BHOPAL. कुछ समय पहले की एक तस्वीर जरूर याद होगी आपको। ज्योतिरादित्य सिंधिया के आलीशान महल में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शाही दावत पर पहुंचे थे। तस्वीरें इस बात की गवाह हैं कि मेहमान नवाजी में महाराज, युवराज समेत पूरे परिवार ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। अब इस शाही भोज के पीछे कोई स्वार्थ था या नहीं ये तो सिंधिया ही बेहतर समझ सकते हैं, लेकिन शाह ने ये साफ कर दिया है कि जहां बात पार्टी की जीत की होगी वो किसी से समझौता नहीं करेंगे। न दावत देने वाले महाराज से, न उनके समर्थकों से और न ही उन नेताओं से जो सिंधिया के बहाने नाराजगी दिखाकर असंतोष फैला रहे हैं। महाराज के गढ़ में ही खड़े होकर शाह सिंधिया और उनके समर्थकों को बड़ी चेतावनी दे गए हैं।
शाह की कोशिश चेहरा कोई भी हो सरकार बीजेपी की होनी चाहिए
मध्यप्रदेश के हालातों को जानने के बाद इस प्रदेश की कमान अब अमित शाह ने अपने हाथ में ले ली है। कोशिश ये है कि सत्ता के लिहाज से बेशकीमती इस प्रदेश का चेहरा कोई भी हो, लेकिन सरकार बीजेपी की ही होना चाहिए। इसी मकसद के साथ शाह यहां तेजी से एक्टिव हो चुके हैं। पहले हुए दौरों के बाद अब अमित शाह भोपाल आए तो पहले पत्रकारों से मुखातिब हुए। फिर अपनी ही सरकार का रिपोर्ट कार्ड जारी किया और उसके बाद कांग्रेस की खामियां भी गिनाई। भोपाल के दौरे के बाद अमित शाह ग्वालियर भी पहुंचे। यहां हुई बैठक में जो हुआ वो भोपाल की सभा से ज्यादा चौंकाने वाला रहा।
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शाह की वॉर्निंग असल में अपने को सेफ समझ रहे चेहरों के लिए थी
ग्वालियर में अमित शाह के कुछ सवा दो घंटे रुकने वाले थे, लेकिन एक बार चर्चा शुरू हुई तो तीन घंटे बीत गए। इन तीन घंटों में अमित शाह ने साफ कर दिया कि दूध का दूध और पानी का पानी करने में उन्हें देर नहीं लगने वाली है। 34 सीटों के मुहाफिज बने नेताओं को वो इनडायरेक्टली ये हिंट कर गए कि संगठन कड़े फैसले लेने में जरा भी देर करने वाला नहीं है। जो लोग ग्वालियर चंबल की राजनीति समझते हैं और मौजूदा हालात से वाकिफ हैं, वो ये खूब अंदाजा लगा सकते हैं कि शाह की ये वॉर्निंग असल में किन चेहरों के लिए थी।
अमित शाह ने विरोधियों को एक होने की नसीहत भी दी
भोपाल के बाद ग्वालियर पहुंचे अमित शाह की बैठक के लिए वहां सवा दो घंटे का वक्त रखा गया था, लेकिन शाह एक बार अंचल के नेताओं के साथ चर्चा करने बैठे तो तीन घंटे गुजर गए। समय ज्यादा लगा, लेकिन अमित शाह ये साफ कर गए कि ग्वालियर चंबल में महाराज भाजपा और पुरानी भाजपा का अंतर उनसे छिपा नहीं है। यही वजह मानी जा रही है कि अमित शाह ने विरोधियों को एक होने की नसीहत दी है। साथ ही ताकीद कर दिया है कि जीत तो अब हर हाल में चाहिए।
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सिंधिया समर्थकों के कारण ग्वालियर चंबल में संतुलन गड़बड़ा रहा है
ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने के बाद उनके समर्थकों की वजह से ग्वालियर चंबल अंचल में गुटीय संतुलन लगातार गड़बड़ा रहा है। बीजेपी में रहकर भी सिंधिया ने इस क्षेत्र का पोस्टर बॉय बनने की खूब कोशिश की, लेकिन असंतोष को खत्म करने के लिए बीजेपी ने उनके इरादों पर पानी फेर दिया है। नरेंद्र सिंह तोमर को बड़ी जिम्मेदारी देकर ये मैसेज क्लीयर कर दिया गया है कि तोमर ही पार्टी के लिए बड़ा चेहरा हैं। अब शाह ने बिना किसी गुट का नाम लिए असंतुष्ट और विरोधियों को चेतावनी दी है। इससे ये तो साफ हो गया कि कांग्रेस की तरह बीजेपी में भी गुटों की राजनीति हावी हो रही है।
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अनर्गल बयान दे रहे सिंधिया समर्थकों पर लगाम कसना भी जरूरी है
लेकिन क्या शाह की नसीहत और सख्ती ही काफी है। क्योंकि नाराजगी की वजह सिर्फ सिंधिया समर्थक नहीं बल्कि उन्हें पार्टी की ओर से मिल रही तवज्जो भी है। ग्वालियर में उपचुनाव हारे दोनों सिंधिया समर्थकों मुन्नालाल गोयल और इमरतीदेवी को निगम अध्यक्ष बनाया गया है, इसी प्रकार मुरैना में दोनों पराजित सिंधिया समर्थक पूर्व विधायक रघुराज सिंह कंसाना और गिरिराज डंडोतिया भी निगम की अध्यक्ष पद से नवाजे गए हैं। मुरैना जिले में ही सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर आए पूर्व मंत्री एंदलसिंह कंसाना भी खुशकिस्मत रहे। हालांकि, वे कांग्रेस में रहते सिंधिया के बजाए दिग्विजय के ज्यादा नजदीक माने जाते थे। भिंड में उपचुनाव में पराजित हुए रणवीर सिंह जाटव सिंधिया की गुडबुक में रहने के चलते निगम अध्यक्ष बनने में कामयाब रहे हैं। इसी जिले में सिंधिया समर्थक ओपीएस भदौरिया पहले से ही शिवराज सिंह की कैबिनेट में हैं। इसके अलावा भी गाहे बगाहे सिंधिया समर्थक ऐसे बयान दे डालते हैं जो पार्टी लाइन से मेल नहीं खाता है। ऐसे समर्थकों की लगाम कसना भी जरूरी है।
साल 2018 के चुनाव में बीजेपी यहां कि 34 सीटों में से 7 सीटें ही जीत सकी थी। सिंधिया समर्थकों के दल बदल के बाद इस अंचल की 20 सीटें बीजेपी की झोली में आईं। अब बीजेपी इस संख्या को बढ़ता हुआ ही देखना चाहती है।
तोमर खुद अपने लिए दूसरी सीट की तलाश कर रहे हैं?
तोमर को आगे कर ग्वालियर चंबल में बीजेपी पहले ही ये मैसेज दे चुकी है कि पार्टी के लिए पुराने नेता ही सर्वोपरि है। ये बात अलग है कि खुद नरेंद्र सिंह तोमर की स्थिति उनके अपने क्षेत्र मुरैना में बेहतर नहीं है। नगर निगम चुनाव में ग्वालियर और मुरैना में उनकी पसंद की महापौर प्रत्याशी हार का शिकार हो चुकी हैं। ये खबरें भी खूब सुनने में आई हैं कि तोमर खुद अपने लिए दूसरी सीट तलाश रहे हैं फिलहाल नजरें ग्वालियर पर हैं। ऐसे में सिंधिया की अनदेखी कर बीजेपी ग्वालियर चंबल में हालात संभाल पाएगी या क्षेत्र पर और बुरा असर पड़ सकता है। अमित शाह की वॉर्निंग इस अंचल में उलझे हुए सियासी समीकरण को कितना सुलझा पाती है ये देखना भी दिलचस्प होगा।