कर्नाटक चुनाव के बाद मध्यप्रदेश का परिवेश कुछ बदला-बदला सा है

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Rajeev Khandelwal
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कर्नाटक चुनाव के बाद मध्यप्रदेश का परिवेश कुछ बदला-बदला सा है

BHOPAL. साल 2023 में होने वाले मध्यप्रदेश विधानसभा के चुनाव परिणाम का आकलन आरंभ किए हुए साढ़े 3 महीने व्यतीत हो चुके हैं। कर्नाटक चुनाव के बाद परिवेश कुछ बदला-बदला सा है। एक तरफ देवास के पूर्व महापौर शरद पाचुनकर के भी विद्रोही तेवर देखने को मिले हैं। पूर्व सांसद वरिष्ठ नेता रघुनंदन शर्मा के तीखे तेवर तीखे होते जा रहे हैं। पूर्व मंत्री चौधरी चंद्रभान सिंह छिंदवाड़ा भी रघुनंदन शर्मा की राह पर ही है। हरदा से कमल पटेल के खास जाट नेता दीपक जाट और बालाघाट की पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष अनुमा मुंजारे जो बालाघाट के पूर्व सांसद और विधायक की धर्मपत्नी हैं, के साथ बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने की वही प्रक्रिया का हिस्सा हैं जो कि पिछले कुछ समय से मध्यप्रदेश में चल रही है।



भोपाल में जाट महासम्मेलन



सतना के पूर्व मंत्री सईद अहमद जो की पूर्व स्पीकर गुलशेर अहमद के पुत्र हैं, की पुनः कांग्रेस में वापसी हुई है। भोपाल में हुई जाट महासम्मेलन में कमल पटेल का दिल्ली के जाट विधायक भूपिंदर सिंह के साथ किए गए दुर्व्यवहार से जाट समुदाय में उत्पन्न रोष प्रदेश में कितना विपरीत प्रभाव डालेगा, यह भी देखने की बात होगी। तो दूसरी ओर कर्नाटक में बीजेपी की भारी हार के बावजूद आशा के विपरीत अम्बाह विधानसभा के कांग्रेस के पूर्व विधायक और बसपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रह चुके, कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए हैं। इसलिए कहा जाता है कि राजनीति में अंक गणित 2 गुणा 2 बराबर 4 नहीं चलता है, जैसे कि मैं पहले ही इस बात का उल्लेख कर चुका हूं।



घोषणावीर का तमगा मजबूत कर रहे सीएम शिवराज



जैसे-जैसे चुनावी दंगल का समय नजदीक आता जा रहा है, प्रदेश के मुख्यमंत्री अब कुछ न कुछ नई योजनाओं की घोषणा कर अपने सिर पर पहले से ही धारण 'घोषणावीर' के मुकुट (तमगा) को दिन प्रतिदिन मजबूती प्रदान करने का प्रयास कर रहे हैं। इससे वे 2 संदेश देने का प्रयास कर रहे हैं। एक जनता के बीच उनकी पैठ मजबूत दिखे, दूसरी जनता के बीच की यह पैठ हाईकमान को भी दिखे ताकि कर्नाटक की हार का चाबुक शिवराज सिंह पर न चल सके। 'केवट जयंती' के कार्यक्रम में सभी तालाबों का पहला हक मछुआरों का होने की घोषणा मुख्यमंत्री ने की है। मछुआरों का क्रेडिट कार्ड बनवाया जा रहा है। भगवान निषाद राज की स्मृति में निषाद राज स्मारक बनाया जायेगा। मूर्ति लगाई जाएगी।



सीखो और कमाओ योजना



युवाओं को सीखने और कमाकर आत्मनिर्भर बनाने की 'सीखो और कमाओ' की नई युवा 'क्रांतिकारी योजना' की घोषणा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने की है। इसमें ट्रेनिंग के दौर में 8 से 10 हजार रुपए प्रतिमाह स्टाइपंड दिया जाएगा। 18 से 29 साल के युवाओं को इस योजना में जोड़ना है। अशिक्षित नहीं, शिक्षित युवा ही इसका फायदा उठा पाएगा। यह स्वरोजगार योजना है, नौकरी की नहीं। प्रारंभिक 1 लाख लोगों को यह ट्रेनिंग देने का लक्ष्य रखा गया है। 1 जून को भोपाल के भारतीय संघ के विलीन गण की याद में 'गौरव दिवस' मनाने की भी घोषणा की है। जाट महासम्मेलन में वीर तेजाजी कल्याण बोर्ड के गठन की घोषणा की। दिसम्बर 2022 तक की समस्त अवैध कॉलोनियों को वैध करने का भी ऐलान किया गया है।



तैयार हो रहा 'चुनावी पुलाव'



इस प्रकार एक पर एक छोटे से छोटे वर्ग के लिए भी छोटी से लेकर बड़ी योजनाओं की घोषणा करने का कोई अवसर शिवराज सिंह चूक नहीं रहे हैं, बल्कि नए-नए अवसर ढूढ रहे हैं और न होने पर पैदा कर रहे हैं। जैसे विभिन्न जाति, समाज के लिए बोर्ड के गठन की घोषणाएं। इस प्रकार घोषणाओं की झड़ी सी लग गई है। इससे यह स्पष्ट है कि मुख्यमंत्री का आत्मविश्वास कुछ न कुछ डगमगाया जरूर हुआ है जिसकी पूर्ति के लिए वे अनाप-शनाप घोषणाएं किये जा रहे हैं, जिनकी लागू होने की बात पर गंभीर प्रश्न चिन्ह लगाए जा सकते हैं। प्राथमिक आपत्ति तो ये घोषणाएं बीते 4 साल की अवधि में क्यों नहीं की गई? चुनाव के 6 महीने पूर्व किया जाना पूर्णतः वास्तविक जरूरत न होकर 'चुनावी पुलाव' तैयार करना वैसा ही है।



अंदरखाने से आ रही एक खबर



कांग्रेस के अंदरखाने से यह खबर छन-छनकर आ रही है कि जिस प्रकार कर्नाटक के चुनाव में कांग्रेस के लिए परदे के पीछे रहकर सुनील कानुगोलू ने सुनिश्चित नीति, योजना बनाकर धरातल लागू करवाई उसी व्यक्ति की सेवाएं मध्यप्रदेश में कमलनाथ ने आगामी होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए ली हैं। इस प्रकार प्रशांत किशोर टीम का एक सदस्य अपना नया 'बोर्ड' स्थापित करने में सफल हुआ है। मध्यप्रदेश के चुनाव में कितना प्रभावी होगा यह वक्त ही बताएगा।



कमलनाथ ने की बीजेपी को घेरने की तैयारी



कमलनाथ ने बीजेपी को 'घेरने' के लिए बीजेपी के भ्रष्टाचारों, घोटालों अनिमितताएं कुप्रबंधन 343 दिन की एक-एक बुकलेट तैयार की है जिसे प्रदेश के घर-घर तक पहुंचाया जाएग। कमीशनखोरी के मुद्दे पर कर्नाटक की तर्ज पर पेसीएम कैंपेन का नया वर्जन तीव्रता से सामने लेकर आएगा। साथ ही 1984 के सिख दंगों में कमलनाथ की भूमिका को लेकर फिर से कुछ पुराने पन्ने पलटे जाएंगे, जिसका किस प्रकार कांग्रेस जिसके अघोषित मुख्यमंत्री के चेहरे कमलनाथ हैं, कैसे सामना करेगी, यह देखना भी कम दिलचस्प नहीं होगा।



अर्थात कमलनाथ सरकार!



अभी तक के बीजेपी के प्रयास फलीभूत होते दिख नहीं रहे हैं। इसलिए परिणामों का जो आकलन पिछली बार किया था, अभी भी वही दिख रहा है। अर्थात कमलनाथ सरकार! हां पिछले 2 दिन से जिस तेजी से राजनीतिक पटल पर बीजेपी संगठन के प्रदेश नेतृत्व और सरकार के नेतृत्व परिवर्तन की जो आंधी चली, यद्यपि अभी उस पर अवश्य कुछ विराम सा लगा है। तथापि यदि परिवर्तन हुआ तो निश्चित रूप से परिणाम उलटते  देर नहीं लगेगी। क्योंकि तब कांग्रेस के अंदर कमलनाथ के खिलाफ चल रही गुटबाजी का भी विपरीत प्रभाव दोगुना हो जाएगा।


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