दूध पर क्यों उबली कर्नाटक की राजनीति, जब अमूल दूध पीता है इंडिया तो कर्नाटक में क्यों नहीं?

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Sunil Shukla
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दूध पर क्यों उबली कर्नाटक की राजनीति, जब अमूल दूध पीता है इंडिया तो कर्नाटक में क्यों नहीं?

NEW DELHI. कर्नाटक में 10 मई को होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले अमूल दूध और दही की ऑनलाइन बिक्री शुरू होने पर राजनीति में उबाल आ गया है। अमूल दूध पीता है इंडिया की टैग लाइन से बिकने वाले देश के सबसे बड़े ब्रांड को लेकर कर्नाटक में सियासी संग्राम छिड़ गया है।



कर्नाटक में अमूल VS नंदिनी



कर्नाटक में अमूल के दूध-दही की बिक्री की शुरुआत को कर्नाटक मिल्क फेडरेशन (केएमएफ) के लोकप्रिय ब्रांड नंदिनी के क्षेत्र में घुसपैठ के रूप में देखा जा रहा है। कांग्रेस ने इसे कर्नाटक के सबसे बड़े दूध ब्रांड नंदिनी को खत्म करने की साजिश करार देते हुए चुनावी मुद्दा बना दिया है। नतीजा ये हुआ कि सोशल मीडिया पर #SaveNandini #GobackAmul हैशटैग ट्रेंड करने लगा। आइए आपको बताते हैं कि क्या है कर्नाटक में अमूल और नंदिनी ब्रांड का विवाद और क्या हैं इसके सियासी मायने।




— Amul.coop (@Amul_Coop) April 5, 2023



कैसे और क्यों खड़ा हुआ विवाद



कर्नाटक के मांड्या में 30 दिसंबर 2022 को हुई जनसभा में केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने राज्य के हर गांव में डेयरी खोलने का ऐलान किया। उन्होंने कहा कि मैं कर्नाटक के सभी किसान भाई-बहनों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि अमूल और नंदिनी दोनों मिलकर हर गांव में प्राइमरी डेयरी खोलने की दिशा में काम करेंगे। 3 साल बाद कर्नाटक का एक भी गांव ऐसा नहीं होगा, जहां प्राइमरी डेयरी नहीं हो। इसके 3 महीने बाद अमूल ने 5 अप्रैल को ट्वीट कर जल्द ही कर्नाटक के बेंगलुरु में अपने दूध और दही की ऑनलाइन लॉन्चिंग का ऐलान कर दिया। इसके बाद सोशल मीडिया पर नंदिनी बचाओ, #SaveNandini #GobackAmul ट्रेंड करने लगा। बेंगलुरु होटल्स एसोसिएशन ने कहा कि हम सिर्फ नंदिनी दूध का इस्तेमाल करेंगे। बता दें कि नंदिनी कर्नाटक के सबसे बड़े को-ऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन का ब्रांड बेहद लोकप्रिय ब्रांड है। राज्य में इसे शुद्ध दूध का पर्याय माना जाता है।



विवाद में राजनीति की एंट्री



नंदिनी के समर्थन में बेंगलुरु होटल्स एसोसिएशन के बयान के बाद 8 अप्रैल को कांग्रेस नेता और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया अमूल मुद्दे को लेकर जनता के बीच पहुंच गए। सिद्धारमैया ने आम लोगों से अमूल दूध नहीं खरीदने की अपील की। उन्होंने अमित शाह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि बीजेपी सरकार कर्नाटक के सबसे बड़े दूध ब्रांड नंदिनी को खत्म करना चाहती है। इसके बाद कर्नाटक के कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने ट्वीट कर लिखा- हमारी मिट्टी, पानी और दूध मजबूत है। हम अपने किसानों और दूध को बचाना चाहते हैं। हमारे पास नंदिनी है जो अमूल से अच्छा ब्रांड है। हमें किसी अमूल की जरूरत नहीं है। कांग्रेस के साथ इस मुद्दे पर जेडीएस भी कूद पड़ी। JDS नेता और पूर्व CM एचडी कुमारस्वामी ने कहा- 'केंद्र सरकार अमूल को पिछले दरवाजे से कर्नाटक में स्थापित करना चाहती है। अमूल के जरिए बीजेपी कर्नाटक मिल्क फेडरेशन और किसानों का गला घोंट रही है। कन्नड़ लोगों को अमूल के खिलाफ बगावत करनी चाहिए।' इस तरह कांग्रेस और जेडीएस ने इस मुद्दे को कर्नाटक की अस्मिता और गौरव से जोड़कर भावनात्मक बना दिया। अमूल की बिक्री के विरोध में प्रमुख विपक्षी दलों के आक्रामक रुख के चलते राज्य में बीजेपी और उसकी सरकार बचाव की मुद्दा में आ गई।




— ANI (@ANI) April 8, 2023



बचाव में आई बीजेपी सरकार



राज्य में विधानसभा चुनाव से पहले अमूल की बिक्री सियासी मुद्दा बनते देख कर्नाटक में बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई को मोर्चा संभालना पड़ा। उन्होंने कहा- अमूल को लेकर कांग्रेस राजनीति कर रही है। नंदिनी सिर्फ कर्नाटक ही नहीं पूरे देश का पॉपुलर ब्रांड है। इसे सिर्फ एक राज्य तक सीमित नहीं रखना है। हम इसे दूसरे राज्यों तक ले जाने पर काम कर रहे हैं। इस ब्रांड के जरिए हमारी सरकार ने न सिर्फ दूध का उत्पादन बढ़ाया बल्कि किसानों की कमाई को भी बढ़ाया। ऐसे में अमूल के मामले में विपक्ष के आरोप निराधार हैं। कर्नाटक के स्वास्थ्य मंत्री के. सुधाकर ने कहा कि कांग्रेस भले ही इस मामले में राजनीति कर रही हो, लेकिन उसके पशु पालक किसानों के लिए कुछ नहीं किया। पहली बार बीएस येदुरप्पा ने मुख्यमंत्री रहते हुए नंदिनी से जुड़े किसानों को 1 लीटर दूध पर 2 रुपए सब्सिडी दी थी जिसे बढ़ाकर अब 5 रुपए कर दिया गया है।



विवाद पर अमूल मैनेजमेंट का तर्क



कर्नाटक में अमूल के दूध और दही की बिक्री को लेकर हो रहे विवाद पर इसके मैनेजिंग डायरेक्टर जयेन मेहता का कहना है कि वो पहले ई-कॉमर्स यानी ऑनलाइन बिक्री के जरिए अपने प्रोडक्ट को कर्नाटक ले जा रहे हैं। बाकी दूध कंपनियों की तरह वे बाजार में जनरल ट्रेड के लिए नहीं जा रहे हैं। उनका मानना है कि इसे अमूल वर्सेस नंदिनी नहीं बल्कि अमूल और नंदिनी के तौर पर देखा जाना चाहिए। हम नंदिनी को चोट पहुंचाने के लिए कर्नाटक में अपने दूध का दाम कम नहीं कर रहे हैं। हमारी नजर में नंदिनी एक बहुत मजबूत ब्रांड है।




— ANI (@ANI) April 11, 2023



केएमएफ को रास नहीं आ रहा अमूल का कदम



इस मुद्दे पर केएमएफ के प्रबंध निदेशक बीसी सतीश का कहना है कि जब हमारे पास अतिरिक्त दूध होता है, तब हम अन्य सहकारी संस्थाओं का उनके उत्पादन में सहयोग करते हैं। इसे को-पैकिंग कहते हैं, हम अमूल और अन्य कारोबारी समूहों के साथ ऐसा करते हैं। जब हमारे पास अतिरिक्त दूध होता है तो अमूल हमसे पनीर, चीज या ऐसे अन्य उत्पाद खरीदता है। वहीं कर्नाटक में अमूल के दूध-दही की बिक्री के निर्णय से असहमत केएमएफ के एक पूर्व अधिकारी का कहना है कि सहकारी संघों के बीच हमेशा से ये अलिखित सहमति रही है कि जब तक एक बाजार में किसी उत्पाद की कमी नहीं होगी तब तक दूसरा सहकारी संघ वहां अपना प्रोडक्ट नहीं बेचेगा।



दूध पर राजनीति की असली वजह क्या है?



सहकारी संस्थाओं के जानकारों के मुताबिक गुजरात, महाराष्ट्र जैसे राज्यों की तरह ही कर्नाटक मिल्क फेडरनेशन से करीब 26 लाख से ज्यादा किसान और पशु पालक जुड़े हैं। गांवों और छोटे शहरों में इस तरह की सहकारी डेयरी का दबदबा है। सभी राजनीतिक दलों के लिए डेयरी से जुड़े किसान और उनके परिवार एकमुश्त वोट बैंक होते हैं। ऐसे में कर्नाटक के विपक्षी दलों को डर है कि गुजरात की अमूल यदि वहां मजबूत होती है तो इसका फायदा बीजेपी को मिलेगा। शायद इसी मंशा से अमित शाह ने कर्नाटक के हर गांव में नंदिनी और अमूल के समन्वय से सहकारी डेयरी खोलने की बात कही। दरअसल किसी भी राज्य में गांव से ज्यादा शहर के वोटरों पर बीजेपी की पकड़ है। देश में करीब 2 लाख को-ऑपरेटिव डेयरी सोसाइटी हैं। ऐसे में बीजेपी कर्नाटक में को-ऑपरेटिव सोसाइटी के जरिए गांव के वोटरों को साधना चाहती है।




— ಅಭಿರಾಮ ಶಾಂತರಾಮ (@Karnatanjaneya) April 6, 2023



को-ऑपरेटिव सोसाइटी का इस दूध विवाद से क्या कनेक्शन है?



को-ऑपरेटिव सेक्टर के एक्सपर्ट का कहना है कि कर्नाटक में ज्यादातर सहकारी डेयरी सोसाइटी मैसूर और इसके आसपास के क्षेत्र में है। इनमें मांड्या, मैसूर, रामनगर, कोलार जैसे जिले आते हैं। इस इलाके में लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय के लोगों की आबादी ज्यादा है। माना जाता है कि वोकालिग्गा कांग्रेस और जेडीएस को वोट करते हैं, जबकि लिंगायत बीजेपी के परंपरागत वोटर हैं। कांग्रेस को डर है कि बीजेपी इस इलाके में अपने कैडर को खिसकने से बचाकर वोकालिग्गा को अपने खेमे में ला सकती है। इससे भविष्य में बीजेपी के लिए यहां सत्ता में बने रहना आसान हो जाएगा। जेडीएस के बड़े नेता और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के परिवार की भी हमेशा कर्नाटक मिल्क फेडरेशन के अहम पदों पर नजर रही है। कर्नाटक में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद इसके नेताओं ने इस सहकारी संस्था पर नियंत्रण हासिल कर लिया। बीजेपी विधायक बालचंद्र जारकीहोली इस समय कर्नाटक मिल्क फेडरेशन के अध्यक्ष हैं। कर्नाटक के 16 जिलों के 26 लाख किसान कर्नाटक मिल्क फेडरेशन यानी नंदिनी के साथ जुड़े हैं। 2021-2022 में इसने 19 हजार 500 करोड़ रुपए का कारोबार किया है।


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