राहुल को कोर्ट ने 2 साल सजा सुनाई, दादी को 47 साल पहले अयोग्य करार दिया था, फैसले के 13 दिन बाद बदल गई थी देश की राजनीति, जानें

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Atul Tiwari
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राहुल को कोर्ट ने 2 साल सजा सुनाई, दादी को 47 साल पहले अयोग्य करार दिया था, फैसले के 13 दिन बाद बदल गई थी देश की राजनीति, जानें

BHOPAL. कांग्रेस नेता राहुल गांधी को सूरत के सेशंस कोर्ट ने मानहानि मामले में 2 साल की सजा सुनाई है। हालांकि, 30 दिन तक सजा नहीं हो सकेगी। कोर्ट के सजा सुनाने के एक दिन बाद ही यानी 24 मार्च को उनकी संसद की मेंबरशिप भी चली गई। हालांकि, इससे 47 साल पहले यानी 1975 में राहुल की दादी यानी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी दोषी करार दिया गया था। 12 जून 1975 को इंदिरा के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया। 25 जून 75 को इंदिरा ने देश में इमरजेंसी लगा दी। आइए जानते हैं कि वो क्या मामला था...





इतिहास बन गया 12 जून





12 जून 1975। इस तारीख ने भारतीय राजनीति की दिशा ही काफी हद तक बदल दी। इसी दिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला सुनाते हुए उन्हें चुनावों में धांधली का दोषी पाया और उनका चुनाव रद्द कर दिया। ये कहानी 1971 में रायबरेली के लोकसभा चुनाव से शुरू होती है। इंदिरा गांधी को इसमें जीत मिली थी।  उनकी जीत को प्रतिद्वंद्वी राजनारायण ने कोर्ट में चुनौती दी। इस मुक़दमे को इंदिरा गांधी बनाम राजनारायण के नाम से जाना जाता है। 





12 जून, 1975 को जब फैसला होने वाला था, तब सुबह 10 बजे से पहले ही इलाहाबाद हाईकोर्ट का कोर्ट रूम नंबर 24 खचाखच भर चुका था। जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा पर पूरे देश की नजरें थीं।





इंदिरा जीतीं, लेकिन राजनारायण कोर्ट चले गए





1971 चुनाव में राजनारायण संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार थे। राजनारायण ना केवल लगातार अपनी जीत के दावे कर रहे थे, बल्कि उन्होंने चुनाव नतीजे से पहले ही अपना विजय जुलूस भी निकाल दिया था। जब रिजल्ट घोषित हुआ तो राजनारायण हार चुके थे। राजनारायण ने कोर्ट को करीब 7 ऐसे मामलों की सूची अदालत को सौंपी, जिसके जरिए उन्होंने दावा किया कि इंदिरा ने चुनावों में धांधली की और चुनाव जीतने के लिए सरकारी मशीनरी और संसाधनों का दुरुपयोग किया। लिहाजा उनका चुनाव निरस्त कर दिया जाए। अदालत ने उनके आरोप पत्र में ज्यादातर मामलों को खारिज कर दिया था, लेकिन कुछ मामले ऐसे थे, जिसे अदालत ने सही पाया, क्योंकि प्रधानमंत्री हाउस के वाहन उनके चुनाव क्षेत्र में देखे गए थे।







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पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और दिग्गज समाजवादी नेता राजनारायण।







दो मामलों में इंदिरा दोषी पाई गईं





12 जून 1975 के दिन जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ठीक 10 बजे अपने चेंबर से कोर्ट रूम में आए। आते ही उन्होंने साफ कर दिया था कि राजनारायण की याचिका में उठाए गए कुछ मुद्दों को मैंने सही पाया है। राजनारायण की याचिका में जो 7 मुद्दे इंदिरा गांधी के खिलाफ गिनाए गए थे, उनमें से पांच में तो जस्टिस सिन्हा ने इंदिरा गांधी को राहत दे दी थी, लेकिन दो मुद्दों पर उन्होंने इंदिरा गांधी को दोषी पाया। फैसले में कहा कि जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत इंदिरा गांधी ने सरकारी साधनों का दुरुपयोग किया है, लिहाजा उन्हें अगले 6 सालों तक लोकसभा या विधानसभा का चुनाव लड़ने के अयोग्य ठहराया जाता है।





कोर्ट में 5 घंटे खड़ी रहीं इंदिरा गांधी





इस केस में पहली भारत की प्रधानमंत्री कोर्ट में पेश हुईं। तब ये भी सवाल आया कि जज के सामने प्रधानमंत्री और बाकी लोगों का शिष्टाचार कैसा हो, क्योंकि अदालत में सिर्फ और सिर्फ जज के प्रवेश करने पर ही उपस्थित लोगों के खड़े होने की परंपरा है, पर जब प्रधानमंत्री सामने हो तो क्या करना चाहिए। इस पर जस्टिस सिन्हा ने कहा कि अदालत में लोग तभी खड़े होते हैं, जब जज आते हैं, इसलिए इंदिरा गांधी के आने पर किसी को खड़ा नहीं होना चाहिए। तब कोर्ट में लोगों की एंट्री के लिए पास बांटे गए थे। कोर्ट में इंदिरा गांधी को करीब 5 घंटे तक सवालों के जवाब देने पड़े। इंदिरा और उनके समर्थकों को अंदाजा लगने लगा था कि हाईकोर्ट का फैसला उनके खिलाफ जा सकता है। ऐसे में जज को मनाने की कोशिश भी हुई, लेकिन जस्टिस सिन्हा किसी दबाव में नहीं आए।





इंदिरा को सुप्रीम कोर्ट से थोड़ी सी राहत मिली





इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद इंदिरा गांधी सुप्रीम कोर्ट गईं। तब सुप्रीम कोर्ट के वैकेशन जज जस्टिस वीआर कृष्ण अय्यर ने भी कहा कि उन पर भी इस केस को लेकर दवाब बनाने की कोशिश हुई। जस्टिस कृष्ण अय्यर ने स्वीकार किया था कि देश के कानून मंत्री ने उनसे मिलने के लिए फोन किया था। 24 जून 1975 को जस्टिस अय्यर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर स्थगन आदेश तो दे दिया, लेकिन ये पूर्ण नहीं आंशिक स्थगन आदेश था। जस्टिस अय्यर ने फैसला दिया था कि इंदिरा गांधी संसद की कार्यवाही में भाग तो ले सकती हैं, लेकिन वोट नहीं कर सकतीं।





...और देश में लग गई इमरजेंसी





सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के मुताबिक, इंदिरा गांधी की लोकसभा सदस्यता चालू रह सकती थी। इधर, विपक्ष ने इंदिरा गांधी पर अपने हमले तेज कर दिए। इसके बाद जिस तरह की राजनीतिक हलचल हुई, उसमें इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को पूरे देश में इमरजेंसी लगा दी।





71 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 352 सीटें मिली थीं





1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी की अगुवाई में कांग्रेस (आर) ने 352 सीटें हासिल करके जबर्दस्त जीत दर्ज की थीं। इंदिरा अपनी परंपरागत रायबरेली सीट से खुद इंदिरा गांधी बड़े अंतर से जीतीं थीं। उन्होंने दिग्गज समाजवादी नेता राजनारायण को हराया था। 7 मार्च 1971 को वोटिंग हुई, 9 मार्च से काउंटिंग शुरू हुई। 10 मार्च को घोषित हुए। इसमें इंदिरा गांधी को 1 लाख 83 हजार 309 और राजनारायण को 71 हजार 499 वोट मिले।





इंदिरा के वकील थे सतीश चंद्र खरे, राजनारायण के शांति भूषण





मामले में इंदिरा गांधी की तरफ से सतीश चंद्र खरे की अगुवाई में वकीलों की टीम ने पैरवी, जबकि राजनारायण की तरफ से दिग्गज वकील शांति भूषण इलाहाबाद हाईकोर्ट में पेश हुए। शांतिभूषण ने इस शर्त पर अपनी स्वीकृति दी कि केस प्रचार के लिए नहीं, बल्कि गंभीरता से लड़ा जाएगा। शांति भूषण ने लिखा है, मैंने बहस शुरू की तो मुझे लगा कि जस्टिस सिन्हा मुकदमे को कोई खास तवज्जो नहीं दे रहे। लेकिन तीसरे दिन से जब वह नोट्स लेने लगे, तब मुझे लगा कि वह इसे सीरियसली से ले रहे हैं। दोनों ओर से तैंतीस दिनों तक दलीलें पेश की गईं थी। केस में एक अहम तारीख 17 मार्च 1975 थी, जब देश का कोई प्रधानमंत्री गवाह के तौर पर पहली बार अदालत के कटघरे में पेश हुआ। जस्टिस सिन्हा ने उस दिन कोर्ट परिसर में पुलिस के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी थी।





अपनी आत्मकथा Courting Destiny में शांति भूषण ने लिखा- एक योग्य वकील और पूर्व एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने एक बार कहा कि सुप्रीम कोर्ट के सामने आने वाले तमाम महत्वपूर्ण केसों पर आपका यह केस भारी है। आपकी किस्मत थी कि आपको इस केस की पैरवी का मौका मिला। शांति भूषण के मुताबिक, इंदिरा गांधी के केस के बाद कई बड़े मुवक्किलों ने मुझे यह कहते हुए वकील किया कि जब आप प्रधानमंत्री के खिलाफ जीत सकते हैं तो आपको अपना केस सौंप कर हम बेफिक्र हैं।



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