बोल हरि बोल...सुल्तान बने मोटा भाई...मामा का जलवा चालू आहे, आधी-आधी कलेक्टरी कर रहे बाप-बेटा और मैडम को नौकरी की जरूरत नहीं

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Harish Divekar
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बोल हरि बोल...सुल्तान बने मोटा भाई...मामा का जलवा चालू आहे, आधी-आधी कलेक्टरी कर रहे बाप-बेटा और मैडम को नौकरी की जरूरत नहीं

हरीश दिवेकर, BHOPAL. सुहानी सुबह... मस्ताना मौसम। हर पल ऐसा लग रहा था, मानो मेघ बस बरसने ही वाले हैं। टीवी खोली तो राजीव गांधी को श्रद्धांजलि देते राहुल गांधी नजर आए। चैनल बदला तो भाजपामय माहौल। हां, भाई मोटा भाई यानी केंद्रीय गृह और सहकारिता मंत्री अमित शाह मध्यप्रदेश जो आए हैं। उनके स्वागत में राजधानी भोपाल में जबरदस्त सजावट है। कहीं भगवा पताकाएं, कहीं बीजेपी के झंडे। चौक-चौराहों पर बैनर-पोस्टर की तो मानो बाढ़ सी आई हुई है। इस मानसूनी सीजन में मेघ भले ही कम बरस रहे हों, लेकिन सियासी बरसात खूब हो रही है। ताबड़तोड़ तरीके से बीजेपी नेताओं के दौरे हो रहे हैं। 39 सीटों पर नाम घोषित कर बीजेपी पहले ही भोपाल से लेकर दिल्ली तक चौंकाने वाला फैसला ले चुकी है। इधर, शाह ने रविवार (20 अगस्त) को भोपाल में बीजेपी सरकार का 20 साल का रिपोर्ट कार्ड पेश किया। फिर ग्वालियर में संगठन की बैठक में शामिल हुए। पूरी बीजेपी उनके साथ रही। कांग्रेस भी कहां पीछे रहने वाली थी। शाह के रिपोर्ट कार्ड पर विवेक तन्खा और जीतू पटवारी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपना पक्ष रखा। अगली बड़ी खबर अंतरिक्ष से है। चंद्रयान-3 का दूसरा और फाइनल डीबूस्टिंग ऑपरेशन शनिवार-रविवार की दरम्यानी रात 1 बजकर 50 मिनट पर पूरा हो गया है। इस ऑपरेशन के बाद लैंडर की चंद्रमा से न्यूनतम दूरी 25 किमी और अधिकतम दूरी 134 किलोमीटर रह गई है। जल्द ही भारत के कदम चांद पर होंगे। खबरें तो देश-विदेश में और भी हैं। आप तो सीधे नीचे उतर आईए और 'बोल हरि बोल' के रोचक किस्सों का आनंद लिजिए। 





मामा का जलवा बरकरार...

 





जगत मामा यानी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का जलवा बरकरार है। यह उन्होंने एक बार फिर साबित कर दिया। अमित शाह की अध्यक्षता में भोपाल में 15 जुलाई को हुई पहली चुनावी बैठक में तय हुआ था कि जन आशीर्वाद यात्रा नहीं, अब 'विजय संकल्प अभियान' चलेगा। इसकी बाकायदा घोषणा की गई थी। इसके बाद माना जाने लगा था कि अब सब कुछ दिल्ली के कंट्रोल में होगा, मामा का काम 'तमाम' हो गया है, लेकिन शिवराज ने ऐसी चौसर बिछाई कि एक महीने तक विजय संकल्प अभियान का ना तो कोई ब्लू प्रिंट बना और ना ही कोई रूपरेखा। अब एक बार फिर बीजेपी नेताओं ने यू-टर्न लेकर मामा की जन आशीर्वाद यात्रा वाले कॉन्सेप्ट में थोड़ा फेरबदल कर सहमति बनाई है। ये यात्रा 5 संभागों से निकलेगी। हालांकि इसमें अभी भी पेंच है कि यह यात्रा किसके नेतृत्व में निकलेगी। सबको इंतजार है कि क्या मामा यहां भी कोई 'खेला' करके सारी कमान अपने हाथ में रखेंगे या फिर सबको साथ लेकर चलेंगे। चुनावी चौसर बिछ चुकी है। अब विपक्ष के साथ साथ अपनों के साथ शह-मात का चलेगा।

 





प्रशिक्षण के नाम पर भाषण पेल दिया

 





230 सीटों पर उम्मीदवारों और सरकार की कुंडली बनाने के लिए दूसरे राज्यों के विधायकों को एमपी में बुलाया गया है। इन्हें मैदान में भेजने से पहले एक प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया गया, जिसमें इन्हें बताया जाना था कि उन्हें किस तरह मैदान में उम्मीदवारों और सरकार की योजनाओं के प्रभाव का रिपोर्ट कार्ड तैयार करना है, लेकिन दिग्गज नेताओं ने प्रशिक्षण देने के बजाए अपनी उपलब्धियों का बखान कर लंबे- चौड़े भाषण पेल दिए। शिविर में कई युवा विधायक भी मौजूद थे, वे एक- दूसरे से कहते दिखे कि ये पके हुए बाल ऐसे ही पका- पकाकर पार्टी का काम लगा देंगे। इन्हें खुद पता नहीं है कि हमें प्रशिक्षण देना कैसे है, इसलिए भाषण पेलकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रहे हैं। 

 





कौन निपटाना चाहता है ध्रुव नारायण को 

 





बीजेपी नेता ध्रुव नारायण सिंह को भोपाल मध्य से टिकट मिलने की भनक लगते ही ठीक एक दिन पहले उनके खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस होने के बाद पार्टी के अंदर ही सवाल उठने लगे हैं कि आखिर ध्रुव को कौन निपटाना चाहता है। 2011 में शेहला मसूद हत्याकांड में ध्रुव का नाम आया था। उसके बाद से उनकी राजनीति हाशिए पर चल गई थी। अब 12 साल बाद दिन फिरे हैं। ऐसे में एक बार फिर उन्हें निपटाने की साजिश शुरू हो गई। अंदरखाने के लोग बताते हैं कि पार्टी के कुछ नेता नहीं चाहते कि ध्रुव फिर से मैदान में उतरें। यही वजह है कि टिकट की घोषणा के एक दिन पहले ही शेहला मसूद हत्याकांड में ध्रुव नारायण सिंह की सीबीआई जांच कराने की मांग उठवाई जाती है। हालांकि ध्रुव के नक्षत्र प्रबल थे, जो दुश्मनों का वार झेल गए, लेकिन अब ध्रुव को कांग्रेस के साथ पार्टी के भीतरघातियों से भी जूझना होगा। 

 





मैडम की ​होशियारी पड़ गई भारी

 





राष्ट्रीय स्तर की कांग्रेस नेत्री का जलवा इस बार नहीं चल पा रहा है। मैडम ने पार्टी अध्यक्ष की लाइन को क्रॉस करके दिल्ली से सेटिंग जमाई थी। ये बात अध्यक्ष जी को बुरी लग गई। कारण है कि प्रदेश में जो कुछ भी होता है उन्हीं की सहमति से होता है। ऐसे में मैडम के इस एक्शन का ऐसा रिएक्शन हुआ कि मैडम को पूरी तरह से हाशिए पर डाल दिया गया। मैडम के सलाहकारों ने सलाह दी है कि कुछ दिन चुप बैठिए। अध्यक्ष जी भोले हैं अकेले में मिलकर अपनी गलती मान लीजिए तो माफ कर देंगे, लेकिन जब तक साहब अध्यक्ष हैं, लाइन क्रॉस मत कीजिए। अब मैडम उसी फॉर्मूले पर काम कर रही हैं।

 





मानें या न मानें, जमीन का चक्कर बुरा तो है...

 





एक रिटायर्ड आईपीएस की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं। साहब एडीजी रैंक से रिटायर हुए हैं। लोकायुक्त में भी कुछ समय इन्होंने काटा और समय से ज्यादा माल बनाया। हुआ कुछ यूं है कि उन्होंने आर्थिक राजधानी यानी इंदौर के बहुचर्चित भू-माफिया के साथ पार्टनरशिप कर डाली। जब से इस भू माफिया पर ईडी की नजर पड़ी है, तब से साहब बैचेन हैं कि कहीं इनके पत्ते भी उजागर ना हो जाएं। भू माफिया के अर्थ का दीपक तो बुझेगा ही, साथ में साहब के चिराग पर भी आंच आएगी। दरअसल उन्होंने हाउसिंग बोर्ड सोसायटी की जमीन बेटे के नाम ले ली थी। अब मामला कोर्ट पहुंच गया है और रजिस्ट्री शून्य होने का खतरा भी है...ऐसे में करोड़ों का नुकसान होना तय है। 

 





बाप-बेटा यहां आधे- आधे कलेक्टर

 





मामा कलेक्टरों से आए दिन कहते हैं कि नवाचार करो, कुछ नया करो। मामा के भाषण से प्रेरित होकर एक जिले में बाप और बेटे आधी- आधी कलेक्टरी का नवाचार कर रहे हैं। सरकारी बैठकों से लेकर फाईलों में साइन करने का काम बेटा जी करते हैं। बेटे के अधीनस्थ अधिकारी-कर्मचारियों को मौखिक निर्देश देने का काम पिता जी करते हैं। कलेक्टर के पास कोई हिसाब-किताब वाला काम आता है तो स्टेनो कह देता है कि साहब की बजाए आप उनके पिताजी से बात कर लीजिए, काम हो जाएगा। पिता जी भी बड़े दिल के हैं। अपने कलेक्टर बेटे की तरह जिले के अधिकारियों को बेटा समझकर काम करवा लेते हैं। हालांकि पिता जी की आए दिन डिमांड बढ़ने से जिले के अधिकारी परेशान हैं, लेकिन 'बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन' के चक्कर में पिता जी की कलेक्टरी झेलना पड़ रही है।

 





मोहतरमा को नौकरी से ज्यादा एनजीओ से प्रेम...

 





हमेशा किसी ना किसी बहाने चर्चित रहने वाली एक महिला पुलिस अधिकारी एक बार फिर चर्चा में हैं। लम्बे समय तक इंदौर में पदस्थ रही और बहुचर्चित इन मोहतरमा को नौकरी से ज्यादा एनजीओ पर भरोसा है। दरअसल, उन्होंने एक एनजीओ खोल रखा है। इसके पीछे ब्लैक को व्हाइट करने की अटकलें भी हैं। एनजीओ के पावर का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मैडम गाहे-बगाहे यह कहती पाई जाती हैं कि मुझे तो नौकरी को कई जरूरत ही नहीं है। बता दें कि मैडम ग्वालियर में एक आईपीएस के साथ मधुर संबंधों को लेकर चर्चित भी रही हैं।

 







 

 

 

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