BHOPAL. मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ और उनके बेटे नकुलनाथ के कमल दल ( बीजेपी ) में जाने की अटकलें सही साबित होने वाली हैं। आज का दिन बड़ा सियासी संडे साबित होने वाला है। यह बदलाव राजनीतिक रूप से अब तक का सबसे बड़ा होगा। इसके कई मायने हैं। इसके लिए हम 77 साल के कमलनाथ के बारे में वो सब बता रहे हैं, जो हर कोई जानना चाहता है। मसलन, उनके जन्म से लेकर अबतक के राजनीतिक करियर की पूरी कहानी।
दून में हुई संजय गांधी से मुलाकात
18 नवंबर 1946 को उत्तर प्रदेश के कानपुर में जन्मे कमलनाथ की शुरुआती शिक्षा वहीं हुई। पिता महेंद्र नाथ की इच्छा थी कि बेटा वकील बने, लेकिन कमलनाथ की किस्मत में तो कुछ और ही लिखा था। कमलनाथ की मुलाकात देहरादून स्थित दून स्कूल में इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी से हुई थी। वहीं से उनकी राजनीति में एंट्री की नींव तैयार हुई थी।
आगे की पढ़ाई के लिए कोलकाता गए, पर मिलते रहे
दून के बाद कमलनाथ आगे की पढ़ाई के लिए कोलकाता के सेंट जेवियर्स कॉलेज चले गए। तब संजय गांधी और कमलनाथ एक-दूसरे से दूर हो गए थे, लेकिन दोस्ती पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। दोनों को जब भी मौका मिलता, वे एक-दूसरे से मिलने पहुंच जाते थे।
दून स्कूल से शुरू हुई दोस्ती, मारुति कार बनाने के सपने के साथ-साथ युवा कांग्रेस की राजनीति तक जा पहुंची थी। संजय के ही आग्रह पर 22 साल की उम्र में कमलनाथ ने 1968 में युवा कांग्रेस से राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी।
पत्रकार विनोद मेहता ने अपनी किताब संजय गांधी- अनटोल्ड स्टोरी में लिखा है कि यूथ कांग्रेस के दिनों में संजय गांधी ने पश्चिम बंगाल में कमलनाथ को सिद्धार्थ शंकर रे और प्रियरंजन दासमुंशी को टक्कर देने के लिए उतारा था। कमलनाथ का कोलकाता में ही कारोबार भी था।
कमलनाथ और संजय गांधी के दोस्ती सियासी गलियारों में खूब चर्चित रही।
संजय गांधी के लिए जज से झगड़कर पहुंच गए थे तिहाड़ जेल
जब इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाई, तब भी कमलनाथ और संजय गांधी की दोस्ती में कोई कमी नहीं आई। इमरजेंसी के चलते 1977 में कांग्रेस को आम चुनावों में हार का सामना करना पड़ा। केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी। इस सरकार ने इंदिरा गांधी और संजय गांधी को परेशान करना शुरू कर दिया।
इससे कमलनाथ इंदिरा गांधी की गुड बुक में आए
एक घटना में संजय गांधी को जनता पार्टी की सरकार ने तिहाड़ जेल भेज दिया। तब इंदिरा गांधी को संजय गांधी की सुरक्षा की चिंता हुई। ऐसे में कमलनाथ आगे आए। संजय गांधी के पास जाने के लिए वे जानबूझकर एक जज से भिड़ गए। अवमानना के आरोप में कमलनाथ को तिहाड़ जेल भेज दिया गया। जेल में संजय गांधी और कमलनाथ साथ-साथ रहे। इस वाकये से कमलनाथ इंदिरा गांधी की गुड बुक में आ गए थे।
जनता पार्टी सरकार गिराने में भी संजय के साथ कमलनाथ की भी रही भूमिका
1977 में देश में बनी पहली गैर-कांग्रेसी सरकार गिराने का श्रेय संजय गांधी के साथ कमलनाथ को भी जाता है। कहा जाता है कि सरकार बनाने के कुछ महीने बाद ही तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई और समाजवादी नेता राजनारायण के बीच दूरियां बढ़ने लगी थीं। इसी मौके का फायदा उठाते हुए संजय गांधी ने राजनारायण के असंतोष को बढ़ाने की रणनीति बनाई। इसमें कमलनाथ उनके साथ थे। राजनारायण के असंतोष का अंदाजा भांपते हुए सरकार और खुफिया एजेंसियां उन पर नजर रखी हुई थीं।
1980 में सबसे पहले छिंदवाड़ा से लोकसभा चुनाव लड़े
सबसे नजरें चुराते हुए कमलनाथ बतौर ड्राइवर, राजनारायण और संजय गांधी को एक साधारण कार में बैठाकर दिल्ली की सुनसान सड़कों पर घूमने ले जाते थे। इसी कार में संजय गांधी राजनारायण के मन में असंतोष भरने में कामयाब रहे। जनता पार्टी की सरकार गिराने के बदले कमलनाथ को 1980 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी के तरफ से छिंदवाड़ा गिफ्ट मिला था। उनके नाम की घोषणा चुनाव के छह महीने पहले ही कर दी गई थी।
1979 में पहली बार कमलनाथ को लेकर छिंदवाड़ा पहुंचे संजय
1979 में कमलनाथ को छिंदवाड़ा से कांग्रेस ने लोकसभा का प्रत्याशी घोषित कर दिया। खुद संजय गांधी उन्हें छिंदवाड़ा लाए थे। कांग्रेस की सियासत और नेहरू परिवार में कमलनाथ की हैसियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सियासी गलियारों में एक कहावत प्रचलित थी- 'इंदिरा गांधी के दो हाथ, संजय गांधी और कमलनाथ।' जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद देश में 1980 में एक फिर आम चुनावों की घोषणा हो गई।
इंदिरा ने कहा- मेरे तीसरे बेटे कमलनाथ को वोट दें
इंदिरा गांधी खुद छिंदवाड़ा में कमलनाथ का चुनाव प्रचार करने पहुंचीं। इंदिरा ने सभा के दौरान कमलनाथ का परिचय अपने तीसरे बेटे के तौर पर कराया। उन्होंने अपने भाषण में कहा था- मैं नहीं चाहती कि आप लोग कांग्रेस नेता कमलनाथ को वोट दीजिए। मैं चाहती हूं कि आप मेरे तीसरे बेटे कमलनाथ को वोट दें।
23 जून 1980 को संजय गांधी की असमय मौत से नेहरू परिवार ही नहीं बल्कि समूचा देश सन्न रह गया था। जिगरी दोस्त की मौत से कमलनाथ भी सदमे में थे। इस विपरीत हालात में वे गांधी परिवार के साथ मजबूती से खड़े रहे।
छिंदवाड़ा से 9 बार सांसद और दो बार विधायक बने
1980 में छिंदवाड़ा से पहला लोकसभा चुनाव लड़ने वाले कमलनाथ भले ही इंदिरा गांधी की लहर में जीत गए थे, लेकिन इसे कांग्रेस का अभेद्य किला उन्होंने विकास के जरिए ही बनाया। कमलनाथ छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से 9 बार- 1980, 1984, 1990, 1991, 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 में जीते। कमलनाथ के इस गढ़ से 1996 में उनकी पत्नी अलकानाथ और 2019 में बेटे नकुलनाथ भी जीत चुके हैं।
2018 में मध्यप्रदेश के सीएम बनने के बाद उन्होंने 2019 में छिंदवाड़ा विधानसभा सीट से उपचुनाव जीता। 2023 में इसी सीट से लगातार दूसरी बार जीते।
सिर्फ एक बार पटवा से छिंदवाड़ा में चुनाव हारे कमलनाथ
सियासी गलियारों में 'बाजीगर' कहे जाने वाले कमलनाथ छिंदवाड़ा से सिर्फ एक बार चुनाव हारे हैं। 1996 में हवाला कांड में नाम आने के बाद कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया। तब पार्टी ने उनकी पत्नी अलका नाथ को चुनाव लड़ाया था। वो चुनाव जीत भी गईं। कमलनाथ को सांसद रहते हुए दिल्ली में लुटियंस जोन में बड़ा बंगला मिला था। उनकी पत्नी पहली बार की सांसद बनी थी। चुनाव न लड़ने की वजह से कमलनाथ को बंगला खाली करने का नोटिस मिला। तब उन्होंने ये बंगला पत्नी के नाम पर अलॉट कराने की कोशिश की, लेकिन ये नहीं हो पाया।
1997 में पटवा से हारे उपचुनाव
कमलनाथ किसी भी कीमत पर ये बंगला छोड़ने तैयार नहीं थे। सूत्र बताते हैं कि बंगले की चाहत में उन्होंने अपनी पत्नी का संसद से इस्तीफा दिलवा दिया और खुद छिंदवाड़ा में उपचुनाव में प्रत्याशी बन गए। 1997 में छिंदवाड़ा में हुए उपचुनाव में बीजेपी ने सुंदरलाल पटवा को मैदान में उतार दिया। पटवा ने ये चुनाव बखूबी लड़ा और कमलनाथ को उन्हीं के गढ़ में पहली बार मात देने में सफल रहे। यही एक मात्र चुनाव है, जिसमें कमलनाथ को हार का सामना करना पड़ा।
अगले साल 1998 के चुनाव में कमलनाथ ने पटवा को हराकर हिसाब बराबर कर लिया था।
कांग्रेस को 15 साल बाद दिलाई थी मध्यप्रदेश में सत्ता
कमलनाथ ऐसे इकलौते नेता हैं, जो गांधी परिवार की तीन पीढ़ियों के साथ काम कर रहे हैं। पहले इंदिरा गांधी, फिर संजय-राजीव और सोनिया गांधी, अब राहुल और प्रियंका गांधी के साथ उनके संबंध मधुर रहे हैं। मध्यप्रदेश में कांग्रेस 2003 के विधानसभा चुनाव से ही हार रही थी। यही कारण था कि तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को टक्कर देने के लिए गांधी परिवार ने कमलनाथ पर ही भरोसा जताया। 26 अप्रैल 2018 को उन्हें मध्यप्रदेश की कमान सौंपी गई थी।
दिसंबर 2018 में कमलनाथ ने सीएम पद की शपथ ली
मध्यप्रदेश का प्रभार संभालने के बाद जब कमलनाथ ने भोपाल में अपना डेरा डाला तो सबसे पहले उन्होंने पार्टी कार्यालय की सूरत संवारी। नए सिरे से इमारत का रंग रोगन हुआ। संजय गांधी की तस्वीर भी लगवाई। लोग दावा करते हैं कि मध्यप्रदेश के चुनाव में करीब तीन चौथाई संसाधनों की व्यवस्था कमलनाथ ने ही जुटाई थी। दिसंबर 2018 में जब रिजल्ट आया तो कांग्रेस 113 सीटों के साथ सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। कमलनाथ ने सीएम के तौर पर शपथ ली।
2023 विधानसभा चुनाव में हार से बढ़ीं कमलनाथ और हाईकमान में दूरियां
मार्च 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत तक वे सीएम रहे। सिंधिया ने 22 विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़ दी तो मप्र में फिर बीजेपी की सरकार बनी। बीजेपी सरकार बनने के बाद भी कमलनाथ ने प्रदेश नहीं छोड़ा। 2023 का विधानसभा चुनाव भी उनकी ही अगुवाई में कांग्रेस ने लड़ा। हालांकि, इस बार कांग्रेस 66 सीटों पर सिमट गई। इसी हार के बाद कमलनाथ और हाईकमान में दूरियां बढ़ने के कयास लगाए जा रहे हैं।
कमलनाथ ने बदली छिंदवाड़ा की तस्वीर
कमलनाथ का कद और हैसियत भले ही हाईप्रोफाइल रही हो, लेकिन वे खुद लो प्रोफाइल रहते हैं। गांधी परिवार से निकटता और 50 वर्षों के राजनीतिक सफर में उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन छिंदवाड़ा उनका गढ़ बना रहा। इस आदिवासी इलाके से 1980 में पहली बार जीतने वाले कमलनाथ ने छिंदवाड़ा की तस्वीर पूरी तरह बदल दी। यहां स्कूल-कॉलेज और आईटी पार्क बनवाए।
स्थानीय लोगों को रोजगार और काम धंधा मिले, इसके लिए उन्होंने वेस्टर्न कोलफील्ड्स और हिंदुस्तान यूनिलीवर जैसी कंपनियां बुलवाईं। युवाओं के लिए क्लॉथ मेकिंग ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, ड्राइवर ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट भी उन्होंने खुलवाए।
भिंडरावाले को खड़ा करने में आया कमलनाथ का नाम
पंजाब में आतंकवाद को चरम तक ले जाने वाले जनरैल सिंह भिंडरावाले को खड़ा करने में भी कमलनाथ का नाम आता है। मशहूर पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी आत्मकथा 'बियॉन्ड द लाइन्स' में लिखा- कमलनाथ ने बताया कि कैसे अकालियों को टक्कर देने के लिए भिंडरावाले का चयन किया गया।
इसके लिए दो लोगों का इंटरव्यू लिया गया। इनमें से भिंडरावाले को चुना गया क्योंकि वो चाल-ढाल और बातचीत में दबंग था और इस काम के लिए ज्यादा उपयुक्त था। हालांकि, उस वक्त कमलनाथ को भी यह अहसास नहीं था कि भिंडरावाला बाद में आतंकवादी बन जाएगा।
इंदिरा गांधी को कंधा देते कमलनाथ, राजीव गांधी और राहुल गांधी।
1984 के सिख दंगों और हवाला में आ चुका कमलनाथ का नाम
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों में भी कमलनाथ का नाम आता है। कमलनाथ पर आरोप है कि वे एक नवंबर 1984 को नई दिल्ली के गुरुद्वारा रकाबगंज में उस वक्त मौजूद थे, जब भीड़ ने दो सिखों को जिंदा जला दिया था। खास बात ये है कि कमलनाथ ने भी खुद माना है कि वे दंगों के वक्त वहां मौजूद थे। हालांकि, उनका कहना है कि वो रकाबगंज इसलिए गए थे क्योंकि उनकी पार्टी ने उन्हें वहां जाने के लिए कहा था।
कमलनाथ यह भी कहते हैं कि दंगों की एसआईटी जांच, रंगनाथ मिश्रा कमीशन इंक्वायरी और जीटी नानावती जांच कमीशन ने उनके खिलाफ कुछ नहीं पाया। वे जरूरत पड़ने पर किसी और जांच का सामना करने को भी तैयार हैं। 1984 के सिख दंगों और 1996 के हवाला कांड को अपवाद मान लें तो सालों साल अहम मंत्रालयों के मंत्री रहने के बाद भी कमलनाथ का नाम किसी विवाद में नहीं आया है। उन पर कभी भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे।
सियासी मैनेजमेंट में माहिर हैं कमलनाथ
कमलनाथ के बारे में मशहूर हैं कि वे तेजी से संसाधनों को जुटाने में माहिर हैं। हर पार्टी में उनके अच्छे दोस्त हैं। कारोबारी होने के चलते पूरी दुनिया में रिश्ते हैं। कमलनाथ हर किसी की मदद करते हैं। छिंदवाड़ा में उनके शिकारपुर आवास पर हमेशा लोगों की भीड़ लगी रहती है।
सजहता कमलनाथ की बड़ी ताकत
उनके बारे में मशहूर है कि अगर किसी नामालूम कार्यकर्ता के छोटे से काम के लिए भी कमलनाथ को चार बार किसी से कहना पड़े तो वे हिचकते नहीं हैं। उनकी ये सहजता भी उनकी बड़ी ताकत है। कमलनाथ के व्यवहार के बारे में लोग ये भी मानते हैं कि वे इतने शार्प हैं कि उनका बायां हाथ क्या कर रहा होता है, इसकी भनक वे दाएं हाथ तक को नहीं लगने देते हैं। उनकी आलोचना इस बात के लिए भी होती रही है कि वो एकदम से कोई स्टैंड नहीं ले सकते हैं और हर किसी से अच्छे संबंध बनाकर रखना चाहते हैं।
सॉफ्ट हिन्दुत्व और हनुमान भक्त की है पहचान
राम मंदिर के मुद्दे पर कमलनाथ और कांग्रेस का स्टैंड अलग दिखा था। कमलनाथ खुद को हनुमान भक्त कहते हैं। श्रीराम मंदिर के लोकार्पण के समय उन्होंने रामनाम पत्रकों की लाखों प्रतियां अयोध्या भेजी थीं। बेटे नकुलनाथ के साथ वे कई मौकों पर मंदिर जाते हुए दिखते रहे हैं। वे मध्यप्रदेश की राजनीति में कांग्रेस की छवि सॉफ्ट हिंदुत्व की बनाए रखने की कोशिश करते रहे हैं।