मध्यप्रदेश में चुनाव से पहले ही बिखरने लगे छोटे दल! बीजेपी और कांग्रेस के लिए कैसे बनेंगे चुनौती ?

author-image
Harish Divekar
एडिट
New Update
मध्यप्रदेश में चुनाव से पहले ही बिखरने लगे छोटे दल! बीजेपी और कांग्रेस के लिए कैसे बनेंगे चुनौती ?

BHOPAL. शतरंज की बिसात पर सिर्फ 2 रंग की मोहरें होती हैं। काली और सफेद, लेकिन चुनावी बिसात में रंगों की कोई बाध्यता नहीं होती। बीजेपी और कांग्रेस अपने मोहरे सेट करने में जुट गई हैं। इस बार प्रदेश की सियासी बिसात पर। कुछ नए रंग के मोहरे भी चाल चलने के लिए बेताब हैं। इन मोहरों की मौजूदगी से कांग्रेस और बीजेपी दोनों में कंफ्यूजन है कि अपने मोहरे उतनी ही जगह पर। सेट करें तो करें कैसे। काले सफेद से इतर, यही रंग-बिरंगी मोहरे हैं। जो बड़े दल के रंग में भंग कर रहे हैं, जिनके होना सिर्फ होना भर नहीं है, ये जहां-जहां होंगे, वहां किसी और के खाने पर कब्जा जरूर करेंगे। ये समझना कहां मुश्किल है कि जिसके पास सबसे कम खाने होंगे, चुनावी खेल में मात उसे ही मिलेगी, पर मजेदार बात ये है कि जो छोटे दल चुनाव में बड़ा गेम करते नजर आ रहे हैं। उनकी खुद की चाल ही अभी तय नहीं हो पा रही है।



किंग मेकर बनने के लिए बड़े-बड़े खेल



ये मोहरे कुछ और नहीं, वो सियासी दल हैं जो इस बार मध्यप्रदेश की चुनावी राजनीति में दमखम दिखाने उतरे हैं। इससे पहले तक मध्यप्रदेश की सियासत कांग्रेस और बीजेपी के इर्दगिर्द ही घूमती रही। इक्का-दुक्की सीट ऐसी रहीं जहां कांग्रेस-बीजेपी के अलावा तीसरा और चौथा दल मैदान में रहा। वो भी आमतौर पर सपा या बसपा ही रहे, लेकिन इस बार चुनावी मैदान अलग-अलग सियासी रंग से लबरेज है। यहां बसपा का नीला रंग है तो सपा का लाल रंग भी मौजूद है। इसके अलावा ढेरों नए रंग हैं। अलग-अलग छोटे पॉलिटिकल फ्रंट्स हैं। जो खुद इस बात से वाकिफ हैं कि वो चुनाव लड़ सकते हैं। जीत भी सकते हैं, लेकिन सरकार नहीं बन सकते। पर इसमें भी कोई दो राय नहीं कि वो किंग भले न बने, लेकिन उन्हें किंग मेकर बनने से कोई नहीं रोक पाएगा। हालांकि किंग मेकर बनने की खातिर ही दलों के बीच बड़े-बड़े खेल हो रहे हैं।



मध्यप्रदेश में क्या करेंगे छोटे दल?



इन छोटे दलों की निगेहबानी में क्या बीजेपी पांचवी बार सत्ता में वापसी कर सकेगी। क्या कांग्रेस इन दलों की वजह से फिर हारकर दुबक जाएगी या ये छोटे दल विचारधारा का हवाला देकर अपनी सीटों के साथ कांग्रेस का हाथ पकड़ लेंगे। 5 महीने बाद होने वाले चुनाव में छोटे दल क्या गुल खिलाएंगे। इसको लेकर कई सवाल हैं, सबका अपना एक तरीका है और मतदाताओं को रिझाने का एक पैटर्न है, जिसे देखकर ये अंदाजा लगाया जा रहा है कि इन दलों की आमद यानी अगले चुनाव में कांग्रेस की शामत है, लेकिन ये सब तब होगा जब छोटे दल ही चुनावी फैसलों पर स्थिर नजर आएंगे।



क्या बंट जाएगा वोटर?



जयस, ओबीसी महासभा, चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी और अब भारत राष्ट्र समिति यानी कि बीआरएस भी मैदान में है। इस मान से गिनती करें तो इस बार 1-2 नहीं आधा दर्जन से ज्यादा चुनावी दल मैदान में खड़े नजर आएंगे। इस गिनती में सपा-बसपा के अलावा आम आदमी पार्टी भी शामिल है। जो प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव के साथ बेहतरीन चुनावी आगाज कर चुकी है। इन दलों के लिए ये माना जा रहा है कि इनकी मौजूदगी से बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस को फर्क पड़ेगा। जिसका एक तर्क ये है कि बीजेपी का विकल्प तलाश रहे मतदाता, जो कांग्रेस में नहीं जाना चाहते वो किसी ओर दल को चुन सकते हैं। दूसरा तर्क ये है कि एक बीजेपी को छोड़कर बाकी दल अल्पसंख्यक और दूसरे समुदाय के वोटर्स पार दांव खेल रहे हैं। ऐसे में बीजेपी का वोटर तो वहीं का वहीं रहेगा, लेकिन कांग्रेस का वोटर बंट जाएगा।



छोटे दलों की मौजूदगी से बड़े दल खौफजदा



आकलन चाहे जो हो पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इन दलों की मौजूदगी का जितना डर कांग्रेस को है उतना ही बीजेपी को भी है। ये भी माना जा रहा है कि दोनों दलों की रणनीति इस बार इन दलों की मौजूदगी को समझते हुए ही तैयार की गई है। इन दलों की मौजूदगी से बड़े दल खौफजदा हैं, लेकिन वर्तमान हालात में खुद ही एक दूसरे के दुश्मन बने दिख रहे हैं और शक्ति प्रदर्शन के जरिए एक-दूसरे को अपनी ताकत का अहसास करवा रहे हैं। सबसे पहले 7 जनवरी को भोपाल के जंबूरी मैदान में करणी सेना का 3 दिवसीय आंदोलन हुआ। 10 फरवरी को आदिवासी सुरक्षा मंच ने भोपाल में 80 हजार आदिवासियों के साथ डी-लिस्टिंग रैली निकाली। भोपाल के गोविंदपुरा दशहरा मैदान में 11 फरवरी को भीम आर्मी और पिछड़ा वर्ग की अधिकार रैली हुई। 14 मार्च को आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल की सरपरस्ती में भी आंदोलन हुआ।



मध्यप्रदेश में BRS की एंट्री



अब मध्यप्रदेश में भारत राष्ट्र समिति ने प्रदेश में दस्तक दे दी है। जयस यानी कि जय युवा आदिवासी संगठन से जुड़े आनंद राय ने 5 पदाधिकारियों समेत बीआरएस जॉइन कर ली और ये ऐलान कर दिया कि थर्ड फ्रंट को लीड करने का काम बीआरएस ही करेगी। आनंद राय और हीरालाल अलावा की वजह से जयस पहले ही दोफाड़ हो रही थी। अब तो एक और दल ने दस्तक दे दी है। तकरीबन एक सा एजेंडा होने के बावजूद ओबीसी महासभा, भीम आर्मी जैसे संगठन एक मंच पर साथ नहीं आ पा रहे। अभी तो इन संगठनों की स्थिति ही डांवाडोल नजर आती है। भले ही बंटे हुए हों, लेकिन इनकी मौजूदगी को आंख बंद कर अनदेखा करने की गलती भी नहीं की जा सकती।



द सूत्र का स्पेशल प्रोग्राम न्यूज स्ट्राइक देखने के लिए क्लिक करें.. NEWS STRIKE



मध्यप्रदेश में छोटे दलों का क्या होगा?



कहते हैं ना, बंद मुट्ठी लाख की खुल गई तो खाक की। अब ये छोटे दल और संगठन एकजुट होकर थर्ड फ्रंट बनाते हैं तो कोई दो राय नहीं कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों का गणित खराब कर सकते हैं, लेकिन अभी उसकी कमी तो साफ नजर आती है। आने वाले चुनाव इन दलों की वजह से कांग्रेस और बीजेपी के हालात तो बदलेंगे ही, ये भी तय कर देंगे कि प्रदेश में इन दलों का सियासी भविष्य क्या होने वाला है। आप सहित दूसरे दल और संगठन मध्यप्रदेश में लंबी रेस के घोड़े साबित होंगे, या फिर बस वन इलेक्शन वंडर बनेंगे और फिर सियासी गुबार में खो जाएंगे।


CONGRESS कांग्रेस Madhya Pradesh Assembly elections मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव Aam Aadmi Party आम आदमी पार्टी BJP बीजेपी Small parties in Madhya Pradesh मध्यप्रदेश में छोटे दल