BHOPAL. साल 2023 में होने वाले मध्यप्रदेश विधानसभा के चुनाव परिणाम का आकलन आरंभ किए हुए 6 महीने हो चुके हैं। प्रदेश के कई ब्यूरोकेट्स (ऑफिसर्स) नौकरी छोड़कर या अभी-अभी सेवा निवृत्त होकर चुनावी रणनीति में पदार्पण की योजना बना रहे हैं। आईपीएस पुरुषोत्तम शर्मा मुरैना जिले की जौरा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। तो वहीं आईजी रेल महेन्द्र शिखरवार भी गृह जिले मुरैना की जौरा सीट से ही चुनाव लड़ने का मन बना रहे हैं। लवलेश नगर के एसडीएम पी.एल. प्रजापति 'खाकी' छोड़कर 'खादी' (कांग्रेस) पहनने को उतावले है। 'हनुमान' का रोल अदा करने वाले 'विक्रम मस्ताल' को कमलनाथ ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के बुदनी विधानसभा में सक्रिय किया हुआ हैं। शिवपुरी में बीजेपी को झटका ज्योतिरादित्य सिंधिया के खास रहे पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष जितेन्द्र जैन ने बीजेपी से प्राथमिक सदस्यता छोड़कर दी। सिंधिया के घोर समर्थक नीमच के वरिष्ठ नेता समंदर पटेल जिन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़कर 33 हजार वोट पाए थे, उन्होंने भी कांग्रेस का दामन थाम लिया है।
घर वापसी ऑपरेशन
विपरीत उक्त स्थिति के विंध्य में कांग्रेस को बड़ा झटका तब मिला जब राजेन्द्र शुक्ल के घोर राजनीतिक विरोधी रीवा के सेमरिया से विधायक रहे अभय मिश्रा ने संग पत्नी नीलम मिश्रा जो स्वयं भी पूर्व विधायक रह चुकी हैं, वे बीजेपी में शामिल हो गए। हाल ही में होमगार्ड महानिदेशक के पद से सेवानिवृत हुए पवन जैन जयपुर में बीजेपी में शामिल हो गए हैं, जो अपने गृह नगर राजखंड (राजस्थान) से चुनाव लड़ सकते हैं। पांढुर्णा के जज प्रकाश भाऊ उइके ने भी इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थामा है, जो पांढुर्णा विधानसभा से निश्चित रूप से चुनाव लड़ेंगे, ऐसी सूत्रों से खबर है। 2 पूर्व आईएएस, एक सेवानिवृत जज, कांग्रेस के पिछले चुनाव में उम्मीदवार रहे 2 विधायक समेत लगभग 1200 से ज्यादा जयस कार्यकर्ता प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री के समक्ष पार्टी में शामिल हो गए। इस प्रकार पिछले 2 महीनों में प्रदेश के भिन्न-भिन्न इलाकों से सिंधिया समर्थक के नेताओं ने बीजेपी छोड़ी है। इसी प्रकार प्रदेशभर में आयाराम-गयाराम या सामान्य तरीके से कहे तो इसे 'ऑपरेशन घर वापसी' कहकर इसका दौर तेजी से चालू हो गया है। ये 'घर वापसी' ऑपरेशन दोनों तरफ हो रहा है।
पीएम नरेंद्र मोदी के दौरे
मध्यप्रदेश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लगातार दौरे हो रहे हैं। नवीनतम दौरे में सागर जिले में संत रविदास मंदिर और स्मारक की आधारशिला रखी और मध्यप्रदेश को हजारों करोड़ रुपए की सौगात भी दी गई। अमित शाह ने पिछली बार भोपाल आकर जो घोषणा की थी और कार्यकर्ताओं को जो मंत्र दिया था कि अलगे 50 साल तक शासन करना है, तो मध्यप्रदेश को जीतना होगा। निश्चित रूप से ऐसा लगता है कि अमित शाह द्वारा सब कुछ दांव पर लगाकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह नहीं, बल्कि सिर्फ प्रधानमंत्री के नाम को सामने केन्द्रित कर मध्यप्रदेश का चुनाव लड़कर, जीतकर अगले 50 साल के लक्ष्य प्राप्ति का कार्य दुरंतगति से प्रारंभ कर दिया है। विपरीत इसके कांग्रेस ने बीजेपी के उसी के मुद्दे 'सॉफ्ट हिंदुत्व' को अपना लिया है, जो शायद फिलहाल मध्यप्रदेश में बीजेपी ने छोड़ दिया है। जो अब बीजेपी का चुनावी जीत का मुद्दा नहीं रहा। अब बीजेपी के छोड़े हुए मुद्दे को कांग्रेस किस तरह से अपना कर चुनावी नाव की पार लगाएगी, ये भी देखने की बात होगी।
50 प्रतिशत कमीशन का बखेड़ा
मध्यप्रदेश की राजनीति में एक नया बखेड़ा भी खड़ा हो गया है। जहां लघु एवं मध्यम श्रेणी संविदाकार संघ के पत्र दिनांकित 27.07.2023 द्वारा 50% कमीशन का उल्लेख किए जाने पर उस पत्र के हवाले में प्रियका गांधी के ट्वीट पर प्रदेश के 41 जिलों में एक रात्रि में ही प्रियका गांधी, कमलनाथ, जयराम रमेश, अरुण यादव के विरुद्ध फटाफट प्राथमिकी दर्ज की गई है। इससे राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का नया दौर चालू हो गया है। भष्टाचार के मुद्दे जिसके आधार पर कर्नाटक कांग्रेस बीजेपी का मान-मर्दन कर भारी जीत दर्ज कर चुकी है। उसी को दोहराने के लिए तथाकथित 50% कमीशन की शिकायत के पत्र की पर कांग्रेस ने भष्टाचार के मुद्दे को लपकने के लिए ताबड़तोड़ ट्वीट किए जिसका बीजेपी ने यह कहकर खंडन किया कि न तो ऐसा कोई संगठन अस्तित्व में है और तथाकथित पत्र जाली है।
कमलनाथ ने फाइनल किए लगभग 106 उम्मीदवार
कमलनाथ ने अपनी तैयारी को पुख्ता करते हुए लगभग 106 उम्मीदवारों को अंतिम रूप से फाइनल कर दिया है, ऐसा सूत्र बताते हैं। टिकटों के फाइनल करने के मामले में या चुनाव प्रचार करने के मामले कांग्रेस बीजेपी से फिलहाल आगे दिख दी रही है। कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी कि उम्मीदवारों की घोषणा के मामले में बीजेपी जो 24x7 चुनावी मोड में रहती है, बीजेपी की उम्मीदवारी की घोषणा के पूर्व ही कांग्रेस कर दे। अतः मध्यप्रदेश की राजनीति की बात करें तो अभी तक राजनीति के प्रमुख दोनो घोड़े बराबरी से दौड़ते हुए सत्ता की ओर जाते हुए दिख रहे हैं। इस दौड़ में अगले 4 महीने थककर किसकी दौड़ कम हो जाएगी और कौन तेजी से दौड़कर दूसरे को पछाड़कर सत्ता की 'मुख्यमंत्री' की कुर्सी तक पहुंचेगा, इसके लिए थोड़ा सा इंतजार और करना होगा।