भोपाल. मध्यप्रदेश की सियासत आदिवासी वर्ग के इर्द गिर्द घूमती नजर आ रही है। एक तरफ जहां आदिवासियों के मुद्दों पर आंदोलन के कारण जयस (JAYAS) का जनाधार बढ़ रहा है। वहीं, बीजेपी ने आदिवासियों को साधने के लिए योजनाओं (scheme) का नया खाका तैयार किया है। इसका कारण है 2023 में होने विधानसभा चुनाव (Assembly Election 2023)। प्रदेश की 47 सीटें अनुसूचित जनजाति (Scheduled tribe) वर्ग के लिए आरक्षित है। इसमें से करीब 30 सीटें ऐसी है जहां आदिवासी वर्ग का प्रभाव है। लेकिन अब इन सीटों पर तेजी से समीकरण बदल रहे हैं।
आदिवासियों पर सरकार का फोकस HDR
1. इस वर्ग के आरक्षित बैकलॉग पदों को भरने की कवायद तेज कर दी है।
2. जनजातीय भाषा (Tribe language) और बोलियों को प्राइमरी के सिलेबस में शामिल करने की भी तैयारी है।
3. आदिवासी बाहुल्य इलाकों में रोजगार (employment) से जुड़े विषय भी सिलेबस में जोड़े जा रहे हैं।
BJP आदिवासी गौरव दिवस की तैयारी में
18 सितंबर को जबलपुर (jabalpur) में गोंड राजा रघुनाथ शंकर के शहीद दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में गृहमंत्री अमित शाह (Amit shah) शामिल होंगे। जानकारी के मुताबिक इस कार्यक्रम में आदिवासियों के लिए कई ऐलान हो सकते हैं। इसके साथ ही बीजेपी आदिवासी गौरव दिवस (Adivasi Gaurav divas) पर 66 दिन के कार्यक्रम को आयोजित करने की तैयारी कर रही है। इसके अलावा आदिवासी बाहुल्य पांच जिलों में घर घर राशन पहुंचाने की योजना पर भी काम किया जा रहा है।
आदिवासी बाहुल्य सीटों पर समीकरण बदले
1. 2003 विधानसभा चुनाव (2003 MP election) में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 41 सीटों में से बीजेपी ने 37 सीटों पर कब्जा जमाया था। चुनाव में कांग्रेस (congress) केवल 2 सीटों पर सिमट गई थी। वहीं गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने 2 सीटें जीती थी। जबकि 1998 में कांग्रेस का आदिवासी सीटों पर अच्छा खासा प्रभाव था।
2. 2008 के चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 41 से बढ़कर 47 हो गई। इस चुनाव में बीजेपी ने 29 सीटें जीती थी। जबकि कांग्रेस ने 17 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
3. 2013 के इलेक्शन में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी ने जीती 31 सीटें जीती थी। जबकि कांग्रेस के खाते में 15 सीटें आई थी।
4. 2018 के इलेक्शन में पांसा पलट गया। आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी केवल 16 सीटें जीत सकी और कांग्रेस ने दोगुनी यानी 30 सीटें जीत ली। जबकि एक निर्दलीय के खाते में गई।
JAYAS कांग्रेस की B टीम- BJP
पिछले दिनों से जयस आदिवासियों के मुद्दे को तेजी से उठा रहा है। इससे नजर आता है कि 2023 के इलेक्शन में जयस बीजेपी और कांग्रेस (congress) के समीकरण बिगाड़ सकती है। हालांकि, बीजेपी जयस को कांग्रेस की बी टीम बताकर उसके प्रभाव को खत्म करने की मुहिम में जुटी है। इसका कारण है जयस के फाउंडर मेंबर्स में से एक डॉ हीरालाल अलावा (Hiralal alawa) जिन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा। लेकिन जयस के बाकी नेताओं का कहना है कि जयस किसी की A या B टीम नहीं है।
तीनों दलों के सामने चुनौती
कुल मिलाकर तीनों दलों के सामने चुनौतियां है। जयस के सामने चुनौती ये है कि वो इलेक्शन से पहले ये साबित कर दें कि बीजेपी और कांग्रेस आदिवासियों के हितों की बात कर केवल वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल कर रही है। इसलिए जयस के पदाधिकारी आरोप लगा रहे हैं कि सरकार उनकी रैलियों और सभाओं को इजाजत नहीं दे रही। राजनीतिक गलियारों में सरकार के जयस से डरने की एक वजह इसे भी बताया जा रहा है। दूसरी तरफ बीजेपी और कांग्रेस के सामने चुनौती है कि वो जयस के बढ़ते प्रभाव को रोक सके और आदिवासियों के बीच भरोसा कायम कर सकें। यहीं वजह है कि मप्र में आदिवासियों के हितों की हर कोई बात कर रहा है।