AMBIKAPUR. 2018 विधानसभा चुनाव के अप्रत्याशित नतीजों ने सभी को चौंकाया था। अविभाजित सरगुजा से लेकर रायगढ़ तक की 19 सीटों में कांग्रेस ने जीत का परचम लहराया था। इस जीत के बाद से भाजपा सुषुप्तावस्था में नजर आ रही है। राज्य स्तर पर कई ऐसे मौके मिले, जिन्हें भुनाकर बीजेपी वोटर्स के बीच जा सकती थी। लेकिन अब तक की रणनीति को देखकर तो ऐसा ही मालूम होता है, जैसे बीजेपी ओस की वो बूंद बनकर रह गई है, जिसे सूर्य का इंतजार होता है। फिलहाल राज्य में कांग्रेस यदि गलतियां करती है तो ही बीजेपी सत्ता में वापस लौट सकती है।
छत्तीसगढ़ में राजनीतिक तापमान अभी से गर्म होने लगा है, जिसकी राजनीति शुरू से कांग्रेस और बीजेपी के बीच की रही है। पिछले चुनाव में जेसीसी की भूमिका भी अहम रही थी। कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा ने अप्रत्याशित रूप से राजनीतिक तलवारबाजी का नेतृत्व किया है। वहीं, भारतीय जनता पार्टी ने कई प्रासंगिक मुद्दों पर अपने प्रतिद्वंद्वियों को घेरने का मौका गंवाया है।
कोरिया-एमसीबी में एक सीट खो सकती है कांग्रेस…
छत्तीसगढ़ के उत्तरी जिले कोरिया-एमसीबी की यदि बात की जाए तो बैकुंठपुर विधायक अंबिका सिंहदेव की स्थिति बहुत अच्छी नजर नहीं आ रही है। जनता और कार्यकर्ताओं से दूरी आगामी चुनाव में उन्हें खल सकती है। मनेंद्रगढ़ से विधायक डॉ. विनय जायसवाल की स्थिति ठीक है, इसके बावजूद चिरमिरी के जिला मुख्यालय नहीं बनने को लेकर लोगों में आक्रोश भी है। भरतपुर-सोनहत विधायक गुलाब कमरो ने क्षेत्र में मजबूत पकड़ बना रखी है। आपराधिक मामलों में हस्तक्षेप के विषय पर उन्हें सजग रहने की आवश्यकता होगी।
सूरजपुर में मंत्री ठीक-ठाक, पूर्व मंत्री से अब भी नाराजगी…
सूरजपुर की प्रेमनगर और भटगांव सीट पर भी फिलहाल कांग्रेस मजबूत नजर आ रही है। हालांकि, भटगांव विधानसभा सीट में बीजेपी के प्रत्याशी चयन पर सबकी निगाहें हैं। यदि बीजेपी ने यहां कुशलता का परिचय दिया तो ये सीट बीजेपी को मिल सकती है। प्रतापपुर विधानसभा सीट में भी फिलहाल कांग्रेस ठीक-ठाक स्थिति में है। बीजेपी से पिछली सरकार में गृहमंत्री रहे रामसेवक पैंकरा फिर से टिकट की जद्दोजहद में हैं, लेकिन उनको लेकर नाराजगी फिलहाल कम नहीं दिख रही है।
मुख्यमंत्री की चाह ने छीनी लाज, अपनों ने भी बनाई दूरी…
सरगुजा से तत्कालीन सरकार में दो मंत्री हैं। एक अम्बिकापुर विधायक टीएस सिंहदेव तो दूसरे सीतापुर से अमरजीत भगत। मुख्यमंत्री की कुर्सी की चाह में जहां टीएस से उनके करीबियों ने दूरी बना ली तो अमरजीत भगत के बंगले में भीड़ बढ़ गई है। दोनों मंत्री अपनी सीटें जीत जाएंगे। एक के साथ राजपरिवार से होने का फायदा है तो दूसरे ने क्षेत्र में अप्रत्याशित काम कराकर वोटर्स को रिझा रखा है। सरगुजा की तीसरी सीट लुंड्रा में भी बीजेपी दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है।
पाल के लाल को अपनों की ज़रूरत, चिंता में नहीं हैं महाराज…
पाल के लाल के नाम से मशहूर पूर्व मंत्री रामविचार नेताम ने दौरे बढ़ा दिए हैं, लेकिन उनके अपनों ने ही उनका साथ बीते कुछ सालों में छोड़ दिया है। वर्तमान विधायक बृहस्पत सिंह की कारगुजारियों से अफसर नाखुश हैं। इसका लाभ नेताम को मिल सकता है। वहीं चिंतामणि महाराज की स्थिति अच्छी नजर आ रही है। मुख्यमंत्री से करीबियां बढ़ने के बाद क्षेत्र में दौरे भी बढ़ गए हैं। इनके जीतने की संभावना को बीजेपी की चुप्पी से भी बल मिल रहा है।
जशपुर में लौटती दिख रही बीजेपी…
कुनकुरी और पत्थलगांव की सीटों पर बीजेपी लौटती नजर आ रही है। इसकी वजह कांग्रेस विधायकों की निष्क्रियता, रामपुकार सिंह की बढ़ती उम्र और बीजेपी का हिंदू कार्ड है। यहां भाजपा हिंदुत्व के राग को बेहतर तरीके से अलापती और भुनाती नजर आ रही है। जशपुर विधानसभा सीट में बीजेपी के विनय भगत की स्थिति भी ठीक है, लेकिन उन्हें भी पैलेस से संबंध प्रगाढ़ करने और बगीचा क्षेत्र में काम करने की जरूरत पड़ेगी। यहां बीजेपी लौटती दिख रही है।
रायगढ़ में बदल सकता है समीकरण, लैलूंगा में रिपीट नहीं
रायगढ़ में बीजेपी के लिए प्रत्याशी चयन महत्वपूर्ण होगा। वर्तमान में कांग्रेस की स्थिति रायगढ़ में ठीक नहीं है। खरसिया में उमेश पटेल को पटखनी देने के लिए ओपी चौधरी से ही उम्मीद की जा सकती है। ओपी के मैदान में होने पर मुकाबला रोमांचक हो सकता है। धर्मजयगढ़ में कांग्रेस मजबूत है। लैलूंगा आदिवासी बाहुल्य सीट है, लेकिन यहां कोई विधायक रिपीट नहीं होता। वर्तमान विधायक चक्रधर सिदार पर निष्क्रियता के आरोप भी पार्टी के लोगों ने कई मर्तबा लगाए हैं। सारंगढ़-बिलाईगढ़ के जिला बन जाने से कांग्रेस को यहां बल मिला है।