NEW DELHI. संसद के नए भवन के उद्घाटन को लेकर हुए बवाल के बाद अब इसमें सांसदों के बैठने के लिए 888 सीटों की व्यवस्था के बारे में विवाद शुरू हो गया है। इसकी वजह 2026 के बाद लोकसभा की सीटों की संख्या आबादी के लिहाज से बढ़ने की संभावना है। दक्षिण के राज्यों ने अभी से इसका विरोध करना शुरू कर दिया है। उनका मानना है कि यदि लोकसभा सीटों का परिसीमन आबादी के हिसाब से किया जाता है तो ये कम आबादी वाले दक्षिणी राज्यों के साथ नाइंसाफी होगी। इसके चलते देश में दक्षिण और उत्तर के बीच एक नई जंग शुरू हो गई है।
नई लोकसभा में 888 सांसदों के बैठने की व्यवस्था
अभी देश में लोकसभा सीटों की संख्या 545 है। सीटों की ये संख्या 1971 की जनगणना के आधार पर तय की गई है। सीटों की ये संख्या 2026 तक इतनी ही रहेगी, लेकिन इसके बाद परिसीमन होने से बढ़ने की संभावना है। यही वजह है कि नए संसद भवन में लोकसभा के सदन में 888 सांसदों के बैठने की व्यवस्था की गई है।
दक्षिणी राज्यों के साथ नाइंसाफी
तेलंगाना सरकार के मंत्री और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के वरिष्ठ नेता केटी रामाराव का कहना है कि यदि भविष्य में आबादी के हिसाब से लोकसभा सीटों का परिसीमन किया जाता है तो ये दक्षिणी राज्यों के साथ बड़ी नाइंसाफी होगी। ये आबादी नियंत्रित करने वाले केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना राज्य को उनकी प्रगतिशील नीतियों के लिए कड़ी सजा देना जैसा होगा। उनका आरोप है कि आबादी के आधार पर परिसीमन की प्रक्रिया का फायदा उन उत्तरी राज्यों को मिलेगा, जो केंद्र सरकार की अपील के बावजूद आबादी को नियंत्रित नहीं कर सके।
देश की 50 फीसदी आबादी तो उत्तर के 3-4 राज्यों में होगी
एआईएमआईएम के मुखिया और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी आबादी के हिसाब से लोकसभा सीटों के परिसीमन पर चिंता जताते हुए कहा कि आप उन राज्यों को सजा नहीं दे सकते हैं जिन्होंने आबादी नियंत्रित की और जहां प्रति व्यक्ति फर्टिलिटी रेट कम हुई। उन्होंने कहा कि जिस तरह से आबादी बढ़ रही है, उस हिसाब से 50 फीसदी आबादी तो उत्तर भारत के तीन-चार राज्यों में होगी। कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के मंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे प्रियांक खड़गे ने भी कहा कि आबादी के आधार पर परिसीमन करना दक्षिण के राज्यों के साथ नाइंसाफी होगी।
1952 के चुनाव में थीं 489 सीट, 1971 में बढ़कर 543 हुईं
संविधान के अनुच्छेद 81 के अनुसार देश में लोकसभा सांसदों की संख्या 550 से ज्यादा नहीं होगी। हालांकि संविधान ये भी कहता है कि हर 10 लाख आबादी पर एक सांसद होना चाहिए। किसी राज्य में लोकसभा और विधानसभा सीटों की संख्या कितनी होगी? इसका काम परिसीमन आयोग करता है। परिसीमन आयोग का गठन 1952 में किया गया था। देश में पहले आम चुनाव के समय लोकसभा सीटों की संख्या 489 थी। आखिरी बार 1971 की जनगणना के आधार पर परिसीमन हुआ था, जिसके बाद सीटों की संख्या बढ़कर 543 हो गई।
1971 के बाद क्यों नहीं हुआ परिसीमन?
देश की आजादी के बाद 1951 में जब पहली जनगणना हुई तो उस समय आबादी करीब 36 करोड़ थी। 1971 तक देश की आबादी बढ़कर करीब 55 करोड़ हो गई। 70 के इसी दशक में केंद्र सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए फैमिली प्लानिंग पर जोर दिया। नतीजा ये हुआ कि दक्षिण के राज्यों ने तो इसे अपनाया और आबादी काबू में की लेकिन उत्तर भारत के राज्यों में ऐसा नहीं हुआ और यहां आबादी तेजी से बढ़ती गई। ऐसे में उस समय भी दक्षिणी राज्यों की ओर से सवाल उठाया गया कि उन्होंने तो फैमिली प्लानिंग लागू करके आबादी कंट्रोल की लेकिन परिसीमन से उनके यहां की लोकसभा सीटें कम हो जाएंगी। नतीजा संसद में इन राज्यों का प्रतिनिधित्व कम हो जाएगा। इसके बाद 1976 में संविधान में संशोधन कर तय कर दिया गया कि 2001 तक 1971 की जनगणना के आधार पर ही लोकसभा की सीटें होंगी। लेकिन 2002 में अटलविहारी वाजपेयी की सरकार ने दोबारा संशोधन कर इसकी सीमा 2026 तक बढ़ा दी।
आबादी और लोकसभा सीटों में कनेक्शन क्या?
दरअसल, जिन राज्यों में आबादी कम होगी, वहां लोकसभा सीटों की संख्या कम होगी और जिन राज्यों में आबादी ज्यादा होगी, वहां सीटों की संख्या भी बढ़ेगी। इसे ऐसे समझा जा सकता हैं। अभी तमिलनाडु की अनुमानित आबादी 7.68 करोड़ है और वहां लोकसभा की 39 सीटें हैं। जबकि मध्य प्रदेश की आबादी 8.65 करोड़ है और यहां अभी लोकसभा की 29 सीटें हैं। यदि 2026 के बाद परिसीमन होता है तो अभी 10 लाख की आबादी पर एक सांसद के फार्मूले के हिसाब से मध्य प्रदेश में 86 लोकसभा सीटें हो जाएंगी और तमिलनाडु में 76 सीटें होंगी। इसी वजह से दक्षिण के राज्यों को आपत्ति है। उनका यही तर्क है कि हमने आबादी नियंत्रित की, केंद्र की योजनाओं को लागू किया और बदले में उनके ही यहां की लोकसभा सीटें कम हो जाएंगी। यदि ऐसा हुआ तो उत्तर भारतीय राज्यों में सीटों की संख्या दोगुनी-तिगुनी तक बढ़ जाएंगी जबकि दक्षिण भारतीय राज्यों में सीटें बढ़ेंगी तो लेकिन बहुत ज्यादा नहीं। इसीलिए दक्षिणी राज्य आबादी के हिसाब से सीटों के बंटवारे के विरोध में हैं।
दक्षिण और उत्तर भारत में कौन-कौन से राज्य?
दक्षिण भारत में पांच राज्य आते हैं इनमें आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक हैं। इनके अलावा तीन केंद्र शासित प्रदेश- लक्षद्वीप, पुडुचेरी और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह को भी दक्षिण भारत में गिना जाता है। दूसरी ओर उत्तर भारत में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, चंडीगढ़, उत्तराखंड, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश आते हैं, लेकिन आमतौर पर हिंदी भाषी राज्यों को भी उत्तर भारत में गिना जाता है। लिहाजा बिहार, झारखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे हिंदी भाषी राज्यों को भी उत्तर भारत का ही हिस्सा माना जाता है। जबकि भौगोलिक स्थिति के हिसाब से बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ पूर्व भारत में पड़ता है।
अभी 25 लाख आबादी पर एक सांसद
वैसे तो आबादी के फॉर्मूले के हिसाब से देश में हर 10 लाख की आबादी पर एक सांसद होना चाहिए। लेकिन अभी ऐसा नहीं है। लोकसभा और राज्यसभा, इन दोनों सदनों को मिलाकर अभी कुल 793 सांसद हैं। इस समय देश की कुल आबादी करीब 138 करोड़ से ज्यादा है। इस लिहाज से अभी हर 25.50 लाख आबादी पर एक सांसद है। देखा जाए तो आबादी के मामले में चीन और भारत में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है, लेकिन वहां अभी साढ़े चार लाख आबादी पर एक सांसद है। चीन में लगभग तीन हजार सांसद हैं।अमेरिका में भी दोनों सदनों को मिलाकर कुल 535 सांसद हैं और वहां हर 7.33 लाख आबादी पर एक सांसद है। यूके में एक सांसद के हिस्से में एक लाख से भी कम आबादी है।
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क्या 2026 में बढ़ जाएंगी लोकसभा सीट ?
नहीं ऐसा नहीं होगा। दरअसल, आखिरी बार 2002 में संविधान में संशोधन कर जब परिसीमन की सीमा को बढ़ाया गया था, तब ये प्रावधान किया गया था कि 2026 के बाद जो पहली जनगणना होगी और उसके आंकड़े प्रकाशित होने के बाद ही लोकसभा सीटों का परिसीमन किया जाएगा। अभी तो देश में कोरोना आपदा के कारण 2021 की जनगणना ही नहीं हुई है और 2026 के बाद 2031 में जनगणना होगी इसके बाद ही लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ने की संभावना है। इसका मतलब ये हुआ कि 2024, 2029 और शायद 2034 के लोकसभा चुनाव के समय भी लोकसभा की सीटों की संख्या 543 ही रहे। इसी तरह राज्यों की विधानसभा सीटों की संख्या के लिए जुलाई 2002 में परिसीमन आयोग का गठन किया गया था। दिसंबर 2007 में आयोग ने अपनी सिफारिशें केंद्र सरकार को भेज दी थीं। इसके बाद कई राज्यों में 2008 में परिसीमन हुआ और वहां विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ी।