एक वकील जो बन गया 'रावण', पश्चिमी यूपी को बनाया गढ़, जानें विधानसभा चुनाव में कितनी है चंद्रशेखर की ताकत

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एक वकील जो बन गया 'रावण', पश्चिमी यूपी को बनाया गढ़, जानें विधानसभा चुनाव में कितनी है चंद्रशेखर की ताकत

भोपाल. मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण को लेकर सियासत जारी है। ओबीसी आरक्षण के मामले में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई होनी है। लेकिन रविवार यानी कि 2 जनवरी को ओबीसी महासभा ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए सीएम हाउस के घेराव की चेतावनी दी थी। इसके मद्देनजर पुलिस ने रविवार सुबह एयरपोर्ट से भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर रावण को हिरासत में ले लिया। इसके अलावा ओबीसी महासभा के कई नेताओं को पुलिस ने हिरासत में या नजरबंद करके रखा हुआ है। आइए जानते हैं इस पूरे मामले में भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर रावण का क्या रोल है?



कौन हैं चंद्रशेखर उर्फ 'रावण': साल 2017 में सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में दलितों और सवर्णों के बीच हिंसा की एक घटना हुई। इस हिंसा के दौरान एक संगठन उभरकर सामने आया, जिसका नाम था भीम आर्मी। भीम आर्मी का पूरा नाम 'भारत एकता मिशन भीम आर्मी' है। इसका गठन करीब 6 साल पहले किया गया था। इस संगठन के संस्थापक और अध्यक्ष हैं चंद्रशेखर। उन्होंने अपना उपनाम 'रावण' रखा हुआ है। रावण पेशे से वकील हैं। 



क्यों कहते हैं खुद को रावण: देहरादून से लॉ की पढ़ाई करने वाले चंद्रशेखर खुद को 'रावण' कहलाना पसंद करते हैं। इसके पीछे चंद्रशेखर का तर्क था कि "भले ही रावण का नकारात्मक चित्रण किया जाता रहा हो लेकिन जो व्यक्ति अपनी बहन के सम्मान के लिए लड़ सकता हो और अपना सब कुछ दांव पर लगा सकता हो वो ग़लत कैसे हो सकता है।"



गांव के कुछ युवाओं ने मिलकर बनाई भीम आर्मी: शब्बीरपुर में हुई हिंसा के बाद 'रावण' ने 9 मई 2017 को सहारनपुर के रामनगर में महापंचायत बुलाई। इस महापंचायत के लिए पुलिस ने अनुमति नहीं दी, लेकिन सोशल मीडिया के जरिए महापंचायत की सूचना भेजी गई। सैंकड़ों की संख्या में लोग इसमें शामिल होने के लिए पहुंचे, जिन्हें रोकने के दौरान पुलिस और भीम आर्मी के समर्थकों के बीच संघर्ष हुआ और इसके बाद चंद्रशेखर के खिलाफ मामला दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। करीब छह साल पहले 2011 में गांव के कुछ युवाओं के साथ मिलकर चंद्रशेखर ने 'भारत एकता मिशन भीम आर्मी' का गठन किया था। भीम आर्मी आज दलित युवाओं का एक पसंदीदा संगठन बन गया है। 



किस उद्देश्य से हुई संगठन की स्थापना: भीम आर्मी की स्थापना दलित समुदाय में शिक्षा के प्रसार को लेकर अक्टूबर 2015 में हुई थी, इसके बाद सितंबर 2016 में सहारनपुर के छुटमलपुर में स्थित एएचपी इंटर कॉलेज में दलित छात्रों की कथित पिटाई के विरोध में हुए प्रदर्शन से ये संगठन चर्चा में आया। चंद्रशेखर का दावा है कि भीम आर्मी के सदस्य दलित समुदाय के बच्चों के साथ हो रहे कथित भेदभाव का मुखर विरोध करते हैं और इसी के कारण इस संगठन की पहुंच दूर दराज़ के गांवों तक हुई है। 



कहां है कितनी पकड़: चंद्रशेखर इन दिनों खुद को दलितों का सबसे बड़ा नेता बताते हैं। उत्तरप्रदेश में विधानसभा के चुनाव भी होने हैं। ऐसे में एक बार फिर से खद को साबित करने के लिए 'रावण' मैदान में दिखाई देने लगा है। लेकिन चंद्रशेखर की यूपी की सभी विधानसभा क्षेत्रों में आजाद समाज पार्टी की इकाइयां गठित हैं पर उनके पास कार्यकर्ताओं का मजबूत काडर नहीं है। बूथ तक मजबूत नेटवर्क नहीं है। कम से कम इनकी मौजूदगी फिलहाल ऐसी तो बिल्कुल नहीं कि दलित मतदाता मायावती की बजाय चंद्रशेखर के नेतृत्व पर भरोसा करें। यहां तक कि पश्चिमी यूपी में चंद्रशेखर बहुत मजबूत नजर आते हैं वहां भी सांगठनिक नेटवर्क गहरा नहीं कहा जा सकता। पश्चिमी यूपी के कुछ जिलों में चंद्रशेखर का प्रभाव है लेकिन इतना भी नहीं कि वो विधानसभा चुनाव को प्रभावित कर सकें। 



ये है मामला: 27% ओबीसी आरक्षण (OBC reservation) के मुद्दे पर कई संगठन आंदोलन कर रहे हैं। ओबीसी के इस आंदोलन (agitation) को साथ मिला है भीम आर्मी (bhim army), जयस (Jai Yuva Adivasi Sangathan) और कांशीराम (Kanshi Ram) की  आजाद समाज पार्टी (Azad Samaj Party) का।  

 


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