्रेस में चले आए।


Chhattisgarh News छत्तीसगढ़ न्यूज Chhattisgarh Assembly Election 2023 छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 Politics in Chhattisgarh Nand Kumar Sai went to Congress Nand Kumar Sai Resign Controversy छत्तीसगढ़ में राजनीति नंद कुमार साय कांग्रेस में नंद कुमार साय बीजेपी इस्तीफा विवाद