BHOPAL. शिवराज सिंह चौहान का नाम लेने पर आपको किस तरह के नेता की छवि याद आती है। एक ऐसा नेता जो अपने RAW अंदाज के लिए जाना जाता रहा है। सभा के बीच में किसी बुजुर्ग को गले लगा लेना। रैली को रोककर किसी गरीब के झोपड़े में चले जाना। शिवराज की ये शैली उन्हें घर-घर तक सबका फेवरेट बनाती रही है, लेकिन चौथी पारी में शिवराज अपने इस ठेठ देसी अंदाज से दूर एक नए मिजाज में नजर आ रहे हैं। नपे तुले कदमों के साथ रैंप वॉक, जनता के बीच क्या बोलना है, कितना बोलना है इसका सटीक केलकुलेशन और अफसरों के खिलाफ सख्त जुमले। अपनी शैली को लांघकर शिवराज इस पारी में काफी बदले हुए दिखने की कोशिश कर चुके हैं। अब भरे मंच से जिन शब्दों को इस्तेमाल किया है, उसकी तो उनसे कभी उम्मीद ही नहीं की जा सकती थी।
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चौथी पारी में शिवराज ने मर्यादा को पार कर दिया है
शिवराज सिंह चौहान के विरोधी हों या पक्षधर हों, उनकी शैली के लिए कभी ये नहीं कह सकते कि वो एरोगेंट हैं, रूड हैं या अपशब्दों का इस्तेमाल करते हैं। नियमों के दायरे में रहते हुए और अपनी सौम्य छवि को मेंटेन करते हुए शिवराज सिंह चौहान ने इस प्रदेश पर पूरे तेरह साल राज किया, लेकिन चौथे कार्यकाल में वो अपनी शैली से भटके हुए नजर आ रहे हैं। अफसरों पर सख्ती, अपराधियों के ठिकाने पर बुलडोजर चलवाने के बाद अब शिवराज सिंह चौहान अपने विरोधियों पर बरस रहे हैं। वैसे तो चुनावी सीजन में हर नेता, विरोधियों पर हमला बोलता नजर आता है। शिवराज सिंह चौहान ने कभी अपनी भाषा से समझौता नहीं किया था, लेकिन चौथी पारी के चुनावी साल में उन्होंने उस मर्यादा को भी पार कर दिया है।
मामा का स्टाइल अब मिसगाइड ज्यादा नजर आ रहा है
अपशब्दों का और शिवराज सिंह चौहान का दूर-दूर तक कभी नाता नहीं रहा। अपने विरोधियों या उम्र से बड़े लोगों को तो छोड़िए शिवराज ने कभी अपने से छोटे या मातहत लोगों को बुरा भला नहीं कहा, लेकिन इस बार शिवराज सिंह चौहान की सोहबत या सलाहकार उनकी खुद की स्टाइल पर भारी पड़ रहे हैं। मामा का स्टाइल अब मिसगाइड ज्यादा नजर आ रहा है। ये किसी इवेंट मैनेजमेंट कंपनी का काम है जो शिवराज सिंह चौहान की नई इमेज बनाने के चक्कर में उनकी 18 साल की छवि को चौपट कर रही है। शिवराज के आसपास ऐसे चाटुकारों का मजमा लगा है जो उन्हें ये यकीन दिलाने में कामयाब हो चुके हैं कि शिवराज सिंह चौहान, योगी आदित्यनाथ से कम नहीं है। इसलिए शिवराज सिंह चौहान खुद अपने दायरों को लेकर कंफ्यूज हो गए हैं। शिवराज की नई शैली को देखकर ये सवाल उठ रहे हैं।
कमलनाथ पर की गई टिप्पणी से शिवराज की शैली पर सवाल उठ रहे
मामा पूरे फॉर्म में है। अपनी चौथी पारी का आगाज ही शिवराज सिंह चौहान ने इन शब्दों के साथ किया है, लेकिन जिस तरह से शिवराज खुद अपनी ही इमेज पर भारी पड़े हैं उसे देखकर लगता है कि मामा फॉर्म में नहीं बल्कि आउट ऑफ फॉर्म हैं। शिवराज की इस शैली पर सवाल हाल ही में कमलनाथ पर की गई उनकी टिप्पणी के बाद उठे हैं। नीमच के मनासा में उन्होंने कमलनाथ के लिए जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया वो चौंकाने वाली है। कमलनाथ मेरे 18 सालों का हिसाब मांगते हुए सवाल कर रहे हैं। कमलनाथ कह रहे शिवराज 18 सालों का हिसाब दो। तो सुनो कमलनाथ जब तेरी पार्टी की सरकार थी तो गड्ढों में सड़क है या सड़क में गड्ढा है या गड्ढमगड्ढा है, गड्ढों में सड़क ढूंढनी पड़ती थी। सड़कों का अता पता नहीं था। मुझसे बात कर रहा है।
कमलनाथ ने ट्वीट किया उनको उसी भाषा में जवाब नहीं मिलेगा
शिवराज की इस तरह की भाषा को कांग्रेस ने बोखलाहट का नाम दिया है। शिवराज के इन शब्दों के बाद कमलनाथ ने ट्वीट किया कि वो जिस भाषा में लिख रहे हैं, उसी भाषा में उन्हें जवाब नहीं मिलेगा। कमलनाथ ने ट्वीट पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की, लेकिन बाकी कांग्रेसियों को इस मुद्दे पर मुखर होने से कोई नहीं रोक सका। जिन्होंने ये आरोप भी लगाए कि शिवराज अब ऐसी इवेंट मैनेजमेंट कंपनी और चापलूसों से घिरे हैं जो उनकी छवि धूमिल कर रही है।
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शिवराज सिंह चौहान अपनी इमेज को लेकर कंफ्यूजन में रहे हैं
चौथी पारी की शुरूआत से ही शिवराज सिंह चौहान अपनी इमेज को लेकर कंफ्यूजन में रहे हैं। उन्हें जानने वाले और कुछ आरएसएस समर्थित जानकार भी ये मानते हैं कि योगी आदित्यनाथ की पॉपुलेरिटी और बीजेपी की हार्डकोर हिंदुत्व के बीच शिवराज सिंह चौहान उलझ कर रह गए हैं। गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश की प्रतिमा खरीदने वाले और ईद पर नमाजियों से गले मिलने वाले शिवराज अब नजर नहीं आते हैं। अफसरशाही उन पर हावी है इस इल्जाम से बचने के लिए वो अफसरों को कई बार उस अंदाज में ताकीद करते नजर आए जिसकी उनसे उम्मीद नहीं थी।
- सरकार हमारे हिसाब से चलेगी जिसे दिक्कत है बता दे।
और अब मंच से अपने से उम्र में बड़े नेता के लिए इस तरह की भाषा का इस्तेमाल। ये बदलाव चुनावी विश्लेषकों की समझ से भी परे है। चुनाव नजदीक आते-आते शिवराज सिंह चौहान के तेवरों में ये बदलाव पार्टी पर न सही, लेकिन उनकी खुद की इमेज पर भारी पड़ सकते हैं।
शिवराज खुद अपनी इमेज के दुश्मन क्यों बन रहे हैं ये समझ से बाहर है
चुनावी सीजन में जुबानी जंग होना आम बात है। अक्सर ये जंग छोटे नेताओं के बीच होती नजर आती है, लेकिन इस बार जुबानी जंग का आगाज खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया है। निचली पंक्ति के कार्यकर्ताओं को इससे क्या संदेश जाएगा ये आने वाले दिनों की जुबानी तकरार से अंदाज हो ही जाएगा। फिलहाल फिक्र होनी चाहिए शिवराज सिंह चौहान की छवि की। बीजेपी में प्रदेश में जीती तो भी शिवराज सिंह चौहान को सीएम की कुर्सी वापस मिलेगी या नहीं इस पर संशय ज्यादा है। अब चुनाव नजदीक है और नतीजे कुछ भी हो सकते हैं तो शिवराज खुद क्यों अपनी पुरानी स्टाइल और इमेज के दुश्मन बन रहे हैं ये समझ से बाहर है।
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