BHOPAL. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजीज कुरैशी ने एक बार फिर मध्यप्रदेश की सियासत में मुसलमानों से भेदभाव का सवाल उठा दिया है। मुस्लिम वर्ग के वोट सबको चाहिए, लेकिन टिकट देने से परहेज है। मध्यप्रदेश की दो दशक की चुनावी सियासत देखें तो चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आता है। मध्यप्रदेश विधानसभा में 230 सीट हैं, लेकिन एक फीसदी टिकट भी मुस्लिमों के खाते में नहीं आते। खुद को मुस्लिमों का रहनुमा बताने वाली कांग्रेस ने पिछले बीस साल यानी चार विधानसभा चुनावों में सात मुसलमानों को टिकट दिया है। वहीं सबका साथ-सबका विकास और सबका विश्वास की बात करने वाली बीजेपी ने तो इन चार चुनावों में महज दो टिकट ही मुस्लिम वर्ग को दिए हैं।
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230 सीटों पर मुस्लिमों के टिकट का सियासी समीकरण :
साल 2003 :
- कांग्रेस ने भोपाल उत्तर से आरिफ अकील को टिकट दिया। अकील चुनाव जीते।
साल 2008 :
- कांग्रेस ने दो टिकट दिए। भोपाल उत्तर से आरिफ अकील और भोपाल मध्य से नासिर इस्लाम उम्मीदवार बने। आरिफ अकील जीते और नासिर इस्लाम हार गए।
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2013 :
- कांग्रेस ने भोपाल उत्तर से फिर आरिफ अकील को टिकट दिया। भोपाल मध्य से आरिफ मसूद को उम्मीदवार बनाया। आरिफ अकील फिर जीत गए और आरिफ मसूद हार गए।
2018 :
- इस चुनाव में कांग्रेस ने दो मुसलमान उम्मीदवार बनाए। भोपाल उत्तर से आरिफ अकील और भोपाल मध्य से आरिफ मसूद को टिकट दिया गया। दोनों उम्मीदवार चुनाव जीत गए।
बीजेपी में धर्म के आधार पर टिकट नहीं :
प्रदेश में करीब 15 सीटें ऐसी हैं जहां पर मुस्लिम वोट निर्णायक होते हैं लेकिन उसके बाद भी इन विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारे जाते। बीजेपी के अल्पसंख्यक वर्ग के नेता शेख हिदायतउल्ला कहते हैं कि हमारे यहां धर्म के आधार पर टिकट वितरण नहीं होता और न ही कोई कोटा परमिट चलता है। बीजेपी जिताउ उम्मीदवार को टिकट देती है। रही बात मुसलमानों की तो पार्टी योग्यता के आधार पर उनको जिम्मेदारी देती है।
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कांग्रेस में चुनाव जिताउ मुस्लिम चेहरे नहीं :
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजीज कुरैशी कहते हैं कि कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की धर्मनिरपेक्षता पर संदेह नहीं किया जा सकता। लेकिन फिर भी कांग्रेस में मुसलमान उपेक्षित हैं। कांग्रेस का इस विधानसभा चुनाव में कम से कम 15 उम्मीदवारों को टिकट देना चाहिए। कांग्रेस के प्रवक्ता फिरोज अहमद सिद्दीकी कहते हैं कि दरअसल मुस्लिम नेताओं ने सिर्फ माइनोरिटी की राजनीति की है इसलिए वे वहीं तक सिमट कर रह गए। उनकी स्वीकार्यता सर्व समाज में नहीं बन पाई। यही कारण है कि चुनाव जिताउ मुस्लिम चेहरों की कमी हो गई है। यही कारण है कि वे टिकट में पीछे रह जाते हैं।