BHOPAL. मध्यप्रदेश में आदिवासियों के बाद अब दलितों का नंबर है। आदिवासियों के लिए सरकार बिरसा मुंडा जयंती को आदिवासी जनजातीय गौरव दिवस के नाम से मनाने का ऐलान कर चुकी है। ये मानकर कि अब आदिवासी समुदाय खुश है। अब नजर दलितों पर जा टिकी है। उनके वोट्स हासिल करने के लिए अब प्रदेशभर में खास यात्रा हो रही है। यात्रा के समापन पर खुद पीएम मोदी मध्यप्रदेश में होंगे। कांग्रेस भी इस मामले में पीछे नहीं है। देखा जाए तो जिन वोटर्स को लुभाने के लिए बीजेपी ने भव्य पैमाने पर काम शुरू किया है, कांग्रेस पहले ही वो काम शुरू कर चुकी है। कांग्रेस के पास सौगातों की झड़ी भले ही न हो, लेकिन दलितों के साथ जुड़ी घटनाओं का पुलिंदा जरूर है। चुनावी साल में दोनों दलों को दलितों की याद आई है। अब सवाल ये है कि ये तबका किसका साथ देगा।
MP के सियासी फलक पर चमकने लगे दलित वोटर्स
मध्यप्रदेश के सियासी फलक पर दलित वोटर्स अचानक चमकने लगे हैं। इस तबके को रिझाने के लिए सरकार ने पूरे प्रदेश में भव्य यात्रा निकालने का इंतजाम तो कर ही लिया है, एक भव्य मंदिर बनाने की भी तैयारी है। जिसका शिलान्यास खुद पीएम नरेंद्र मोदी करने वाले हैं। ये यात्रा संत शिरोमणि रविदास समरसता यात्रा के नाम से निकल रही है। जिस तरह हर आयोजन को बड़े इवेंट में तब्दील करने की बीजेपी की अदा रही है। उसी अंदाज में ये यात्रा निकल रही है। प्लानिंग कुछ ऐसी है कि एक भी गांव इस यात्रा से अनजान छूटने न पाए। ये यात्रा प्रदेश के 50 जिलों से होकर गुजरेगी। हर जिले के विकासखंडों से मंदिर निर्माण के लिए मिट्टी ली जाएगी। इस तरीके से 313 विकास खंडों के 53 हजार गांव की मिट्टी और 315 नदियों का जल भी एकत्रित किया जाएगा।
बीजेपी का सफर, कांग्रेस ने पहले ही बढ़ाए कदम
बीजेपी जोर-शोर से एक भव्य सफर पर निकल चुकी है। कांग्रेस ने पहले ही इस दिशा में कदम बढ़ा लिए हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे अक्सर दलितों के साथ घट रही घटनाओं पर ट्वीट कर रहे हैं। प्रियंका गांधी भी ग्वालियर चंबल में सभा कर चुकी हैं। जिसके जरिए ग्वालियर-चंबल के 20 प्रतिशत दलित वोटर्स को साधने पर भी फोकस किया गया।
दलितों के तराजू पर तुलने के लिए दोनों दल तैयार
दोनों दलों का फोकस एक है सवाल कई हैं। बीजेपी के लिए बड़ा आयोजन करना जितना आसान है 3 साल की देरी का खामियाजा भरना उतना मुश्किल। कांग्रेस के हाथ खाली हैं, लेकिन बीएसपी की खाली जगह भरने का मौका है। दलितों के तराजू पर तुलने के लिए दोनों दल तैयार तो हैं, लेकिन वजन दोनों के पास बहुत ज्यादा नहीं है। वाहवाही बटोरने के लिए बीजेपी के पास आयोजन बड़ा है और कांग्रेस के पास सिर्फ एक सभा है। अब क्या समीकरण बन सकते हैं या बिगड़ सकते हैं वो भी समझ लेना जरूरी है।
मध्यप्रदेश में चुनाव में बचे कुछ ही महीने
मध्यप्रदेश में चुनाव 4 महीने बाद हैं और बीजेपी आदिवासी वोटरों के बाद अब दलित वोटरों को लुभाने निकली है। राज्य में दलितों की आबादी प्रदेश की कुल आबादी की 17 से 18 प्रतिशत है। यानी करीब 64 लाख दलित वोटर हैं, जिनके लिए 230 विधानसभा की सीटों में से 35 सुरक्षित सीटें हैं। इनमें से पिछले चुनाव में कांग्रेस ने 18 सीटें तो बीजेपी ने 17 सीटें जीती थीं। कमलनाथ की सरकार गिरी तो 4 SC विधायकों ने भी कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थामा। यानी अभी 21 दलित विधायक बीजेपी के पाले में हैं। आमतौर पर दलित वोटर BSP के माने जाते हैं। जो इस बार बिलकुल गहरी नींद में हैं। इसका फायदा कांग्रेस को हो सकता है। ऊपर से पेशाब कांड जैसे कांड भी बीजेपी पर भारी पड़ रहे हैं।
कांग्रेस खुद को मान रही आगे, बीजेपी की तैयारी भी जबरदस्त
कांग्रेस खुद को जरूर एक कदम आगे मानकर चल रही है, लेकिन बीजेपी की तैयारी भी जबरदस्त है। प्रदेश के हर जिले से समरसता यात्रा 12 अगस्त को सागर पहुंचेगी। जहां संत रविदास का भव्य मंदिर बनाने की तैयारी है। शिलान्यास पीएम नरेंद्र मोदी खुद आकर करेंगे। उनके कार्यक्रम के अगले ही दिन कांग्रेस के दलित चेहरे मल्लिकार्जुन खड़गे का कार्यक्रम प्रस्तावित था। जिसे फिलहाल टाल दिया गया है। दलितों की खातिर खुद पीएम मोदी मोर्चा संभालने तो आ ही रहे हैं। लाल सिंह आर्या को भी संत रविदास जयंती से जुड़ी बड़ी जिम्मेदारी दी गई है। आर्य भी ग्वालियर चंबल में बीजेपी के दलित चेहरे हैं। उन्हें अहमियत देकर बीजेपी ग्वालियर-चंबल को भी ये मैसेज देने की कोशिश में है कि वो पिछली गलतियों से सबक ले चुकी है। 2018 के चुनाव से पहले शिवराज सिंह चौहान के माई का लाल वाले बयान से उपजे विवाद से बीजेपी ने दोहरा खामियाजा भुगता था। दलित वोटर्स तो नाराज थे ही, ब्राह्मणों की नाराजगी भी भारी पड़ गई थी। अब बीजेपी की कोशिश उस हर जख्म को भर देने की है। समरसता यात्रा और रविदास मंदिर का शिलान्यास उसी कोशिश का हिस्सा है।
BSP की खामोशी से किसे फायदा ?
मध्यप्रदेश की सत्ता में दलित वोटर्स की संख्या भले ही बहुत कम लगती हो, लेकिन भागीदारी कम नहीं है। जब बीएसपी मैदान में होती है तो कांग्रेस को ज्यादा नुकसान पहुंचाती है। इस बार बीएसपी की खामोशी कांग्रेस को खुला मैदान दे रही है। पिछली बार महज 1 सीट ज्यादा लाकर कांग्रेस ने पूरी बाजी पलट दी थी। अब बीजेपी को सिर्फ ग्वालियर-चंबल को ही नहीं साधना है। पेशाब कांड के बाद विंध्य में बिगड़े हालात सुधारने हैं। बुंदेलखंड में दलित विरोधी माने जा रहे बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री भी अब बीजेपी के करीबी बताए जाते हैं। वहां भी हालात सुधारने हैं। ऐसे में ये यात्रा और मंदिर निर्माण क्या हर अंचल में पनप रही नाराजगी को कम करने में कारगर होगी। अब देखना ये है कि दलितों वोटरों को साधने के लिए पिछले 3 साल से बनाई जा रही रणनीति से बीजेपी को कितना फायदा होगा ये तो समय ही बताएगा।
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राजनीति के केंद्र में आदिवासी और दलित वोटर्स
आदिवासी और दलित वोटर्स अभी राजनीति के केंद्र में हैं। पूरा फोकस उन्हीं वोटर्स पर है। हो सकता है दलित वोटर्स के लिए इस पूरे आयोजन के दौरान कोई खास घोषणा भी हो जाए। पीएम मोदी को मैदान में उतारकर बीजेपी इस बात के लिए निश्चिंत है कि अब दलित वोटर्स बीजेपी के प्रायश्चित को समझ जाएंगे और सजा माफ करेंगे। उधर कांग्रेस को भी भरोसा है कि दलित वोटर्स उसकी झोली से छिटककर कहीं नहीं जाने वाले। अब दलितों के मन की बात उनके मत से पता चलेगी। इससे पहले दोनों दलों को नए-नए इम्तिहान देने ही होंगे।