मध्यप्रदेश में बैर भुलाकर साथ आए शिवराज-कैलाश! अब प्रदेश की सत्ता में साइडलाइन होंगे कई दिग्गज नेता?

author-image
Harish Divekar
एडिट
New Update
मध्यप्रदेश में बैर भुलाकर साथ आए शिवराज-कैलाश! अब प्रदेश की सत्ता में साइडलाइन होंगे कई दिग्गज नेता?

BHOPAL. चुनाव या सत्ता नाम ही हर पल बनते बिगड़ते रिश्तों का नाम है। एक मशहूर गाना था कितने अजीब रिश्ते हैं यहां पर। पेज थ्री फिल्म का ये गाना वैसे तो ग्लैमर जगत के लिए था, लेकिन ज्यादा सूट होता है सियासत की दुनिया पर। तमाम फिल्में बनी है राजनीति की इस रहस्यों से भरी दुनिया पर, लेकिन सियासत की काली कोठरी का सच किसी सिल्वर स्क्रीन पर चमक नहीं सका। दुश्मन कब दोस्त बन जाए और दोस्तों को कब छोड़ दिया जाए। इसका कोई ठिकाना ही नहीं होता। दुश्मन का दुश्मन दोस्त बन जाता है और, मुश्किल में पड़ा दोस्त भुला दिया जाता है। सुनने में ये भी फिल्मी ट्रैक ही लगता है, लेकिन मध्यप्रदेश की सत्ता की पटकथा कुछ ऐसी ही कहानी की ओर इशारा कर रही है। जहां एक नई दोस्ती रंग ला रही है और जैसे-जैसे इस दोस्ती का रंग गाढ़ा हो रहा है, दुश्मनों के माथे के बल भी गहरे होते जा रहे हैं।



मध्यप्रदेश की सत्ता के 2 विपरीत ध्रुव शिवराज और कैलाश



नाम में एक साथ रहने का रिश्ता जितना गहरा है, दोनों में खाई भी उतनी ही गहरी है। शिवराज सिंह चौहान के सत्ता में आने के बाद कैलाश विजयवर्गीय उनके मंत्रिमंडल का हिस्सा रहे, लेकिन बाद में कैलाश और शिवराज की राहें कुछ यूं अलग-अलग हुईं कि कैलाश विजयवर्गीय प्रदेश की सत्ता छोड़कर दूसरे प्रदेशों की कमान संभालने चले गए और शिवराज का एक कद्दावर विरोधी कम हो गया, लेकिन अब सारे समीकरण पलट रहे हैं। कैलाश ने हरियाणा में कामयाबी हासिल की, लेकिन पश्चिम बंगाल ने सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। इधर शिवराज सिंह चौहान को भी एक दिग्गज नेता का साथ चाहिए। मतलब से ही सही ये नई यारी पनपने लगी है।



दोनों की दोस्ती की वजह क्या है?



राजनीति में कुछ भी बेमानी नहीं होता। बिसात शतरंज की हो और खिलाड़ी का मन खेलने का ना हो तो एकाध गोटी को गलत चलने का रिस्क ले लेता है, लेकिन राजनीतिकी बिसात पर कोई गलती अलाउड नहीं है। एक गलत मूव यानी खुद ही शह और मात का बंदोबस्त कर लिया, समझ लीजिए। लेकिन शिवराज इस खेल में पक्के हैं तो कैलाश भी राजनीति की चाशनी में पगे हैं। दोनों के बीच इस दोस्ती की क्या वजह है। हर चाल को गौर से जांचेंगे तो वो भी समझ में आने में देर नहीं लगेगी।



शिवराज के सियासी पटल से 3 नेता गायब



2018 की कमलनाथ सरकार को गिराकर जैसे-तैसे 2020 में सत्ता में आने के बाद शिवराज के बस 3 सबसे खास नेता थे। या यूं कहें कि सबसे वफादार, भरोसेमंद नेता थे। पहले थे नरोत्तम मिश्रा जो सरकार के संकटमोचक भी कहलाए। दूसरे भूपेंद्र सिंह। जो शिवराज के सबसे करीबी और सबसे वफादार मंत्री माने गए। और चौथे थे अरविंद भदौरिया, जिन्होंने शिवराज को फिर सरताज बनाने में एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। लेकिन अब शिवराज के सियासी पटल से ये तीनों ही नेता गायब हैं। भूपेंद्र सिंह के खिलाफ अपनी ही पार्टी अपने ही जिले में बगावत ऐसी पनपी कि वो बैकफुट पर जाने को मजबूर हुए। अरविंद सिंह भदौरिया की स्थिति उनकी ही विधानसभा सीट अटेर पर खराब बताई जाती है तो फिलहाल वहीं व्यस्त हैं। रही बात नरोत्तम मिश्रा की तो वो शिवराज सिंह चौहान और संगठन दोनों की गुडबुक्स से बाहर बताए जाते हैं। बीते कुछ दिनों से ये तीनों ही नेता राजनीतिक सुर्खियों से बाहर ही हैं।



प्रदेश की सुर्खियों में कुछ नए चेहरे सक्रिय



इस बीच प्रदेश की सियासी सुर्खियों में कुछ नए चेहरे सक्रिय नजर आ रहे हैं। चेहरे पुराने हैं, लेकिन एमपी में वो न्यूज का हिस्सा अब बन रहे हैं। प्रहलाद पटेल, कैलाश विजयवर्गीय, नरेंद्र सिंह तोमर, जयभान सिंह पवैया जो अब तक या तो केंद्र की जिम्मेदारियों में व्यस्त थे या नेपथ्य में जा चुके थे वो फिर आगे आ रहे हैं। एक तरफ प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा और नरोत्तम मिश्रा की मुलाकातें बढ़ रही हैं। ब्राह्मण-ब्राह्मण एक हुए तो शिवराज को भी एक साथी की दरकार महसूस हुई और तलाश कैलाश विजयवर्गीय पर जाकर खत्म हुई। दोनों को एक-दूसरे की जरूरत यूं है कि विजयवर्गीय फिर प्रदेश में कोई मुकाम तलाश कर रहे हैं और शिवराज की मजबूरी है मालवा में कोई भरोसेमंद चेहरा। तो ये म्यूचुअल अंडरस्टैंडिंग खुद ही सेट हो गई और दोनों एक साथ नजर आने लगे हैं। जिसके बाद अंदाजा लगाया जा रहा है कि 2023 के रण में कैलाश विजयवर्गीय भी अहम भूमिका में दिखाई देंगे।



शिव-कैलाश का साथ क्या नए समीकरण बनाएगा?



विजयवर्गीय और शिवराज का ये साथ क्या नए समीकरण बनाएगा। क्या अब तक शिवराज के भरोसेमंद रहे नरेंद्र सिंह तोमर साइडलाइन होंगे। या तीनों की केमेस्ट्री कोई नया अविष्कार करेगी। क्योंकि विजयवर्गीय के रिश्ते तोमर से भी बेहतर हैं। तो अगला सवाल ये कि तीनों की केमेस्ट्री से कोई ऐसा सियासी रसायन तैयार होगा जो ज्योतिरादित्य सिंधिया के दबदबे को कमजोर कर सकेगा। क्योंकि सिंधिया की बढ़ती साख से तीनों को ही अपना-अपना गढ़ बचाना है। अब देखना ये है कि ये नया याराना प्रदेश की सत्ता में क्या गुल खिलाता है।



द सूत्र का स्पेशल प्रोग्राम न्यूज स्ट्राइक देखने के लिए क्लिक करें.. NEWS STRIKE



हर खाई को पाट देती है सत्ता की लालसा



तो हाल कुछ यूं है कि मीत भले ही मन का न मिला हो, लेकिन मन की नहीं फैसला लेने की बारी फिलहाल दिमाग की है जो बार-बार यही बोल रहा है कि यारा तेरी यारी, शाह को पसंद है और मोदी को है प्यारी। पसंद या प्यारी हो न हो मजबूरी जरूर है। क्योंकि पुराने वफादार या संकटमोचकों की जरूरत शिवराज के लिए बदल चुकी है। इतने सालों में शिवराज और कैलाश की बहुत पटी नहीं, लेकिन सत्ता की लालसा कुछ यूं है कि हर खाई को पाट दिया गया है। अब 2 धुरंधर एक होंगे तो सियासी खेल में किस अंजाम तक पहुंचेगे ये भी देखना दिलचस्प होगा।


Kailash Vijayvargiya कैलाश विजयवर्गीय Madhya Pradesh Assembly elections मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव CM Shivraj सीएम शिवराज friendship between CM Shivraj and Kailash Vijayvargiya many leaders will be sideline in Madhya Pradesh सीएम शिवराज और कैलाश विजयवर्गीय का दोस्ताना मध्यप्रदेश में साइडलाइन होंगे कई नेता