नई दिल्ली. मोदी सरकार में मंत्री रहे बाबुल सुप्रियो ने राजनीति छोड़ने का ऐलान किया है। उन्होंने फेसबुक पोस्ट पर ये घोषणा की। उन्होंने लिखा कि मैं तो जा रहा हूं। Alvida। सब की बातें सुनी। बाप, (मां) पत्नी, बेटी, दो प्यारे दोस्त। सब सुनकर कहता हूं कि मैं किसी और पार्टी में नहीं जा रहा। #TMC, #Congress, #CPIM, कहीं नहीं - पुष्टि। कोई मुझे फोन नहीं किया, मैं भी कहीं नहीं जा रहा हूं।। मैं एक टीम का खिलाड़ी हूं! हमेशा एक टीम का समर्थन किया है। #MohunBagan। सिर्फ पार्टी की है BJP West Bengal!! That ' s it!! मैं तो जा रहा हूं...
सामाजिक काम बिना राजनीति के भी कर सकते हैं
बाबुल ने कुछ दार्शनिक अंदाज में कहा, 'कुछ देर रुके रहे, कुछ मन रखा और कुछ टूट गए..। कहीं काम से खुश हो गए, कहीं निराश। तुम मूल्यांकन नहीं करोगे।'मेरे मन में उठते सभी सवालों के जवाब देने के बाद कह रहा हूं। मैं इसे अपने तरीके से कह रहा हूं। मैं जा रहा हूं। सामाजिक कार्य करना है तो बिना राजनीति के भी कर सकते हैं, चलो थोड़ा पहले खुद को संगठित करते हैं फिर...।
शाह-नड्डा मुझे माफ कर दें
बाबुल के मुताबिक, मैंने पिछले कुछ दिनों में माननीय अमित शाह और माननीय नड्डाजी को राजनीति छोड़ने का संकल्प लिया है। मैं उनका आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे कई मायनों में प्रेरित किया है। मैं उनके प्यार को कभी नहीं भूलूंगा और इसलिए मैं उन्हें फिर से वही चीज नहीं दिखा सकता। विशेष रूप से जब मैंने फैसला किया है कि 'मेरा मैं' क्या करना चाहता है। इसलिए फिर से वही कहीं जब मैं दोहराने जाता हूं शब्द, वे सोच सकते हैं कि मैं एक 'स्थिति' के लिए 'सौदेबाजी' कर रहा हूं। और जब यह सच नहीं है, तो वे नहीं चाहते कि 'संदेह' उनके दिमाग से दूर हो जाए- एक पल के लिए भी। मैं प्रार्थना करता हूं कि वे मुझे गलत नहीं समझते हैं, मुझे माफ कर दें।
मुझे शांति मिलेगी
बाबुल आगे ये भी लिखते हैं कि अब और कुछ खास नहीं कहूंगा अब तुम कहोगे मैं सुनूंगा दिन में, शाम में। लेकिन मुझे एक सवाल का जवाब देना होगा, क्योंकि यह सही है! सवाल उठेगा कि मैंने राजनीति क्यों छोड़ी? मंत्रालय के जाने से इनका कोई लेना देना है क्या? हाँ वहाँ है- कुछ लोगों के पास होना चाहिए! चिंता नहीं करना चाहते हैं तो अगर वह सवाल का जवाब देगी तो सही होगा- इससे मुझे भी शांति मिलेगी।
2014 और 2019 के बीच बड़ा अंतर
तब भाजपा के टिकट में मैं अकेला था (अहलुवालियाजी के सम्मान में- दार्जीलिंग सीट में जीजेएम भाजपा का सहयोगी था), लेकिन आज बंगाल में भाजपा मुख्य विपक्षी दल है। आज पार्टी में कई नए चमकीले युवा तुर्क नेता उतने ही पुराने हैं, जितने पुराने नेता भी हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि उनके नेतृत्व में पार्टी यहां से एक लंबा सफर तय करेगी। कहने में कोई संकोच नहीं कि आज पार्टी में एक भी व्यक्ति नहीं होना बड़ी बात है, फिर भी यह स्पष्ट है कि सही निर्णय मेरा होगा। मजबूत, मजबूत विश्वास!
इशारों में कुछ नेताओं को जिम्मेदार बताया
एक और बात.. चुनाव से पहले राज्य नेतृत्व के साथ कुछ मुद्दे थे - यह हो सकता है, लेकिन उनमें से कुछ सार्वजनिक रूप से आ रहे थे। कहीं न कहीं मैं इसके लिए जिम्मेदार हूं (फेसबुक पोस्ट किया जो पार्टी अराजकता के स्तर में गिरता है)। फिर से कहीं और नेता भी बहुत जिम्मेदार हैं, हालांकि मैं नहीं जाना चाहता कि कौन जिम्मेदार है- लेकिन पार्टी की असहमति और वरिष्ठ नेताओं की असहमति से नुकसान हो रहा था। 'ग्राउंड जीरो' में भी पार्टी कार्यकर्ताओं के हौसले को किसी भी मदद नहीं कर रहा था रास्ता। 'रॉकेट साइंस' ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। इस समय यह पूरी तरह से अप्रत्याशित है, इसलिए आसनसोल की जनता को अनंत आभार और प्यार देकर दूर जा रहा हूं।
सरकारी मकान जल्द छोड़ दूंगा
माना नहीं कि मैं कहीं गया था, मैं 'खुद' के साथ था, इसलिए आज कहीं वापस जा रहा हूं, मैं कुछ नहीं कहूंगा। कई नए मंत्रियों को अभी तक सरकारी मकान नहीं मिला है, इसलिए मैं एक महीने में अपना घर छोड़ दूंगा (जितनी जल्दी हो सके)। नहीं, मैं इसे अब और नहीं लूंगा।
बंगाल में चुनाव को समझ नहीं पाए
आसमान में स्वामी रामदेवजी से फ्लाइट पर छोटी सी बातचीत हुई । बिल्कुल अच्छा नहीं लगा, जब पता चला कि बंगाल को बीजेपी बहुत गंभीरता से ले रही है, सत्ता से लड़ेगी, लेकिन शायद सीट की उम्मीद नहीं। ऐसा लगा जैसे बंगाली श्यामाप्रसाद मुखर्जी, अटल बिहारी वाजपेयी इतना कैसे वो बंगाली जो सम्मान, प्यार करता है वो भाजपा को एक सीट पर नहीं जिताएगा!!! खासकर जब पूरा भारत वोट देने से पहले ये तय कर ले कि उनके लायक उत्तराधिकारी नरेंद्र मोदी होंगे Next PM of India, बंगाल अलग क्यों सोचेंगे। चुनौती को बंगाली के रूप में लेना था उस समय, इसलिए मैंने सबको सुना, लेकिन जो महसूस किया वो किया- अनिश्चितता से डरे बिना, जो सही सोचा वो किया, साथ में 'दिल-जान'।
जो पहले किया, वही कर रहा हूं
स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक की नौकरी छोड़कर मुंबई जाते समय 1992 में भी यही किया था, आज वही किया!!! मैं तो जा रहा हूं..। हां, कुछ शब्द रह गए हैं..। शायद कभी कहेंगे..। आज मैं वहां नहीं हूं या कह रहा हूं..। मैं तो जा रहा हूं..।