मनीष गोधा, JAIPUR. राजस्थान में कांग्रेस ने 13 निर्दलियों और बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर जीतकर आए 6 विधायकों के समर्थन से 5 साल तक सफलतापूर्वक सरकार तो चला ली, लेकिन अब फिर चुनाव की बेला और सरकार को समर्थन देने वाले ये विधायक अब पार्टी से टिकट के दावेदार बन गए हैं। ऐसे में पार्टी के सामने कुछ अजीब स्थिति बनती दिख रही है, क्योंकि इनमें से कई तो कांग्रेस के ही अधिकृत उम्मीदवार को हराकर विधानसभा में पहुंचे थे। ऐसे में अब पार्टी के लिए इन सीटों पर प्रत्याशी तय करना मुश्किल होता दिख रहा है।
पिछले चुनाव में 99 के फेर में अटकी थी कांग्रेस
राजस्थान में पिछले चुनाव में कांग्रेस 99 के फेर में अटक गई थी। पार्टी को 200 में से 99 सीट मिली थी। भरतपुर की सीट पर पार्टी ने राष्ट्रीय लोकदल से गठबंधन किया था, इसलिए 100 का आंकड़ा तो बैठ गया था, लेकिन बहुमत पाने के लिए पार्टी को जीतकर आए निर्दलियों का साथ लेना पड़ा। पिछले चुनाव में 13 निर्दलीय जीतकर आए थे और इन सभी ने हर संकट के समय पार्टी का साथ दिया। पार्टी पर जब राजनीतिक संकट आया तब भी ये साथ दिखे। इसके बाद राज्यसभा चुनाव में भी इन्होंने कांग्रेस के पक्ष में वोट दिए। सरकार को और मजबूती देने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़कर आए 6 विधायकों को भी कांग्रेस में शामिल कराया। इस तरह सत्ता में आने के कुछ समय बाद ही पार्टी के पास 119 विधायकों का समर्थन हो गया था। हालांकि बाद में तो कांग्रेस ने उपचुनाव में जीत हासिल की और खुद अपने दम पर ही बहुमत हासिल कर लिया।
जीतकर आए थे ये निर्दलीय
पिछले चुनाव में किशनगढ़ से सुरेश टांक, बहरोड से बलजीत यादव, थानागाजी से कांतिप्रसाद, कुशलगढ़ से रमिला खड़िया, महवा से ओमप्रकाश हुडला, गंगानगर से राजकुमार गौड़, बस्सी से लक्ष्मण मीणा, दूदू से बाबूलाल नागर, शाहपुरा से आलोक बेनीवाल, मारवाड़ जंक्शन से खुशबीर सिंह, गंगापुर सिटी से रामकेश मीणा, खण्डेला से महादेव सिंह और सिरोही से संयम लोढ़ा ने जीत हासिल की थी। इनमें से बलजीत यादव, ओमप्रकाश हुडला, आलोक बेनीवाल ऐसे हैं जिनका सीधा मुकाबला कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशियों से हुआ और ये उन्हें हराकर विधानसभा में पहुंचे। वहीं बाबूलाल नागर, खुशबीर सिंह, रामकेश मीणा, महादेव सिंह और संयम लोढ़ा ऐसे निर्दलीय विधायक थे, जिनके मैदान में उतरने के कारण पार्टी का अधिकृत प्रत्याशी तीसरे स्थान पर चला गया।
बसपा से ये आए थे जीतकर
निर्दलियों के अलावा कांग्रेस ने बसपा से आए विधायकों का भी समर्थन लिया था। इनमें राजेन्द्र गुढ़ा उदयपुरवाटी से, दीपंचद खेरिया किशनगढ़बास से, संदीप यादव तिजारा से वाजिब अली नगर से, जोगिंदर अवाना नदबई से और लाखन सिंह करौली से जीतकर आए थे। इनमें से संदीप यादव और लाखन सिंह कांग्रेस के प्रत्याशी को सीधे संघर्ष में हराकर विधायक बने थे, वहीं राजेन्द्र गुढ़ा, जोगिंदर अवाना और दीपचंद खैरिया की सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी को तीसरे स्थान पर जाना पड़ा।
अब ये बताए जा रहे हैं दावेदार
सरकार को समर्थन देने के एवज में ये विधायक हालांकि सरकार से मंत्री पद की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन इन 19 में से मंत्री पद सिर्फ राजेन्द्र गुढ़ा को नसीब हो पाया जो अब सरकार से बर्खास्त होकर पूरी तरह सरकार के खिलाफ हो चुके हैं। वहीं अन्य में से ज्यादातर को सरकार ने बोर्ड निगमों में नियुक्तियां देकर संतुष्ट किया। अब इनमें से सुरेश टांक, बलजीत यादव और ओमप्रकाश हुडला और राजेन्द्र गुढ़ा को छोड़कर सभी कांग्रेस से टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। हालांकि ये तीनों भी पूरी तरह से कांग्रेस से दूर हों, ऐसा नहीं कहा जा सकता।
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इन सीटों के कांग्रेस प्रत्याशी पहले भी कर चुके हैं विरोध
निर्दलियों और बसपाई विधायकों की सीटों पर रहे कांग्रेस प्रत्याशी इन विधायकों का विरोध कर चुके हैं। जुलाई 2020 में सरकार पर आए संकट के बाद इनमें से 16 प्रत्याशी दिल्ली तक पहुंच गए थे और ये शिकायत पहुंचाई थी कि उनके क्षेत्रों में पार्टी के अधिकृत प्रत्याशियों की अनदेखी हो रही है। सबकुछ हमें हराकर विधायक बने निर्दलियों के कहने से कराया जा रहा है। हालांकि इस शिकायत पर कुछ हुआ नहीं, लेकिन अब जब टिकट बांटे जाएंगे तो ये संघर्ष फिर उभरकर आएगा। इस मामले में एक पेंच ये भी है कि जो 10 निर्दलीय जीतकर आए हैं, वे पूर्व में कांग्रेस में रह चुके हैं और टिकट नहीं मिलने पर बागी के रूप में चुनाव मैदान में थे। इनमें से ज्यादातर अशोक गहलोत के नजदीकी हैं और अब ये देखना दिलचस्प रहेगा कि पार्टी इन निर्दलियों और बसपाई मूल के विधायकों को चुनती है या पार्टी के कार्यकर्ता को चुनती है। इस बारे में पार्टी के प्रदेश महासचिव आरसी चौधरी का कहना है कि पार्टी ने टिकट वितरण की प्रक्रिया शुरू कर दी है और भी प्रत्याशी जनता की आवाज के रूप में सामने आएगा और जिताऊ होगा, उसे पार्टी टिकट देगी, फिर चाहे वो निर्दलीय ही क्यों ना हो।