विपक्षी एकता की कछुआ चाल से अपने ही गढ़ में गच्चा खा सकते हैं नीतीश कुमार! बिहार में किनारे लगाने के लिए क्या है RJD का नया प्लान?

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Sunil Shukla
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विपक्षी एकता की कछुआ चाल से अपने ही गढ़ में गच्चा खा सकते हैं नीतीश कुमार! बिहार में किनारे लगाने के लिए क्या है RJD का नया प्लान?

PATNA. देश में अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बाहर करने के लिए विपक्षी दलों को एकजुट करने की भरसक कोशिश में जुटे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपने ही गढ़ में शह और मात के खेल का सामना करना पड़ा सकता है। उनके साथ यह खेल और कोई नहीं बल्कि लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल (राजद) खेल सकती है। दरअसल, विपक्षी एकता के बहाने नीतीश कुमार को बिहार की राजनीति में किनारे लगाने की चाल विफल होते देख आरजेडी ने इसके लिए अब नए प्लान पर विचार शुरू कर दिया है। बिहार की राजनीति के जानकारों के मुताबिक आरजेडी उन्हें लंबे समय तक ढोने के मूड में नहीं है। बताया जा रहा है कि राज्य में सुशासन बाबू की उल्टी गिनती लोकसभा चुनाव से शुरू हो जाएगी।



आरजेडी की शर्त थी कि नीतीश राष्ट्रीय राजनीति में भूमिका निभाएंगे



बताया जा रहा है कि बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का असल खेल अब शुरू होगा। वो अभी तक जानबूझ कर बैकफुट पर थी। आरजेडी के एक बड़े नेता के मुताबिक नीतीश कुमार ने महागठबंधन में आने की एक ही शर्त रखी थी कि वे सीएम की कुर्सी पर बने रहेंगे। आरजेडी ने उनकी बात मान ली थी। हालांकि इसके उलट आरजेडी ने शर्त रखी थी कि 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए नीतीश कुमार राष्ट्रीय राजनीति में अपनी भूमिका तलाशेंगे। इसके लिए बिहार के महागठबंधन की तर्ज पर वे देश भर में सभी बड़ी विपक्षी पार्टियों को बीजेपी के खिलाफ एक मंच पर लाने का प्रयास करेंगे। इस मुहिम के लिए उन्हें महागठबंधन की ओर से उन्हें पीएम का फेस बनाने की सहमति आरजेडी ने दे दी थी।



राहुल को सजा हुई तो नीतीश ने सक्रियता बढ़ाई



महागठबंधन से नाता जोड़ते ही नीतीश ने विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने का अभियान शुरू किया, लेकिन सोनिया गांधी ने उन्हें कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला। हालांकि उस समय तक राहुल गांधी को मोदी सरनेम के मानहानि वाले मामले में सजा नहीं हुई थी और वे भारत जोड़ो यात्रा की तैयारी में लगे थे। बाद में जब उन्हें सजा हो गई और इस आधार पर उनकी संसद की सदस्यता खत्म होने के साथ ही अगला चुनाव लड़ने की संभावना खत्म हो गई तो नीतीश कुमार अचानक सक्रिय हो गए। हालांकि इस बार उन्होंने एकता के लिए नया फॉर्मूला निकाला कि वे पीएम पद की रेस में शामिल नहीं हैं। कांग्रेस ने उनकी बात सुनी और उन्हें विपक्षी दलों को एकजुट करने की पहल का जिम्मा सौंप दिया।



टीएमसी और आप के रुख से बिदकी कांग्रेस



नीतीश विपक्षी दलों को बीजेपी के खिलाफ एकजुट करने की मुहिम के तहत अलग-अलग पार्टियों के नेताओं के घर-घर जाकर उनसे मिलने लगे। करीब-करीब सभी प्रमुख विपक्षी दलों के नेताओं से उनकी मुलाकात हो चुकी थी। इस बीच ममता बनर्जी और आम आदमी पार्टी ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। ममता ने कांग्रेस के इकलौते विधायक को तोड़ लिया तो आम आदमी पार्टी के संगठन महासचिव संदीप पाठक ने बयान दे दिया कि लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (AAP) किसी दल या गठबंधन से समझौता नहीं करेगी। इससे कांग्रेस को अहसास हो गया कि विपक्ष की दूसरी पार्टियों के नेताओं का रुख उसके प्रति ठीक नहीं है। यही वजह है कि कांग्रेस ने पहले विपक्षी दलों की पटना में 12 जून को होने वाली बैठक में शामिल होने की हामी तो भरी, लेकिन ऐन वक्त राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे की व्यस्तता बताकर बैठक में आने से इनकार कर दिया। यानी विपक्षी एकता बनने से पहले ही टूट गई है। विपक्ष को एक मंच पर लाने की नीतीश की मुहिम परवान न चढ़ती देख आरजेडी को अब यह नागवार लगने लगा है कि सिर्फ 43 विधायकों वाली पार्टी जेडीयू का नेता कैसे लंबे समय तक राज्य का सीएम बना रह सकता है।



ये है नीतीश के पर कतरने का आरजेडी का प्लान



आरजेडी ने नीतीश कुमार के पर कतरने का जो प्लान तैयार किया है, उसमें 3 बातें बहुत महत्वपूर्ण और तार्किक हैं। पहली ये कि नीतीश कुमार का जेडीयू 43 विधायकों के साथ विधानसभा में अभी तीसरे नंबर की पार्टी है। दूसरा तर्क ये है कि साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी को भले ही 16 सीटों पर जीत मिल गई और आरजेडी अपना खाता भी नहीं खोल पाई, लेकिन तब नीतीश को बीजेपी का समर्थन हासिल था। यदि नीतीश कुमार की असल ताकत आंकने के लिए 2014 के लोकसभा चुनाव को आधार बनाया जाए तो तब उन्हें सिर्फ 2 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था। यानी उनकी अपनी ताकत महज 2 सीटों की ही है। तीसरी महत्वपूर्ण बात यह कि नीतीश कुमार 1994 से ही लव-कुश समीकरण के नेता बने हुए हैं। हालांकि 2 जातियों के वोट से उनकी कामयाबी संदिग्ध थी, पर बीजेपी का लगातार साथ मिलते रहने से उसके वोट भी नीतीश कुमार को ट्रांसफर होते रहे। अब ये समीकरण टूट चुका है। जेडीयू से अलग होकर अपनी पार्टी आरएलजेडी (RLJD) बनाने वाले उपेंद्र कुशवाहा ने कुशवाहा बिरादरी को नीतीश से झटक लिया है। जेडीयू से ही अलग हुए नीतीश के स्वजातीय कुर्मी जाति के आरसीपी सिंह अब बीजेपी में जाकर कुर्मी मतदाताओं को भी बांटते हैं। अपने दम पर लड़े चुनावों में नीतीश कुमार को जो 16-18 प्रतिशत वोट मिल रहे हैं, उसमें 10-12 प्रतिशत वोट तो लव-कुश समीकरण वाले ही होते थे।



अभी नीतीश कुमार को इसलिए ढो रहा है आरजेडी



अब सवाल उठता है कि जब आरजेडी को जेडीयू या नीतीश कुमार की असलियत मालूम है तो वह उन्हें क्यों ढो रहा है? दरअसल, आरजेडी को यह अंदाजा नहीं था कि नीतीश इतनी जल्दी इस दुर्गति को प्राप्त होंगे। उसे तो अनुमान था कि वे पीएम बनें न बनें, पर बिहार का पिंड वे इसी बहाने छोड़ देंगे। यही वजह रही कि महागठबंधन में नीतीश के दोबारा आने के बाद से ही यह आवाज गूंजने लगी थी कि नीतीश पीएम मटेरियल हैं। वह पीएम फेस हैं। नीतीश अंतरराष्ट्रीय राजनीति में जाएंगे। बिहार की गद्दी तेजस्वी यादव को सौंप देंगे। नीतीश ने तेजस्वी यादव के नेतृत्व में 2025 का विधानसभा का चुनाव लड़ने की बात कह कर कयासों की पुष्टि भी कर दी। जब नीतीश ने विपक्षी एकता की बात आगे बढ़ाने में आनाकानी शुरू की तो आरजेडी के हल्ला बोल ब्रिगेड ने उनके खिलाफ माहौल बनाना शुरू कर दिया।



लोकसभा चुनाव से होगा महागठबंधन में दंगल



दरअसल, नीतीश कुमार को लेकर महागठबंधन में दंगल लोकसभा चुनाव से शुरू होगा। आरजेडी ने तय किया है कि सीटों के बंटवारे के वक्त नीतीश कुमार की 2014 में जीतीं लोकसभा सीटों और 2020 के विधानसभा चुनाव में जीती सीटों को आधार बनाया जाए। यदि ऐसा हुआ तो नीतीश कुमार के पास महागठबंधन छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा। वे इस अपमान का घूंट पीकर रह भी गए तो उन्हें सीएम की कुर्सी तो छोड़नी ही पड़ेगी। आरजेडी को डर है कि यदि अभी कोई कदम उठाया तो नीतीश कुमार बिदक सकते हैं। पाला बदलने की पुरानी आदत का पालन करते हुए वे बीजेपी के साथ जा सकते हैं। हालांकि अमित शाह और जेपी नड्डा जैसे बीजेपी के बड़े नेता कई बार यह दोहरा चुके हैं कि नीतीश की एनडीए गठबंधन में वापसी की अब दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं है। लेकिन राजनीति में कोई बात ब्रह्म वाक्य या आखिरी नहीं होती। इसलिए आरजेडी लोकसभा चुनाव तक वेट एंड वॉच की रणनीति अपनाएगा।


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