NEW DELHI. इस साल कुछ दिनों में कर्नाटक और आखिर में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छ्त्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने हैं। अगले साल लोकसभा चुनाव हैं। विपक्षी पार्टियों की असल चिंता दस साल से केंद्र की सत्ता में बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू है। अब विपक्षी दलों को एक छत के नीचे लाने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कोशिशें तेज कर दी हैं। अब तक अलग-अलग दलों के कई नेताओं से दोनों मुलाकात कर चुके हैं। इसकी शुरुआत 12 अप्रैल से हुई, जब दोनों ने दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से मुलाकात की थी।
विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात के दौरान एक फॉर्मूले का भी जिक्र किया जा रहा है। इसी फॉर्मूले के आधार पर दलों को साथ आने के लिए कहा जा रहा है। जानें, आखिर वो फॉर्मूला क्या है? कैसे विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिशें हो रहीं हैं?
ऐसे एकजुट हो रहे विपक्षी दल
1. कांग्रेस साउथ को साधने में लगी: दक्षिण भारत के राज्यों के क्षेत्रीय दलों को एकजुट करने की जिम्मेदारी कांग्रेस के पास है। कुछ राज्यों में क्षेत्रीय दल पहले से ही कांग्रेस के साथ गठबंधन में हैं। अब इन दलों से बातचीत करके 2024 लोकसभा चुनाव में प्रस्तावित महागठबंधन में शामिल होने के लिए बुलाया जा रहा है। कांग्रेस दक्षिण के साथ-साथ वामदलों को भी साथ लाने पर काम कर रही है। 12 अप्रैल को नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव से मुलाकात के बाद कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने शरद पवार, अरविंद केजरीवाल से भी बात की थी।
2. जेडीयू-आरजेडी का फोकस नॉर्थ पर: नीतीश कुमार की अगुआई में जेडीयू और तेजस्वी यादव के नेतृत्व में आरजेडी उत्तर भारत के विपक्षी दलों को एकसाथ लाने में जुटी हैं। खासतौर पर आप, सपा, तृणमूल कांग्रेस जैसे दलों को एकजुट करने का काम नीतीश और तेजस्वी कर रहे हैं। इसके अलावा अन्य छोटे दलों को भी साथ लाने के लिए दोनों नेता लगातार कोशिश कर रहे हैं।
अब तक किन-किन नेताओं के बीच हुई बातचीत
12 अप्रैल को सबसे पहले नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से मुलाकात की। इसी के साथ नीतीश ने ये भी साफ कर दिया कि विपक्षी एकता कांग्रेस को साथ लाए बिना संभव नहीं है। राहुल-खड़गे से मिलने के बाद नीतीश और तेजस्वी, अरविंद केजरीवाल से भी मिले। वहीं, दूसरी ओर खड़गे और राहुल ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मिलकर बातचीत की।
खड़गे ने केजरीवाल और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन से भी फोन पर बात की। इसके बाद नीतीश और तेजस्वी ने पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात की और फिर लखनऊ आकर सपा प्रमुख अखिलेश यादव से मिले।
फॉर्मूला के सहारे विपक्ष को एकजुट करने की पहल
एक कांग्रेसी नेता ने का कहना है, 'नीतीश, तेजस्वी के साथ खड़गे और राहुल की बैठक में विपक्षी एकजुटता को लेकर कई बिंदुओं पर सहमति बनी है। अब उसी फॉर्मूले के सहारे विपक्ष के अन्य पार्टियों को साथ लाने की कोशिश हो रही है। इस फॉर्मूले पर अंतिम मुहर तब लगेगी, जब एकसाथ सारे विपक्षी दलों के नेता बैठक करेंगे।' फॉर्मूले के अहम बिंदु…
1. बीजेपी के खिलाफ वैचारिक एकजुटता: नीतीश कुमार ने खड़गे और राहुल से मुलाकात के दौरान ये बात कही थी। उन्होंने कहा था कि बीजेपी के खिलाफ विपक्ष को वैचारिक तौर पर एकजुट होना होगा। कई ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर विपक्ष एकराय है। इन्हीं मुद्दों के सहारे सभी को एक होकर बीजेपी से लड़ना होगा। राहुल और खड़गे ने भी इसे स्वीकार किया।
2. विपक्षी एकता का नेतृत्व कांग्रेस करे: नीतीश ने ही इसका प्रस्ताव भी रखा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को ही विपक्ष के सभी दलों की अगुवाई करनी चाहिए, लेकिन इसमें कहीं से भी ये न लगे कि किसी दल की उपेक्षा की जा रही है। सभी के सम्मान का ख्याल रखना चाहिए।
3. चुनाव में सीट बंटवारे का फॉर्मूला: नीतीश ने कहा कि चुनाव के वक्त जिस पार्टी का जिस भी राज्य या क्षेत्र में दबदबा हो, वहां उसे लीड करने दिया जाए। मसलन बिहार में जेडीयू-आरजेडी का प्रभाव है। ऐसे में यहां की ज्यादातर सीटों पर इन्हीं दो पार्टियों के उम्मीदवार उतारे जाएं। इसके अलावा अन्य पार्टी जिसका कुछ जनाधार हो, उन्हें भी कुछ सीटों पर मौका दिया जाए। इसी तरह यूपी में सपा को ज्यादा सीटें दी जा सकती हैं। राजस्थान-छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में कांग्रेस लीड कर सकती है। जहां विवाद की स्थिति बने, वहां आपस में बैठकर मसला हल किया जा सकता है।
2 मुद्दों पर विपक्ष की एकराय
1. विपक्षी दलों पर जांच एजेंसियों की कार्रवाई: इस वक्त सोनिया गांधी-राहुल गांधी से लेकर केसीआर, तेजस्वी यादव, उद्धव ठाकरे, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल तक कई मामलों में फंसे हुए हैं। ये एक ऐसा मुद्दा है, जिसको लेकर सभी दलों की राय एक है। सभी ने इसके खिलाफ सरकार पर हमला बोला है।
2. अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर: विपक्ष ने लगातार आरोप लगाया है कि सरकार अल्पसंख्यकों के खिलाफ काम कर रही है। सरकार पर सांप्रदायिक होने का भी आरोप लगाया जा रहा है। ऐसे में इस मुद्दे पर भी विपक्ष सहमति बना सकता है।