BHOPAL. पांच महीने बाद होने वाले चुनाव में आमने सामने कौन होगा क्या आपने कमलनाथ और शिवराज सिंह चौहान ने कहा क्या आपको भी लगता है कि इस बार चुनाव कमलनाथ वर्सेज शिवराज है। ऐसा है तो आप गलत भी हो सकते हैं क्योंकि इस बार चुनावी जंग लड़ने के लिए कमलनाथ के सामने नरेन्द्र मोदी का चेहरा नजर आएगा। शिवराज के पास न टिकट वितरण का तीर है और न रणनीति की तलवार है। बीजेपी में चुनावी जिम्मेदारी टीम मोदी संभाल रही है शिवराज सिर्फ एक सपोर्टिंग फेस होंगे। कांग्रेस की बात करें तो चेहरा यहां अब भी कमलनाथ ही हैं क्योंकि कांग्रेस के पास उनसे प्रॉमिसिंग चेहरा कोई और नहीं है, लेकिन इस बार फैसलों में दखल राहुल गांधी की टीम का भी होगा। इसका असर कमलनाथ से ज्यादा उन नेताओं पर पड़ेगा जो कमलनाथ के बाद खुद को फैसले लेने का हकदार समझते हैं। सीधे तौर पर ये कहा जा सकता है कि मध्यप्रदेश की चुनावी जंग में मुकाबला इस बार बेहद रोचक होगा।
सत्ता से संगठन तक के लोग मध्यप्रदेश की नब्ज टटोल रहे हैं
मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव इस बार खासे दिलचस्प होंगे। क्योंकि इस बार टक्कर लोकल नेताओं की नहीं होगी। बल्कि, ऐसे नेताओं की होगी जिनका वास्ता मध्यप्रदेश से दूर-दूर तक नहीं है, लेकिन हर फैसला वही लोग ले रहे हैं। बीजेपी में तो ये पहले से तय है इस बार फैसले सिर्फ शिवराज सिंह चौहान के नहीं है। बल्कि, आलाकमान के हैं जिनके इशारे पर सत्ता से लेकर संगठन तक के लोग मध्यप्रदेश की नब्ज टटोल रहे हैं। सर्वे कर रहे हैं और उसी आधार पर रणनीति तैयार हो रही है।
छोटे से छोटा फैसला दिल्ली दरबार से हो रहा है
बीजेपी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप ये भी जाहिर कर चुकी है कि प्रदेश का फेस कोई भी हो चुनाव पीएम मोदी की लोकप्रियता और फेस पर ही होगा। भले ही कर्नाटक चुनाव में ये फॉर्मूला बीजेपी के काम नहीं आया, लेकिन इस फॉर्मूले को नकार कर बीजेपी के लिए आगे बढ़ना भी मुश्किल है। इसी कड़ी में कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करने की जिम्मेदारी भी पीएम मोदी पर ही हैं। जो हर बूथ के हर कार्यकर्ता से रूबरू होंगे और चुनावी ऊर्जा फूकेंगे। इसके अलावा किस उम्मीदवार को टिकट मिलेगा। किसके प्रचार का तरीका क्या होगा। कौन किस अंचल की कमान संभालेगा जैसे अहम फैसलों से लेकर छोटे से छोटा फैसला दिल्ली दरबार से हो रहा है। अब इसी तर्ज पर कांग्रेस ने भी आगे बढ़ना शुरू कर दिया है।
कमलनाथ का साथ देने मैदान में टीम राहुल भी उतर आई है
मध्यप्रदेश में सियासी से लेकर चुनावी फैसले लेने तक के लिए कमलनाथ के पास फ्री हैंड है। कांग्रेस ने लंबे अरसे से यही प्रचारित कर रखा है जिस हिसाब से कमलनाथ की कार्यशैली है उसे देखकर ये माना भी जा सकता है कि वो तजुर्बेकार हैं। कांग्रेस में कई वरिष्ठ लीडर्स से भी ज्यादा सीनियर हैं। सही मायने में आलाकमान कहलाने के भी हकदार हैं, लेकिन अभी मध्यप्रदेश तक सिमटे हुए हैं। इस मामले में भी कांग्रेस यही कहती है कि कमलनाथ खुद दिल्ली नहीं जाना चाहते उनका मिशन तो मध्यप्रदेश फतह करना है। इस चुनाव में कमलनाथ का साथ देने मैदान में टीम राहुल भी उतर आई है जो अब कमलनाथ के साथ कदमताल करके 2023 में जीत का रास्ता आसान करेगी। कमलनाथ अब कोई फैसला सीधे लेने की बजाए राहुल गांधी को भरोसे में लेकर चलेंगे, उनकी मुहर के बाद ही कमलनाथ अपने फैसले को अमल में लाएंगे।
टीम राहुल एमपी में भी सख्त और चौंकाने वाले फैसलों के लिए तैयार है
चुनावी तैयारियों की जिम्मेदारी, स्ट्रेटजी तैयार करने की तैयारी अब कांग्रेस में टीम राहुल एमपी में लैंड कर चुकी है। कर्नाटक चुनाव के नतीजों के बाद फुल कॉन्फिडेंस में आई टीम राहुल अब मध्यप्रदेश में भी सख्त और चौंकाने वाले फैसले करने के लिए तैयार है। न सिर्फ मध्यप्रदेश बल्कि, राजस्थान में भी टीम राहुल की ही प्लानिंग से टिकट वितरण होगा।
टिकट चाहिए तो अभी से सीट पर फोकस करना होगा
खबर तो यहां तक है कि टीम राहुल यहां सक्रिय हो चुकी है। मध्यप्रदेश में कमलनाथ ने जितने भी सर्वे करवाएं हैं उन पर फैसला अब टीम राहुल और एआईसीसी से होगा। ये बात और है कि कमलनाथ की सहमति या मशवरा भी हर फैसले में शामिल जरूर होगा। अंदरूनी खबरों की माने तो राहुल गांधी ने कुछ ही दिन पहले पार्टी के बड़े नेताओं को ये आगाह कर दिया है कि 30 विधायक चुनाव हार रहे हैं। टिकट चाहिए तो उन्हें अभी से अपनी सीट पर फोकस करना होगा। कमलाथ के कराए ऐसे ही कुछ इंटरनल असिस्मेंट के दम पर राहुल गांधी ने ये दावा किया था कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस 150 सीटें जीतेगी। दिल्ली का होल्ड किस कदर बढ़ चुका है उसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि इंदौर, भोपाल और खंडवा के जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में भी दिल्ली की मुहर जरूरी हो गई है।
कांग्रेस क्या सख्ती के इन नए चोले से प्रदेश का माहौल बदल सकेगी
कांग्रेस में सख्ती का आलम ये है कि कमलनाथ से अलग दिल्ली मे सेटिंग जमाने के लिए लगे नेताओं को भी चुनाव पर फोकस करने के लिए ताकीद कर दिया है। खबर यहां तक है कि अरूण यादव ही दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात करने पहुंचे और खड़गे ने उन्हें चुनाव पर गौर करने की नसीहत दे डाली। दिल्ली में मप्र के और भी नेता डेरा डाले हुए हैं, जहां एआईसीसी में राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, केसी वेणुगोपाल और प्रदेश प्रभारी जेपी अग्रवाल से कांग्रेस के 24 अकबर रोड दफ्तर में मिल रहे हैं। इन सबको भी क्षेत्र में वापसी कर एक्टिव होने के लिए कहा गया है। चाटुकारिता और परिवारवाद के आरोप झेलने वाली कांग्रेस क्या सख्ती के इन नए चोले से प्रदेश का माहौल बदल सकेगी। इससे भी बड़ा सवाल ये है कि बरसों से गुटबाजी के लिए जाने जानी वाली ये पार्टी क्या इस बार एकजुट होकर इतिहास रच सकेगी।
भारत जोड़ो यात्रा का असर भी कुछ-कुछ बरकरार है
दावा यहां तक है कि टीम राहुल के साथ सिर्फ कमलनाथ की ही चली तो दिग्गविजय सिंह, अजय सिंह और अरूण यादव जैसे दिग्गज अपने हर चहेते को टिकट भी नहीं दिलवा सकेंगे। सबका आकलन टीम राहुल के सर्वे के आधार पर ही होगा। कर्नाटक चुनाव के नतीजों के बाद कांग्रेस जीत का मोमेंटम बरकरार रखना चाहती है राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का असर भी कुछ-कुछ बरकरार है ही। मुकाबला बीजेपी से लेना है तो चाल भी बीजेपी की ही तर्ज पर चलने की कोशिश शुरू हो चुकी है। ये मुकाबला बस चंद ही दिन में शुरू होना है, धीरे-धीरे हर चाल साफ होती जाएगी। अब देखना बस ये है कि अबकी बार दो सौ पार के बीजेपी के नारे पर डेढ़ सौ सीटें जीतने का कांग्रेस का दावा कितना खरा साबित होता है।