BHOPAL. वर्ष 2023 में होने वाले मध्यप्रदेश विधानसभा के चुनाव परिणाम का आकलन आरंभ किए हुए 4 महीने व्यतीत हो चुके हैं। राजनैतिक परिस्थितियां तेजी से बदल रही हैं। देश में घट रही विभिन्न घटनाएं और विदेश में राहुल गांधी के अमेरिका दौरा से उत्पन्न हुई प्रतिक्रियाओं का प्रदेश की राजनीति में प्रभाव पड़ना स्वाभाविक ही है।
बीजेपी में बढ़ती जा रही असंतोष की चिंगारी
बीजेपी में असंतोष की चिंगारी जो पिछले कुछ समय से जल चुकी है, उससे निकलते उठते धुएं का कुछ विवरण और तदनुसार विश्लेषण पिछले लेखों में उद्धृत कर किया जा चुका है। वह 'चिंगारी' बीजेपी हाई कमांड के प्रयासों के बावजूद बुझने की बजाय बढ़ती ही जा रही है। सागर के कद्दावर मंत्री भूपेंद्र सिंह के विरुद्ध अधिकतर नेताओं द्वारा इस्तीफा देने की सीमा तक के सार्वजनिक असंतोष व्यक्त किए जाने के बावजूद अब वही तूफान कटनी जिले में पूर्व मंत्री और विधायक संजय पाठक के विरुद्ध 4 पूर्व विधायकों ने विरोध का झंडा उठा रखा है। सागर के ही खनिज विकास निगम के उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह मोकलपुर का कांग्रेस के प्रमुख नेता अजय सिंह राहुल भैया से गले मिलने की मुलाकातें, क्या गुल खिलाएंगी, यद्यपि इसे सौजन्य भेंट ठहराया जा रहा है।
हर समाज को साध रहे सीएम शिवराज
बेशक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। समाज के समस्त वर्गों के लिए दिन-प्रतिदिन एक-न-एक समाज को लेकर कोई न कोई घोषणा कर उन समाज को अपने साथ रखने का हित साधने का प्रयास कर रहे हैं। हाल में ही भोपाल में ब्राह्मण समाज का बड़ा कार्यक्रम हुआ, जिसमें शिरकत करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भगवान परशुराम जयंती पर छुट्टी की घोषणा कर ब्राह्मण समाज को साधने का प्रयास किया हैं। मुख्यमंत्री की चुनावी दृष्टि से सबसे महत्वकांक्षी योजना 'लाड़ली बहना योजना' 10 जून से प्रांरभ कर दी गई है, जिसके द्वारा लगभग 1.25 करोड़ पात्रता धारी महिलाओं को 1000 रुपए उनके खाते में हस्तांतरित किए गए हैं। निश्चित रूप से इस योजना का लाभ बीजेपी को आने वाले चुनाव में मिलेगा। क्योंकि बीजेपी द्वारा पिछले 19 सालों से हितग्राहियों की खड़ी की गई लंबी फौज में ये एक और संख्या की दृष्टि से महत्वपूर्ण एक बड़े वर्ग को जोड़कर हित साधने का प्रयास कहा जा सकता है। अब इसका फायदा कितना मिलेगा, ये भविष्य के गर्भ में है। क्योंकि जो सूची में न आने के कारण अपात्र हो गए हैं, उनके 'गुस्से का' विपरीत प्रभाव भी हो सकता हैं। टूरिजम उद्योग को बढ़ावा देने के लिए 'क्रूज टूरिजम' को बढ़ावा देकर बड़वानी से 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' सरदार सरोवर बांध नर्मदा जिला गुजरात तक चलेगी।
एक खबर ने मचाई थी खलबली, जो बाद में खोखली निकली
विगत पखवाड़े बीजेपी और कांग्रेस दोनों के नेतृत्व को लेकर प्रदेश में दिल्ली में कुछ हलचल हुई और खलबली मची। मीडिया और सोशल मीडिया में तो बहुत तेजी से ये न्यूज भी वायरल हो गई थी कि नए प्रदेश अध्यक्ष के नाम के साथ प्रदेश अध्यक्ष बदल दिए गए। हालांकि बाद में ये समाचार खोखला साबित हुआ। पिछले 2-3 दिनों से दिल्ली में केंद्रीय नेतृत्व के साथ मध्यप्रदेश के प्रमुख नेताओं की बैठकें हुई हैं, जिसमें आगामी चुनाव को लेकर नेतृत्व सहित समस्त मुद्दों पर विस्तार से गंभीर चर्चाएं हुई हैं। बीजेपी नेतृत्व इस समय 2 विपरीत ध्रुवों पर खड़ा है, अर्थात दुविधा में है। एक तरफ शिवराज सिंह की व्यक्तिगत सत्ता विरोधी कारक की लगातार रिपोर्टिंग विभिन्न स्रोतों से बीजेपी हाई कमान के पास पहुंच रही है, तो दूसरी ओर कर्नाटक के दुष्परिणामों ने बीजेपी को ये सोचने पर भी मजबूर कर दिया है कि जिस प्रकार कांग्रेस ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष जो कि उसी प्रदेश से आते हैं, की उपस्थिति के बावजूद स्थानीय नेतृत्व को महत्व दिया। विपरीत इसके बीजेपी ने जो उनका स्थानीय प्रभावशाली चेहरा येदियुरप्पा सहित स्थानीय नेतृत्व को वो मजबूती कांग्रेस की तुलना में प्रदान नहीं की, इसलिए अब वही गलती कर मध्यप्रदेश में स्थापित शिवराज सिंह के नेतृत्व को विस्थापित कर नया नेतृत्व लाया जाता है, तो कहीं कर्नाटक का इतिहास दोहरा न दिया जाए? इसलिए हाई कमान शिवराज सिंह की एंटी इनकंबेंसी फैक्टर से निपटने के लिए और क्या तरीका हो सकता है, उस पर गंभीर रूप से विचार कर रहा है। अंतिम निष्कर्ष पर अभी तक पहुंचा नहीं जा सका है। प्रदेश अध्यक्ष के बदलने से क्या शिवराज सिंह के एंटी इनकंबेंसी फैक्टर को पार किया जा सकता है, इस पर भी कभी गंभीर विश्लेषण किया जा रहा है।
कांग्रेस कमलनाथ के नेतृत्व में लड़ेगी चुनाव
विपरीत इसके राहुल गांधी द्वारा स्पष्ट रूप से कमलनाथ के मध्य प्रदेश में नेतृत्व करने की घोषणा न करने से उत्पन्न अटकलें के बाद में विभिन्न नेताओं के आए बयानों से उन अटकलें को समाप्त कर दिया गया है। ये स्पष्ट हो गया है कि कांग्रेस अगला चुनाव कमलनाथ के नेतृत्व में ही लड़ेगी। पहले से ही मौजूद ये निश्चित संदेश कार्यकर्ताओं से लेकर जनता के बीच में और पुख्ता हुआ है। जिसके अपने फायदे नुकसान दोनों हैं। जिस पर पहले ही हम चर्चा कर चुके हैं। पिछले कई वर्षों में देश की विभिन्न विधानसभाओं के आम चुनाव हुए हैं। परंतु कांग्रेस नेतृत्व चुनाव आयोग द्वारा तारीखों की घोषणा के बाद भी कभी इतना सक्रिय होता दिखाई नहीं दिया, जितना आज 6 महीने पूर्व ही वे मध्यप्रदेश में चुनावों को लेकर दिख रहा है। गुजरात प्रदेश के चुनाव में तो लगा ही नहीं कि कांग्रेस ने चुनाव लड़ा है। ये कांग्रेस में कर्नाटक चुनाव के परिणाम के बाद आई नई स्फूर्ति का जीता जागता उदाहरण है, जहां प्रियंका गांधी ने 12 तारीख को जबलपुर में आकर बजरंग बली की उद्घोषणा के साथ एक तरह से आगामी होने वाले विधानसभा चुनाव की आगाज की घोषणा ही कर दी है। बड़ा प्रश्न ये है कि कांग्रेस जहां कर्नाटक में सत्ता में नहीं थी, सत्ता में आने के लिए किए गए प्रयोगों को मध्यप्रदेश में जहां उसने पिछले आम चुनाव में सत्ता प्राप्त की थी, पुन: सत्ता प्राप्त करने के लिए वही प्रयोग को दोहराने पर वैसी ही सफलता मिल जाएगी? न तो ये अंक गणित है और न ही दोनों राज्यों की राजनीतिक, सामाजिक, भाषा लैंगिक परिस्थितियां समान है। कर्नाटक गैर हिंदी भाषा प्रदेश होकर दक्षिण का प्रवेश का द्वार है, वहीं मध्यप्रदेश भारत का हृदय प्रदेश कहलाने वाला हिंदी भाषी प्रदेश है? ऐसी स्थिति में विभिन्न परिस्थितियों वाले राज्यों में एक ही तरह के प्रयोग के दोहराए जाने पर उसी तरह के परिणाम की उम्मीद करना राजनीतिक दृष्टि से खतरे से खाली नहीं होगा?
सीएम शिवराज का तुरुप का इक्का
शिवराज सिंह चौहान ने इन सब विरोधी प्रतिरोधी तत्वों की काट में 'लाड़ली बहना योजना' का ट्रंप का इक्का चल दिया है। यही नहीं चुनावी साल होने के कारण ये सिर्फ घोषणा न लगे इसलिए अभी लगभग सवा लाख करोड़ महिलाओं के खाते में पैसे हस्तांतरित भी कर दिए गए हैं। यही नहीं कमलनाथ की शिवराज की उक्त घोषणा की काट में महिलाओं को 1500 रुपए देने की जो मात्र घोषणा है, शिवराज ने कमलनाथ की नई पेशकश की काट में भी आगे भविष्य में तारीख निश्चित किए बिना 3 हजार रुपए तक देने की घोषणा कर महिलाओं को कमलनाथ के लुभावने वादों से प्रभावित हुए बिना वापस अपनी ओर ले आए हैं। इस प्रकार आज फिर मुकाबला बराबरी की टक्कर का हो गया है। हां, यदि लाड़ली बहना योजना का कार्ड नहीं चला, तब निश्चित रूप से बीजेपी की सरकार (शिवराज की नहीं क्योंकि अभी भी मेरी नजर में शिवराज सिंह चुनाव तक रह पाएंगे, शंकास्पद है?) का वापस होना संभव नहीं दिख रहा है।