BHOPAL. सर संघचालक मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) के पंडितों और जातिवाद के बारे में बयान पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) को 24 घंटे के भीतर ही सफाई पेश करनी पड़ी है। इस बारे में RSS के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने सोमवार (6 फरवरी) को बकायदा बयान देकर कहा है कि संघ प्रमुख ने रविवार को मुंबई में संत रविदास जयंती के कार्यक्रम में पंडित शब्द का उपयोग विद्वान लोगों के लिए किया है। उनका संबोधन मराठी भाषा में था और इसमें पंडित का अर्थ विद्वान या उच्च विद्वान के लिए किया जाता है। इससे पहले में 2015 में सर संघचालक के आरक्षण के मुद्दे भी एक बयान पर सवाल उठने के बाद आरएसएस को स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा था।
संघ की सफाई- मराठी में पंडित का अर्थ विद्वान
आंबेकर ने न्यूज एजेंसी एएनआई से बात करते हुए कहा कि सर संघ चालक ने रविवार को अपने वक्तव्य में पंडित शब्द का उपयोग विद्वान के लिए किया है। मुंबई में संत रविदास जयंती के मौके पर वे मराठी में बोल रहे थे। मराठी में पंडित शब्द का उपयोग विद्वान के लिए किया जाता है। भागवत जी ने संतों की अनुभूति के आधार पर कहा कि सत्य यही है कि ईश्वर सब प्राणियों में है। रूप, नाम कुछ भी हो लेकिन योग्यता एक है। मान-सम्मान एक है और सब के बारे में अपनापन है। कोई भी ऊंचा नीचा नहीं है। शास्त्रों का आधार लेकर पंडित अर्थात विद्वान लोग जो जाति आधारित ऊंच-नीच की बात करते हैं वह झूठ है। उनका यही एग्जैक्ट स्टेटमेंट था, मुझे लगता है इसे उचित अर्थों में लिया जाए।
भागवत ने कहा था जाति, वर्ण और संप्रदाय पंडितों ने बनाए
संघ प्रमुख ने रविवार को मुंबई में कहा था कि जाति, वर्ण और संप्रदाय व्यवस्था पंडितों ने बनाई थी। यदि जातियों में विभाजन नहीं हुआ होता तो हमारे समाज के बंटवारे का फायदा कोई दूसरा नहीं उठा पाता। इसी के चलते देश पर आक्रमण हुए। उनके इस बयान को ब्राह्मणों के खिलाफ माना जा रहा है। बताया जा रहा है कि इसी के चलते नागपुर में आरएसएस मुख्यालय से प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर से इस बारे में स्पष्टीकरण जारी कराया गया है।
आरक्षण पर भागवत के इस बयान से मचा था बवाल
इससे पहले 2015 में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण के मुद्दे पर भी बयान दिया था। दिल्ली में एक कार्यक्रम में इसकी चर्चा करते हुए भागवत ने कहा था- मैंने आरक्षण के विषय पर अपने विचार व्यक्त किए थे लेकिन इस पर जरूरत से ज्यादा उथल-पुथल मच गई। आरक्षण के मसले पर पूरी चर्चा मुख्य मुद्दे से किसी और दिशा में भटक गई। मेरा मानना है कि जो लोग आरक्षण के समर्थन में हैं उन्हें अपनी बात रखते वक्त ऐसे लोगों का भी ध्यान रखना चाहिए जो आरक्षण के खिलाफ हैं। इसी तरह जो लोग आरक्षण के खिलाफ हैं, उन्हें अपनी चर्चा में आरक्षण का समर्थन करने वाले लोगों को भी शामिल करना चाहिए। कायदे से दोस्ताना माहौल में दोनों विचारों पर चर्चा होनी चाहिए।
विपक्ष ने भागवत के बयान को आरक्षण विरोधी मानसिकता बताया
भागवत के बयान को आरक्षण विरोधी मानसिकता करार देते हुए विरोधी दलों ने बड़ा बवाल खड़ा कर दिया था। बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की अध्यक्ष मायावती ने कहा था कि संघ को अपनी आरक्षण विरोधी मानसिकता छोड़ देनी चाहिए। कांग्रेस के रणदीप सुरजेवाला ने संघ को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा था कि भागवत के बयान से आरएसएस का एंटी दलित और एंटी ओबीसी वाला चेहरा बेनकाब हो गया है। पूरा विपक्ष संघ परिवार और बीजेपी के खिलाफ हमलावर हो गया था।
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संघ के प्रवक्ता को देनी पड़ी थी सफाई
आरक्षण पर भागवत के बयान पर बवाल मचने के बाद संघ परिवार को अपने मुखिया के बचाव में उतरकर सफाई देनी पड़ी थी। संघ के तत्कालीन प्रवक्ता अरुण कुमार को सामने आकर यह स्पष्ट करना पड़ा था कि सरसंघचालक के भाषण के एक हिस्से पर अनावश्यक विवाद खड़ा करने की कोशिश की जा रही है। समाज में सद्भावना पूर्वक आपसी बातचीत के आधार पर सभी सवालों के समाधान का महत्व बताते हुए उन्होंने आरक्षण जैसे संवेदनशील विषय पर विचार करने का आह्वान किया था। जहां तक संघ का आरक्षण के विषय पर मत है, वह अनेक बार स्पष्ट किया जा चुका है कि अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी एवं आर्थिक आधार पर पिछड़ों के आरक्षण का संघ पूर्ण समर्थन करता है।