NEW DELHI. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में 34 साल बाद कांग्रेस की बड़ी जीत के बाद भी 'कौन बनेगा सीएम' के सवाल पर दो दिन बाद भी तस्वीर साफ नहीं हो रही है। इसकी वजह कर्नाटक में सीएम की कुर्सी के दो दावेदारों पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने अपने-अपने तरीकों से दावेदारी जताकर कांग्रेस नेतृत्व के सामने राज्य में सत्ता का संतुलन साधने की चुनौती खड़ी कर दी है। पार्टी हाईकमान के लिए ये चुनौती अग्निपरीक्षा से कम नहीं है, क्योंकि मुख्यमंत्री पद के दोनों दावेदार खासे दमदार भी हैं। बताया जा रहा है कि बेंगलुरु में नवनिर्वाचित विधायकों से रायशुमारी कर दिल्ली लौटे केंद्रीय पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट मिलने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे आज यानी 16 मई की शाम तक सोनिया और राहुल गांधी से सलाह के बाद कर्नाटक के अगले सीएम का ऐलान कर सकते हैं। माना जा रहा है कि इस रेस में अनुभवी और बेदाग सिद्धारमैया, पार्टी हाईकमान के करीबी डीके शिवकुमार से बाजी मार सकते हैं।
सत्ता का संघर्ष टालने के लिए कांग्रेस की ये नीति
कर्नाटक में पिछले विधानसभा चुनाव (2018) के मुकाबले इस बार ज्यादा बड़े जनादेश के साथ सत्ता में लौटी कांग्रेस की सियासत सीएम के चुनाव के मुद्दे पर अटक गई है। सीएम की कुर्सी के लिए दोनों ही दावेदारों के खुलकर सामने आने के बाद कांग्रेस हाईकमान के सामने धर्मसंकट की स्थिति खड़ी हो गई है। राजनीति के जानकारों के मुताबिक पिछली बार बीजेपी के ऑपरेशन लोटस का शिकार हो चुकी कांग्रेस अब कोई ऐसा मौका नहीं देना चाहेगी, जिससे राज्य में लीडरशिप की लड़ाई हो और उसका विपरीत असर 2024 के लोकसभा चुनाव की संभावनाओं पर पड़े। वो कर्नाटक का जनादेश लोकसभा सीटों में बदलना चाहेगी, जो अब उसका अगला और बड़ा लक्ष्य है। इस लिहाज से कुछ भी ऐसा कदम नहीं उठाएगी, जिससे राज्य की लीडरशिप में लड़ाई हो। राज्य में सत्ता का संघर्ष टालने के लिए कांग्रेस नेतृत्व पार्टी में संकटमोचक और कुशल रणनीतिकार के तौर पर उभरे डीके शिवकुमार को सिद्धारमैया के समर्थन के लिए मनाने में जुटा है।
सीएम के दावे के लिए सिद्धारमैया की ताकत और कमजोरी
आइए, कर्नाटक में कांग्रेस की सत्ता का संभावित फॉर्मूला जानने से पहले नजर डालते हैं सीएम की कुर्सी के लिए सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के दावों पर। बेंगलुरु में में रविवार, 14 मई को पार्टी के केंद्रीय पर्यवेक्षकों की मौजूदगी में हुई नवनिर्वाचित विधायकों की बैठक के बाद पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया मीडिया के कैमरे के सामने खुलकर कह चुके हैं- पार्टी के ज्यादातर एमएलए और समर्थक उनके पक्ष में हैं। वे चाहते हैं कि मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी उन्हें मिले। माना जा रहा है कि कांग्रेस के 135 में से करीब 90 विधायक सिद्धारमैया के समर्थन में हैं। लेकिन ज्यादा उम्र और अपनी ही जाति के लोगों को आगे बढ़ाने के आरोप उनकी कमजोरी मानी जा रही है।
सिद्धारमैया का दावा इसलिए मजबूत
सिद्धारमैया को सीएम पद की रेस में इसलिए भी आगे बताया जा रहा है क्योंकि राज्य में उनकी पकड़ पिछड़ों के साथ ही दलित और मुसलमानों में भी है। राज्य के हर तबके में उनका प्रभाव है। डीके शिवकुमार सिर्फ उनकी वोक्कालिगा जाति बहुल वाले ओल्ड मैसुरु रीजन में ही पॉपुलर हैं,राज्य के बाकी इलाकों में उनकी पकड़ सिद्धारमैया के मुकाबले कम है।
डीके शिवकुमार की ताकत और कमजोरी
उधर, संगठनात्मक कौशल के चलते पार्टी में संकटमोचक माने जाने वाले डीके शिवकुमार ने सिद्धारमैया की तरह खुलकर तो अपनी इच्छा नहीं जताई, लेकिन ये जरूर कहा- मैंने राज्य में चुनाव से पहले सोनिया गांधी से जो वादा किया था उसे पूरा कर दिया है। मुझे जो काम दिया गया था, मैंने उसे पूरा कर दिया। लेकिन शिवकुमार के भाई और बेंगलुरु ग्रामीण लोकसभा सीट से कांग्रेस के इकलौते सांसद डीके सुरेश खुलकर सीएम पद के लिए अपने भाई के नाम की वकालत करते हुए कहा- मेरे भाई को मेहनत का हक मिलना चाहिए, पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को कई अवसर मिल चुके हैं। सिद्धारमैया विपक्ष के नेता और सीएम दोनों ही रह चुके हैं। उनकी उम्र भी ज्यादा है, इसलिए डीके शिवकुमार को सीएम बनाया जाना चाहिए। माना जा रहा है कि शिवकुमार के समर्थन में करीब 75 विधायक हैं, लेकिन राज्य में पार्टी के सबसे अमीर नेता और विधायक शिवकुमार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप उनकी कमजोरी माने जा रहे हैं।
मैं पीठ में छुरा नहीं घोंपूंगाः डीके शिवकुमार
डीके शिवकुमार आज यानी मंगलवार, 16 मई को पार्टी हाईकमान के बुलावे पर दिल्ली पहुंच रहे हैं। दिल्ली रवाना होने से पहले शिवकुमार ने बेंगलुरु में कहा- हमारा एक जॉइंट हाउस (कांग्रेस) है, हमारी संख्या 135 है। मैं यहां किसी को बांटना नहीं चाहता। वे मुझे पसंद करें या ना करें, मैं एक जिम्मेदार आदमी हूं। मैं पीठ में छुरा नहीं घोंपूंगा और ना ही ब्लैकमेल करूंगा। सिद्धारमैया सोमवार, 15 मई को ही दिल्ली पहुंच चुके हैं।
करप्शन के आरोपों से पिछड़े डीके शिवकुमार
शिवकुमार के खिलाफ करप्शन के केस होने की वजह से कांग्रेस उन्हें सीएम बनाने से हिचकिचा रही है। दरअसल केंद्र सरकार ने जिन प्रवीण सूद को CBI का नया डायरेक्टर बनाया है, वे अब तक कर्नाटक पुलिस के DGP थे। उनकी और डीके शिवकुमार की बिल्कुल भी नहीं पटती। डीके ने उन्हें नालायक तक कह दिया था। कहा था कि सरकार में आने के बाद उन पर कार्रवाई की जाएगी। ऐसे में यदि डीके को CM बनाया जाता है तो करप्शन का मामला हाईलाइट होगा। ऐसा होने पर कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में नुकसान हो सकता है।
चुनाव से पहले डीके की याचिका खारिज हुई
डीके शिवकुमार के खिलाफ 2019 में जांच शुरू हुई थी। तब राज्य में BJP की सरकार थी और बीएस येदियुरप्पा CM थे। राज्य सरकार की सिफारिश के बाद उनके खिलाफ आय से ज्यादा संपत्ति का मामला दर्ज किया गया था। डीके ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। उन्होंने जांच के आदेश को गलत बताया था लेकिन चुनाव से कुछ दिन पहले ही हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी। इस बार उन्होंने चुनावी हलफनामे में खुद की संपत्ति 1 हजार 413 करोड़ रुपए बताई है। 2018 में उनकी संपत्ति 840 करोड़ रुपए थी।
कांग्रेस की सत्ता का फॉर्मूला
कर्नाटक की राजनीति के जानकारों के मुताबिक चुनाव में बहुमत हासिल करने के बाद कांग्रेस अब सरकार बनाने के लिए भी सबको साथ लेकर चलने का फार्मूला अपनाएगी। इसके लिए पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की कुरुबा कम्युनिटी से आने वाले अनुभवी, सर्वमान्य और बेदाग नेता सिद्धारमैया को CM बनाया जा सकता है। उनके अंडर में तीन डिप्टी CM हो सकते हैं। ये तीनों अलग-अलग समुदायों से होंगे। इनमें वोक्कालिगा समुदाय से आने वाले डीके शिवकुमार, लिंगायत समुदाय से आने वाले एमबी पाटिल और अनुसूचित जाति (एससी) के वाल्मिकी समुदाय के सतीश जारकीहोली शामिल हैं। यदि इन कम्युनिटी को आबादी के हिसाब से आंका जाए तो कर्नाटक में कुरुबा आबादी 7%, लिंगायत 16%, वोक्कालिगा 11% और एससी-एसटी करीब 27% हैं। यानी कांग्रेस के सत्ता के संभावित फार्मूले से 61% आबादी को साधना चाहती है।
कर्नाटक में कांग्रेस की 34 साल बाद सबसे बड़ी जीत
कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 224 में से 135 सीटें जीती हैं। उसे 43% वोट मिले हैं। राज्य में BJP को 66 और JD(S) को 19 सीटें मिली हैं। कांग्रेस ने कर्नाटक में 34 साल बाद सबसे बड़ी जीत हासिल की है। इससे पहले 1989 में उसने 178 सीटें जीती थीं। 1999 में उसे 132 सीटें मिली थीं। कर्नाटक में किसी पार्टी का दोबारा सत्ता में न लौटने का रिकॉर्ड भी बरकरार रहा है। राज्य में 38 साल से कोई सरकार रिपीट नहीं हुई है। आखिरी बार 1985 में रामकृष्ण हेगड़े के नेतृत्व वाली जनता पार्टी ने सत्ता में रहते हुए विधानसभा चुनाव जीता था।