मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों के सियासी भविष्य पर सवाल? दूसरी लिस्ट से पहले खेमे में मची खलबली!

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Harish Divekar
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मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों के सियासी भविष्य पर सवाल? दूसरी लिस्ट से पहले खेमे में मची खलबली!

BHOPAL. जिन सब्ज बागों को देखकर सिंधिया समर्थक कांग्रेस से बीजेपी में आए थे उन बागों से अब बहार का खुमार उतर रहा है। तीन साल तक सिंधिया समर्थकों को जो छूट मिली उस पर लगाम कसने का वक्त आ चुका है। बीजेपी ने धीरे-धीरे करके ढीली छोड़ी रस्सियों को खींचना शुरू कर दिया है। नतीजा ये है कि महाराज के समर्थकों के सियासी भविष्य पर ही अब तलवार लटकी हुई नजर आ रही है। पहले कांग्रेस की जीत का पोस्टर बॉय बने और फिर बीजेपी के पक्के वादों का पोस्टर बॉय बने सिंधिया अपने समर्थकों के पोस्टर वॉर को न रोक सके जिसकी सजा अब उन्हें भुगतना पड़ रही है।



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चुनाव आते ही बीजेपी की तस्वीर बदली हुई दिखाई देने लगी है



साल 2020 में हुआ उपचुनाव याद है आपको। 28 सीटों के उस उपचुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया हीरो थे। हर सभा हर रैली में सीएम शिवराज सिंह चौहान के साथ कंधे से कंधा मिलाते नजर आए। साल 2023 का मुख्य विधानसभा चुनाव आते-आते तस्वीर बदली हुई दिखाई देने लगी है। सिंधिया बीजेपी नेताओं की पंक्ति में अब काफी पीछे नजर आ रहे हैं। बीजेपी उम्मीदवारों की पहली लिस्ट में भी यही स्थिति नजर आ रही है। जिसमें दल बदलकर आए सिंधिया समर्थकों का नाम गायब हो चुका है। मामला इतने पर ही सिमट जाता तो भी ठीक था मुश्किल ये हो गई है आने वाली सूचियों में भी कई सिंधिया समर्थकों के नाम कटने के आसार नजर आ रहे हैं।



आने वाली लिस्ट में भी सिंधिया समर्थकों के दिल टूटने का अंदेशा है



सिंधिया समर्थकों को मेन स्ट्रीम से बाहर करना बीजेपी की मजबूरी बन चुकी है। खासतौर से ग्वालियर चंबल में जहां सिंधिया समर्थकों पर अब बीजेपी के पुराने नेता भारी पड़ने लगे हैं। पार्टी लाइन से बाहर जाकर महाराज के नाम पर रुआब झाड़ रहे समर्थकों की वजह से पहले ही बीजेपी में बहुत नाराजगी है। जिसका नुकसान भांपते हुए पार्टी अब सख्त फैसले ले रही है। पहली लिस्ट में उस सख्ती का ट्रेलर दिखाई दिया अब आने वाली लिस्ट में और भी सिंधिया समर्थकों के दिल टूटने का अंदेशा है। ऐसा इसलिए भी लग रहा है क्योंकि दलबदल वाली हर सीट पर पुराने भाजपाई दम मारने लगे हैं। कुछ सीटों पर तो एक से ज्यादा भाजपा नेता लॉबिंग में जुट गए हैं।



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सिंधिया और समर्थकों को धोखे की सजा मिलने वाली हैः कांग्रेस



उपचुनाव में ग्वालियर चंबल की 16 सीटें शामिल थीं। जिसमें से 15 सीटों पर सिंधिया समर्थकों ने ही चुनाव लड़ा था। पहली लिस्ट में बीजेपी ने उन सीटों में से दो पर प्रत्याशी उतार दिए हैं। एक सीट पर तो एंदल सिंह को दोबारा टिकट मिल सका है, लेकिन गोहद की सीट पर बीजेपी के पुराने नेता लाल सिंह आर्य भारी पड़े हैं। सिंधिया समर्थक रणवीर जाटव का टिकट काट दिया गया है। इसके बाद से बीजेपी में अटकलें तेज हैं कि अब सिंधिया समर्थकों के दिन लद गए हैं। कांग्रेस ने भी ये दावा कर ही दिया है कि अब सिंधिया और समर्थकों को धोखे की सजा मिलने वाली है।



बीजेपी में इन सीटों पर जबरदस्त द्वंद्व छिड़ा हुआ है



बीजेपी में हालात भी कुछ ऐसे हैं जिनके बाद अटकलें या दावे दोनों को सच मानना मजबूरी हो रहा है। हालांकि, कुछ सिंधिया समर्थकों का टिकट तय माना जा रहा है जिसमें तुलसी सिलावट, राजवर्धन सिंह दत्तीगांव, महेंद्र सिंह सिसोदिया का नाम शामिल है। इसके अलावा हार के बावजूद इमरती देवी टिकट की मजबूत दावेदार मानी जा रही हैं, लेकिन बाकी सीटों पर जबरदस्त द्वंद छिड़ा है।



मुरैना सीटः सिंधिया समर्थक पूर्व विधायक रघुराज कंसाना के अलावा पूर्व मंत्री रुस्तम सिंह के बेटे राकेश सिंह टिकट के दावेदार हैं। हमीर पटेल, गीता हर्षाना भी यहां पर दावेदारी जता रहीं हैं।



दिमनी सीटः कांग्रेस के रवींद्र सिंह तोमर विधायक हैं। 2020 के उपचुनाव में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए पूर्व विधायक गिर्राज डंडौतिया को 26467 वोट से हराया था। गिर्राज के अलावा पूर्व विधायक शिवमंगल सिंह तोमर यहां से दावेदारी कर रहे हैं।



करैरा सीटः इस सीट पर कांग्रेस के प्रागीलाल जाटव विधायक हैं। उपचुनाव में सिंधिया समर्थक जसमंत जाटव को हराया था। अब जसमंत जाटव के अलावा पूर्व विधायक रमेश खटीक और शकुंतला खटीक भी दावेदारों में शामिल हैं।



अशोकनगर सीटः विधायक जजपाल सिंह जज्जी के अलावा मुकेश कलावत, सतेंद्र कलावत, लड्डूराम कोरी टिकट की दावेदारी कर रहे हैं।



मुंगावली सीटः पीएचई राज्यमंत्री बृजेंद्र सिंह यादव को बीजेपी से सांसद केपी यादव की पत्नी अनुराधा यादव, पूर्व जनपद अध्यक्ष रामराजा यादव और अजय यादव की दावेदारी परेशान कर रही है।



मेहगांव सीटः सिंधिया समर्थक मंत्री ओपीएस भदौरिया के अलावा मूल बीजेपी नेता और पूर्व विधायक राकेश शुक्ला और मुकेश चौधरी भी मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं।



भांडेर सीटः 2020 में सिंधिया समर्थक रक्षा सिरौनिया कांग्रेस प्रत्याशी फूल सिंह बरैया से महज 161 वोटों से जीती थीं। इस बार पूर्व विधायक घनश्याम पिरौनिया उनकी सीट से बीजेपी के ज्यादा मजबूत उम्मीवार माने जा रहे हैं।



ग्वालियर पूर्व सीटः सिंधिया समर्थक और हारे हुए मुन्ना लाल गोयल के सामने रामेश्वरर भदौरिया चुनौती बनकर खड़े हैं।



ग्वालियर सीटः इस सीट से प्रद्युम्न सिंह तोमर विधायक हैं और मंत्री भी। बीजेपी के कद्दावर और पुराने नेता जयभान सिंह पवैया उनके सामने मुश्किल बन रहे हैं। 



पोहरी सीटः सिंधिया समर्थक पीडब्ल्यूडी राज्य मंत्री सुरेश राठखेड़ा के अलावा पूर्व विधायक प्रहलाद भारती और सलोनी धाकड़ भी यहां से दावेदार हैं।



अंबाह सीटः विधायक कमलेश जाटव क्षेत्र में सक्रिय हैं। मूल भाजपाइयों की जगह हाल ही में दल बदलकर आए सत्यप्रकाश सखवार उन्हें टक्कर दे रहे हैं। 



ग्वालियर चंबल की दलबदल वाली तकरीबन हर सीट पर नई और पुरानी बीजेपी का ये द्वंद्व जारी है। जिस हिसाब से पहली सूची में सिंधिया समर्थकों के नाम पर कैंची चली है। उसे देखते हुए लगता है कि बीजेपी की अगली लिस्ट भी सिंधिया समर्थकों के लिए सदमा ही साबित होगी।



बीजेपी किसी भी शर्त पर सीटें गंवाने के मूड में नहीं हैं



ये असर न सिर्फ लिस्ट पर दिख रहा है बल्कि सिंधिया के चुनावी इस्तेमाल पर भी नजर आ रहा है। चुनाव नजदीक आते-आते सिंधिया की जगह ग्वालियर चंबल में नरेंद्र सिंह तोमर का कद बढ़ा दिया गया है। सिंधिया जैसे चुनावी चेहरे का उपयोग न के बराबर नजर आ रहा है। इतना ही नहीं हाल ही में जारी मंत्री पद की लिस्ट जारी करते समय उमा भारती की तो सुनी गई, लेकिन सिंधिया समर्थक को मौका नहीं दिया गया। उसकी जगह एक पद खाली रखना ही मुनासिब समझा गया। क्या ये इस बात का इशारा नहीं है कि सिंधिया का मैजिक अब बीजेपी में खत्म हो रहा है। बीजेपी ने चुनावी समय में नए कार्यकर्ताओं की जगह मूल कार्यकर्ताओं को ही तवज्जो देकर ये साफ कर दिया है कि पार्टी किसी भी शर्त पर सीटें गंवाने के मूड में नहीं हैं।



अगली लिस्ट तय करेगी बीजेपी में महाराज का राज कितना कायम है



ये संकट सिर्फ सिंधिया समर्थकों पर नहीं है साख तो महाराज की भी दांव पर है। जिनका हाथ थाम कर और जीती जिताई सीट छोड़कर समर्थक दल बदल के लिए तैयार हुए थे, लेकिन ये लगता नहीं कि सिंधिया इस बार अपने  समर्थकों के लिए कुछ खास कमाल कर सकेंगे। फिलहाल तो पार्टी ने उन्हीं चुनावी कार्यक्रमों में सीमित कर दिया है। अब अगली लिस्ट ये तय करेगी कि बीजेपी में महाराज का राज कितना कायम है और उनके समर्थकों का रुतबा कितना रंग लाने वाला है।


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