BHOPAL. क्रिकेट के मैदान में जब हैट्रिक होती है तो तालियों की आवाज गूंजती है, लेकिन मध्यप्रदेश में कांग्रेस को अब हैट्रिक से डर लगने लगा है। अब यही डर उम्मीदवारों की नींद उड़ा रहा है क्योंकि अब ऐसे उम्मीदवारों को कांग्रेस टिकट की लिस्ट से बेदखल करने की पूरी तैयारी कर चुकी है। ये नई रणनीति उन उम्मीदवारों पर भारी पड़ने वाली है जो बीते तीन चुनाव से कांग्रेस को कोई अच्छी खबर नहीं दे सके हैं। ऐसे उम्मीदवारों पर कमलनाथ ने सख्त फैसला लेने का मन पक्का कर लिया है।
कांग्रेस को जीत छोटी नहीं मोटी चाहिए ताकि सरकार न गिर सके
मध्यप्रदेश में जीत की खातिर कांग्रेस की छटपटाहट लगातार बढ़ रही है। कांग्रेस का हाल फिलहाल उस शेर की तरह है जिसके पंजों से उसी का शिकार छीनकर ले जाया गया है। अब शेर घायल है और बदले को बेताब है। इस बार कांग्रेस हर हाल में जीत चाहती है। जीत भी छोटी मोटी नहीं, बल्कि एक ऐसे मार्जिन से जीत कि सरकार गिरने का डर ही खत्म हो जाए। इसकी शुरूआत भी अपनों की ही कुर्बानी के साथ होगी। जीत के इस यज्ञ में बहुत से उम्मीदवारों की आहुति देने के लिए तैयार है कांग्रेस। फिर चाहें वो उम्मीदवार कमलनाथ या दिग्विजय सिंह का ही खास या नजदीकी क्यों न हो। उसका टिकट काटने में देर नहीं की जाएगी।
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कोशिशों के बावजूद हाथ नहीं आ रही सीटों पर कांग्रेस का निशाना
फॉर्मूला तय है, ऐतराज हैट्रिक से है। लगातार हार रही सीटों पर अब उम्मीदवार सिर्फ अपने रसूख या बड़े नेता की सिफारिश से टिकट हासिल नहीं कर सकेगा। क्योंकि इस बार सिर्फ सत्ता या पार्टी दांव पर नहीं है बल्कि, दो दिग्गज कांग्रेसियों का तजुर्बा, पकड़ और मैनेजमेंट भी दांव पर है। जिससे समझौता करना यानी अपने सियासी करियर पर बड़ा दाग लगाने के बराबर है। सरकार बनने के बाद भी सत्ता न संभाल पाने का दाग तो लग ही चुका है। अब उस दाग को सख्ती के वॉशिंग पाउडर से मिटाने की तैयारी है। जिसके लिए स्टेपवाइज रणनीति तैयार कर ली गई है। जिसके तहत सबसे पहले निशाने पर आएंगी वो सीटें जो बार-बार की कोशिशों के बावजूद कांग्रेस के हाथ नहीं आ रही हैं।
एक्टिव को ही टिकट, चाहे वह समाजसेवा-उद्योगपति या शिक्षाविद हो
साल 2023 में जीत के लिए कांग्रेस का फोकस उन सीटों पर है जहां लगातार हार पर हार मिल रही हैं। अब इन सीटों पर अगर ऐसा कोई प्रत्याशी है जो हर बार टिकट लेता है, लेकिन सीट नहीं निकाल पा रहा तो उसे इस बार टिकट मिलना मुश्किल है। ऐसी सीटों की लिस्ट तैयार हो चुकी है। इन सीटों में सागर, नरयावली, रहली, दतिया, बालाघाट, रीवा, सीधी, मानपुर, भोजपुर, नरेला, हुजूर, गोविंदपुरा, बैरसिया, धार, इंदौर-दो, इंदौर-चार, इंदौर पांच, महू, शिवपुरी, गुना, ग्वालियर ग्रामीण, बीना, पथरिया, हटा, चांदला, बिजावर, रामपुर बघेलान, सिरमौर, सेमरिया, त्यौंथर, सिंगरौली, देवसर, धौहनी, जयसिंहनगर, जैतपुर, बांधवगढ़, मुड़वारा, जबलपुर केंट, पनागर, सिहोरा, परसवाड़ा, सिवनी, आमला, हरसूद, टिमरनी, सिवनी मालवा, होशंगाबाद (नर्मदापुरम), सोहागुपर, पिपरिया, कुरवाई, शमशाबाद, बुधनी, आष्टा, सीहोर, सारंगपुर, सुसनेर, शुजालपुर, देवास, खातेगांव, बागली, खंडवा, पंधाना, बुरहानपुर, उज्जैन उत्तर, उज्जैन दक्षिण, मंदसौर, रतलाम सिटी, मल्हारगढ़, नीमच, जावद जैसी सीटों के नाम शामिल हैं। इन सीटों पर कमलनाथ के सर्वे और दिग्विजय सिंह की सलाह के आधार पर नाम तय होंगे। ये भी संभावना है कि टिकट किसी पुराने कांग्रेसी की जगह नए समाजसेवी, उद्योगपति या शिक्षाविद को मिल जाए जो सीट पर लगातार एक्टिव हो।
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कांग्रेस ताकतवर चेहरों के खिलाफ दांव लगा सकती है
- लगातार हार रही इन सीटों में से नौ चुनिंदा सीटों पर कांग्रेस खास रणनीति बना रही है। इन सीटों पर बीजेपी के दिग्गज लगातार जीतते रहे हैं। अब उन्हें उनके गढ़ में घेरने के लिए कुछ ताकतवर चेहरों पर दांव लगाया जा सकता है...
कमलनाथ 37 विधायकों को तैयारी के लिए हरी झंडी दे चुके हैं
अंदर की कुछ खबरें तो ये भी हैं कि कांग्रेस कुछ मौजूदा विधायकों को हरी झंडी भी दे चुकी है। सर्वे के आधार पर तकरीबन 37 विधायकों को कमलनाथ तैयारी करने के लिए हरी झंडी दे चुके हैं। इसके अलावा जिन पूर्व मंत्रियों की रिपोर्ट बेहतर मिली है उन्हें और ज्यादा ताकत से क्षेत्र में जुट जाने के लिए कह दिया गया है। अब ये रणनीति बीजेपी के खिलाफ कितनी कारगर साबित होगी ये बड़ा सवाल है।
चुनाव में अब बमुश्किल तीन महीने बचे हैं। कुछ ही दिनों में कांग्रेस-बीजेपी दोनों के टिकट की लिस्ट सबके सामने होगी।
कांग्रेस में सतह पर तो खामोशी है, अंदर करंट हो ये बात अलग है
चुनाव के इतने नजदीक पहुंच कर भी कांग्रेस पूरी तरह खामोश नजर आ रही है। अमित शाह के चंद दौरों से बीजेपी का माहौल बदला हुआ दिखता है। चुनावी रफ्तार भी तेज नजर आती है। इससे उलट कांग्रेस का पानी ठहरा हुआ दिख रहा है। अब खामोशी सिर्फ सतह पर पसरी है और अंडर करंट तेज है तो बात अलग है। क्योंकि सिर्फ ताकतवर प्रत्याशी चुनकर जीत हासिल करना आसान नहीं है। ठंडा चुनाव प्रचार सारे सर्वे और रणनीतियों की मेहनत पर पानी फेर सकता है।