BHOPAL. मध्यप्रदेश की सियासत इस बार इतनी फिल्मी होती जा रही है कि जितनी बार कुछ बात करने बैठता हूं कोई न कोई फिल्मी गाना या डायलॉग याद आ ही जाता है। वैसे 2018 के चुनाव के बाद उपचुनाव हुए और जो तख्ता पलट हुआ उसका आगाज भी तो एक फिल्मी डायलॉग से ही हुआ कि टाइगर अभी जिंदा है। अब टाइगर टाइगर रहे या नहीं रहे या अपनी दहाड़ को किसी खास वक्त के लिए संभाल कर रखे हुए हैं। फिलहाल तो प्रदेश में टॉम एंड जैरी वाला हाल दिख रहा है। कभी जैरी इस बात का ताना मारता है कि जहां मैं जाती हूं वहीं चले आते हो तो कभी टॉम आगाह करता कि तू चल मैं आई। अब टॉम कौन है और जैरी कौन है, ये तय करना मैं आप लोगों पर छोड़ता हूं। फिलहाल तो ये समझिए कि सियासत की ये दौड़ क्या है और किसके बीच जारी है।
चुनावी साल में घोषणा पर घोषणा होना आम बात है
मध्यप्रदेश में घोषणाओं का बाजार सजा है। इस बाजार में जब जी चाहा एक राजनैतिक दल आता है। किसी तबके, किसी वर्ग, किसी समाज के लिए अपने नए प्रोडक्ट की बोली लगाता है और चला जाता है। चुनावी साल में घोषणा पर घोषणा होना आम बात है, लेकिन जिस रफ्तार से मध्यप्रदेश में घोषणाएं हो रही हैं वो चुनाव जीतने की होड़ से कम नजर नहीं आतीं। घोषणाएं भी छोटी मोटी नहीं हैं उनका आकार हजार करोड़ तक पहुंच रहा है। खजाना खाली है। ऐसे में कांग्रेस और बीजेपी सरकार में जो भी आती है, वो जनता को किए वादे कैसे निभाएगी। और अगर वादे निभाएगी तो बाकी काम कैसे पूरे होंगे ये भी घोषणाओं के साथ तय होना चाहिए, लेकिन कमलनाथ और शिवराज सिंह चौहान शायद इस बात से फिलहाल बेफिक्र है। दोनों की पहली चिंता सिर्फ चुनाव जीतना है। उसके बाद ये तय करेंगे कि अब उन घोषणाओं का किया क्या जाए जो बड़े जोरशोर से पहले ही जनता की सामने कर चुके हैं।
बोली के बाजार में शिवराज तो कभी कमलनाथ नया शगूफा छोड़ रहे
जी हां, मध्यप्रदेश में सचमुच घोषणाओं का बाजार ही सजा है। होलसेलर हैं पूर्व सीएम कमलनाथ और सीएम शिवराज सिंह चौहान। खरीदार है जनता जिसे इस बाजार में क्या पसंद आया इसका खुलासा नवंबर तक होगा। फिलहाल इस बाजार का आलम ये है कि रोज एक नई बोली लगती है। कभी शिवराज तो कभी कमलनाथ बोली के इस बाजार में नया शगूफा छोड़ते हैं और दूसरा उस बोली से बड़ी बोली लगाने आ जाता है। बिना ये सोचे की जो बात वो बोल रहे हैं उसे पूरा करने में उन्हें कितने पापड़ बेलने पड़ेंगे। आलम तो अभी ये है कि दोनों एक दूसरे को चैलेंज भी कर रहे हैं कि मैंने तो इतना कर दिखाया अब तुम करके दिखाओ। चुनावी शोरूम में इस बार घोषणा ही शक्ति प्रदर्शन का आधार बनी है।
कुछ तबके अब भी मांगें पूरी होने के इंतजार में है
एक ही दिन पहले की बात है मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश की 23 हजार ग्राम पंचायतों में काम करने वाले रोजगार सहायकों का वेतन 9 हजार से बढ़ाकर 18 हजार रुपए कर दिया। पंचायत सचिवों के बराबर सुविधाएं देने का वादा भी कर दिया। जाहिर है रोजगार सहायकों के लिए ये खुशखबरी है। पर सवाल ये है कि इस घोषणा के लिए चुनावी साल तक इंतजार क्यों किया गया। हालांकि, अतिथी शिक्षक जैसे तबके अब भी मांगे पूरी होने के इंतजार में हैं, लेकिन बाकी जगह दिल खोलकर सौगातें दी जा रही हैं। चुनाव जीतने के लिए ऐसा कोई तबका नहीं बचेगा जिसे शिवराज छोड़ देना चाहते हों।
शिवराज की ‘चुनावी सौगात’
- स्वतंत्रता संग्राम और लोकतंत्र सेनानियों को 25 हजार की जगह 30 हजार राशि प्रतिमाह।
इन सबके अलावा अलग वर्गों के आयोग और चुनाव के लिहाज से उनकी डिमांड पूरी करने का ऐलान भी हो चुका है। बीजेपी को पूरा यकीन है कि इन योजनाओं के दम पर बीजेपी की वापसी आसान होगी।
घोषणाओं की चूहा-बिल्ली की दौड़ में कोई पीछे नहीं है
घोषणाओं के बाजार में चूहा बिल्ली की दौड़ का असल नमूना दिखा लाड़ली बहना और नारी सम्मान योजना के जरिए। शिवराज सिंह चौहान ने लाड़ली बहना के तहत 1 हजार रुपए देने का ऐलान किया तो कमलनाथ ने सत्ता में आने पर नारी सम्मान योजना के तहत 15 सौ रुपए देने का ऐलान कर दिया। लाड़ली बहना की पहली किश्त अदा करते ही बीजेपी ने उसे प्रतिमाह 3000 करने का ऐलान किया और कमलनाथ को भी चैलेंज कर दिया। हालांकि, चुनावी वादे करने में कांग्रेस भी बहुत पीछे नहीं है।
कमलनाथ की चुनावी सौगात
- महिला को प्रतिमाह 1500 रु. देने का ऐलान।
इनमें से पुरानी पेंशन योजना, किसान कर्ज माफी और नारी सम्मान को कमलनाथ का मास्टर स्ट्रोक भी माना जा रहा है।
2022-23 में 14 हजार करोड़ का कर्ज मध्यप्रदेश सरकार ले चुकी है
समस्या ये है कि एक के बाद एक मास्टर स्ट्रोक खेलने के चक्कर में दोनों दल घोषणा पर घोषणा कर रहे हैं। कर्ज का हाल ये है कि वो आम जनता की सोच से भी कहीं ज्यादा हो चुका है। ताजा बजट की ही बात करें तो मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने 3 लाख 14 हजार 25 करोड़ का बजट पेश किया है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में प्रदेश का राजकोषीय घाटा 55709 करोड़ रुपए रहने का अनुमान लगाया गया है। इसके अलावा कर्ज की बात करें तो साल 2022-23 में 14 हजार करोड़ का कर्ज मध्यप्रदेश सरकार ले चुकी है। 31 जनवरी को भी सरकार ने रिजर्व बैंक में बांड गिरवी रखकर दो हजार करोड़ का कर्ज लिया था। साल 2023 तक आरबीआई का सरकार को कर्ज चुकाना होगा। कर्ज तले दबी शिवराज सरकार को तीन लाख करोड़ रुपए लोन चुकाने के लिए हर साल 46 हजार करोड़ रुपए देने पड़ रहे हैं। अब अगली सरकार जो भी होगी वो इस भारी भरकम कर्ज के तले दबी सरकार होगी। जिस पर उन योजनाओं का बोझ भी पड़ चुका होगा। तो क्या जो सरकार आएगी वो कर्ज और योजनाओं का बोझ उतारने में ही वक्त गंवा देगी। बाकी कामों के लिए क्या इंतजाम हो सकेंगे।
बड़ा सवालः इस घाटे के बीच जो पार्टी सत्ता में आएगी उसके लिए पांच साल गुजारना कितना आसान होगा?
बड़ा सवाल इसलिए भी है क्योंकि अब घोषणा होना और उन्हें पूरी करने की कवायद करना टू मिनट नूडल्स की तरह हो चुका है। सरकार बने चंद घंटे हुए नहीं कि पहली ही बैठक के बाद वादे पूरे करने की होड़ भी लग ही चुकी है। कर्नाटक में कांग्रेस ने यही कर दिखाया है। शिवराज सिंह चौहान भी सत्ता में वापसी के साथ ही एक्शन मोड में आने जैसे काम करके छोड़ चुके हैं। ये प्रेशर भी आने वाली सरकार को झेलना ही होगा। अभी ऐलान पर ऐलान हो रहे हैं। सरकार बनने के बाद कहीं ऐसा न हो कि दस्तखत पर दस्तखत करने से पहले सोचने समझने में ही वक्त निकल जाए। जाते-जाते एक बार फिर वही सवाल जो भी सरकार बनेगी वो मध्यप्रदेश की जनता की सुध लेगी या कर्ज से उभरने की जुगत लगाती रहेगी।