RAIPUR. उत्तर-मध्य छत्तीसगढ़ के सरगुजा और बिलासपुर संभाग के 13 जिलों के 38 सीट पर जोगी कांग्रेस और बसपा के घटते प्रभाव के बीच कांग्रेस-बीजेपी में सीधे मुकाबले में 2023 का विधानसभा चुनाव रोचक और निर्णायक होने वाला है। उत्तर के पहाड़ी इलाकों में जहां 2018 के विधानसभा चुनाव में पहली 19 सीटों पर एकतरफा काबिज होने वाली कांग्रेस को बीजेपी के परंपरागत वोटों को रोकने के लिए मशक्कत करनी होगी, वहीं मध्य क्षेत्र बिलासपुर संभाग के मैदानी इलाकों की 19 सीटों पर जोगी कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी के मतदाताओं को कांग्रेस की ओर लौटने से रोकने के लिए बीजेपी को इस बार आदिवासी-हरिजन सीटों पर नए मतदाताओं की तलाश करनी पड़ेगी।
2018 के चुनाव में बीजेपी विरोधी लहर
2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी विरोधी लहर के चलते कांग्रेस ने जहां आदिवासी बाहुल्य सरगुजा संभाग की 14 और इससे लगे रायगढ़ जिले की 5 सीटों पर अपने पारंपरिक मतदाताओं की वापसी कर 19-0 स्कोर के साथ बीजेपी का सूपड़ा साफ कर दिया था। इन 19 सीटों के सीधे मुकाबले में कांग्रेस को हर विधानसभा क्षेत्र में सिर्फ जीत ही नहीं, हार-जीत का फासला भी काफी ज्यादा था। रायगढ़ जिले को छोड़कर बिलासपुर संभाग के मैदानी इलाकों की शेष 19 सीटों पर बीजेपी विरोधी लहर के बावजूद बिलासपुर, जांजगीर जिले की कुल 14 सीटों में कांग्रेस को सिर्फ 4 सीटें बिलासपुर, तखतपुर, सक्ती और चन्द्रपुर ही हासिल कर पाई।
कांग्रेस की वापसी मुश्किल
वहीं कोरबा जिले के कोरबा, कटघोरा, तानाखार तो कांग्रेस के पास रही, जबकि रामपुर की सीट बीजेपी ने बरकार रखी। बाद में स्वर्गीय अजीत जोगी के निधन के पश्चात ना केवल कांग्रेस ने मरवाही में वापसी की, बल्कि जोगी कांग्रेस और बसपा के प्रभाव वाले कोटा, लोरमी, जैजैपुर, पामगढ़ की सीटों पर भी अपनी पकड़ अब मजबूत बना ली है। इनमें जैजैपुर, पामगढ़ में बहुजन समाज पार्टी और कोटा, लोरमी में जोगी कांग्रेस की वापसी अब लगभग मुश्किल होगी। मैदानी इलाकों में कोरबा के रामपुर से खाता खोलने वाली बीजेपी बिलासपुर के कुल 8 सीटों में मुंगेली, बिल्हा, बेलतरा और मस्तूरी की 4 सीटें हासिल कर अपना दबदबा बिलासपुर की सीट हारकर भी अपना वजूद बनाए रखा। बिलासपुर जिले के कुल 9 सीटों में 2018 के चुनाव में 4 बीजेपी, 3 जोगी कांग्रेस और 2 कांग्रेस को हासिल हुईं, जबकि जांजगीर की 6 सीटों में बीजेपी-कांग्रेस और बसपा को 2-2 सीटें हासिल हुईं।
कोरबा की 4 सीटों में ज्यादा फेरबदल की संभावना नहीं
उत्तर-मध्य की सरगुजा और बिलासपुर संभाग की कुल 38 सीटों में उत्तर क्षेत्र की सरगुजा, रायगढ़ कोरिया क्षेत्र के 19 सीटों पर हालांकि कांग्रेस का प्रभाव अभी भी बरकरार है, जबकि जशपुर, कोरिया, सरगुजा और बलरामपुर क्षेत्र की 14 सीटों में कम से कम 4 सीटों पर बीजेपी के परंपरागत मतदाता उनकी वापसी मौजूदा हालात में करा सकते हैं, जबकि शेष 10 सीटों पर कांग्रेस का प्रभाव बीजेपी के मुकाबले अभी भी अधिक है। रायगढ़ क्षेत्र की सीटों में भी बीजेपी के लिए कम से कम 3 सीट पर उम्मीद है। इसके साथ ही कोरबा जिले की 4 सीटों पर ज्यादा फेरबदल की संभावना नहीं है। इसके विपरित अविभाजित बिलासपुर की 9 और जांजगीर की 6 सीटों पर इस बार स्वर्गीय अजीत जोगी का अभाव कांग्रेस का बढ़ा अन्तरकलह और बीजेपी के पास नए वोटरों का अभाव चुनाव को रोचक और अप्रत्याशित मोड़ दे सकता है। स्वर्गीय अजीत जोगी के निधन के बाद और बसपा में सर्वमान्य चेहरे का अभाव अविभाजित बिलासपुर और जांजगीर जिले में वोट बैंक बिखेर सकता है। इसका फायदा कांग्रेस और बीजेपी कितना ले पाती है, ये संभावित सीधे मुकाबले के लिए रोचक और दिलचस्प होगा।
कांग्रेस की कलह पर बीजेपी की उम्मीद
उत्तर-मध्य क्षेत्र की कुल 38 सीटों में 7 बीजेपी और 4 जोगी कांग्रेस और बसपा के पास है। बीजेपी को सबसे बड़ी उम्मीद इन 38 सीटों पर प्रभाव रखने वाले और मौजूदा सरकार के असंतुष्ट कैबिनेट मंत्री टीएस सिंहदेव पर भी लगी है। वहीं मध्य क्षेत्र के बिलासपुर संभाग में कांग्रेस के विधानसभावार चल रही गुटीय कलह से भी बीजेपी को अपनी परंपरागत सीटों पर वापसी की उम्मीदें हैं। बीजेपी को इस बार नए मतदाताओं की तलाश है तो कांग्रेस को जोगी कांग्रेस और बसपा के नेतृत्वविहीन होने के बाद अपने पुराने परंपरागत सतनामी और अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं के वापसी की। मुख्यमंत्री भूपेष बघेल जहां मैदानी इलाके के कुर्मी और अन्य पिछड़ा वर्ग को वोटों को समेटने में लगे हैं। वहीं बीजेपी अपने प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव को आगे कर बीते चुनाव में बीजेपी से टूटने वाले परंपरागत साहू मतदाताओं की बीजेपी में वापसी कराने में जुटे हुए हैं। जोगी के जाने के बाद जोगी, बसपा और सतनाम सेना की तिकड़ी भी बिखर रही है और कांग्रेस ने यहां बड़ी सेंध लगाकर बीजेपी को मैदानी इलाकों के लिए चुनौती बढ़ा दी है। वहीं उत्तर सरगुजा से अपना कांग्रेस की कलह अब मैदानी इलाकों में भी फैल रहा है और एकतरफा सत्ता के बाद उपेक्षित विरोध भी विस्तार लेने लगा है। जिससे सीधे मुकाबले में संघर्ष कड़ा और नजदीक का ही रहने का अनुमान है।