मनीष गोधा, JAIPUR. राजस्थान बीजेपी की अंदरूनी राजनीति में अभी भी सब कुछ ठीक नहीं दिख रहा है। 2 दिन पहले हुए पार्टी के बड़े प्रदर्शन से पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की दूरी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर वसुंधरा राजे ऐसा क्या चाहती हैं जो पार्टी उन्हें नहीं देना चाहती ?
बीजेपी से आगे निकलती दिख रही कांग्रेस
राजे की भूमिका को लेकर बीजेपी में चल रहे इस असमंसज के चलते ही स्थिति ये है कि एक समय चुनावी तैयारी के लिहाज से बीजेपी से पीछे दिख रही कांग्रेस अब आगे निकलती दिख रही है। कांग्रेस चुनाव के लिए चुनाव समिति और अब स्क्रीनिंग कमेटी तक घोषित कर चुकी है। वहीं बीजेपी में अभी चुनाव से जुड़ी एक भी समिति गठित नहीं हो पाई है।
आखिर पार्टी के बड़े प्रदर्शन से क्यों दूर रहीं राजे
राजस्थान में बीजेपी के नहीं 'सहेगा राजस्थान अभियान' की शुरुआत एक पखवाडे़ पहले खुद पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा करके गए थे और प्रदर्शन से 2 दिन पहले फिर नड्डा जयपुर आए थे। उन्होंने चुनाव की तैयारियों के साथ ही इस प्रदर्शन के बारे में भी फीडबैक लिया था। नड्डा के साथ हुई बैठकों में खुद वसुंधरा राजे मौजूद थीं। प्रदर्शन वाले दिन उनके अचानक दिल्ली जाने का कारण पारिवारिक बताया जा रहा है। उनकी पुत्रवधू निहारिका राजे लम्बे समय से बीमार हैं और उनकी देखभाल के लिए उन्हें अक्सर दिल्ली जाना पड़ता है। बताया जा रहा है कि मंगलवार को प्रदर्शन वाले दिन भी वे इसीलिए दिल्ली गई थीं।
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पारिवारिक कारण या राजनीतिक ?
हालांकि सूत्रों का कहना है कि पारिवारिक कारण अपनी जगह हैं, लेकिन प्रदर्शन से दूरी का कारण बहुत हद तक राजनीतिक भी है। बताया जा रहा है कि प्रदर्शन से एक दिन पहले वे दोपहर बाद तक जयपुर मे ही थीं, लेकिन पार्टी ने उन्हें समय से सूचित नहीं किया और जब तक सूचित किया गया तब तक वे दिल्ली निकल चुकी थीं। उनकी गैर-मौजूदगी के बारे में पार्टी नेताओं के पास भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं था। पार्टी नेताओं का कहना था कि राजे ही नहीं कई और नेता भी अपनी व्यवस्तता के चलते प्रदर्शन में शामिल नहीं हो पाए। पार्टी सूत्रों का कहना है कि जाहिर कारण चाहे कुछ भी हों, लेकिन पार्टी के इतने बड़े प्रदर्शन से वसुंधरा राजे की दूरी इतने छोटे-मोटे कारणों की वजह से नहीं हो सकती।
चुनाव में अहम भूमिका चाहती हैं राजे
एक वरिष्ठ नेता ने आपसी बातचीत में बताया कि मामला ऊपर का है। राजे चुनाव में अहम भूमिका चाहती हैं, लेकिन पार्टी ने ये लगभग तय कर लिया है कि यहां चेहरा घोषित नहीं किया जाएगा। पार्टी आलाकमान खुद पूरा चुनाव देखेगा। इसके संकेत चुनाव प्रभारी के रूप में प्रहलाद पटेल की नियुक्ति से मिल गए थे, जो चुनाव की दृष्टि से बहुत आक्रामक नेता नहीं हैं।
1 महीने पहले तक बात कुछ और थी
गौरतलब है कि राजे को लेकर एक महीने पहले तक मामला कुछ और था। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह की सभाओं में जिस तरह राजे को प्रमुखता दी गई थी। उसे इस बात का संकेत माना गया था कि पार्टी राजे को आगे रखकर चुनाव लड़ेगी, क्योंकि आज भी राजे राजस्थान बीजेपी में सबसे बड़ा चेहरा हैं और उनके नाम से भीड़ आती भी है, लेकिन बाद में जुलाई में प्रधानमंत्री की 2 सभाओं में उन्हें वैसा महत्व मिलता नहीं दिखा। इन सभाओं में ना उनके भाषण हुए और ना ही ऐसे कोई संकेत मिले, जिससे लगता हो कि मोदी राजे को आगे ला रहे हैं।
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राष्ट्रीय टीम में बनाए रखने से भी मिले संकेत
इस दौरान पार्टी की राष्ट्रीय टीम घोषित की गई और इस टीम में वसुंधरा राजे को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद पर कायम रखा गया। पार्टी सूत्रों का कहना है कि उनका राष्ट्रीय टीम में उसी पद पर बने रहना भी कहीं ना कहीं इस बात का संकेत है कि पार्टी उन्हें राजस्थान में उनके द्वारा चाही जा रही भूमिका देने के मूड में नहीं है।
नहीं हो पा रही समितियों की घोषणा
महत्वपूर्ण बात ये है कि अगस्त का महीना शुरू हो चुका है और अब चुनाव की आचार संहिता लगने में करीब 60 दिन का समय बचा है। इसके बावजूद पार्टी अपनी चुनाव समितियां घोषित नहीं कर पाई है। इस मामले में भी बड़ा पेंच राजे की भूमिका को लेकर ही फंस रहा है। राजे को लेकर पार्टी के इस असमंजस के चलते पार्टी चुनावी तैयारियों के मामले में कांग्रेस से पिछड़ती दिख रही है, जो चुनाव समिति और स्क्रीनिंग समिति दोनों गठित कर चुकी है और पार्टी में टिकट तय करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
राजे को लेकर अब क्या संभावना
पार्टी सूत्रों का कहना है कि जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं, उसे देखते हुए इस बात की संभावना तो बहुत कम है कि पार्टी उन्हें राजस्थान में पार्टी का सीएम पद का चेहरा बनाए। उन्हें चुनाव संबंधी समितियों में रखा जा सकता है और अभियान समिति की बागडोर सौंपी जा सकती है, ताकि ये संदेश जाए कि पार्टी उन्हें आगे रखकर ही चुनाव लड़ रही है। हालांकि ये देखना दिलचस्प रहेगा कि पार्टी उन्हें जो भूमिका सौंपती है, उन्हें वे किस तरह स्वीकार करती हैं और किस हद तक सक्रिय होती हैं।
कांग्रेस को मिला मौका
पार्टी के बड़े प्रदर्शन से राजे की गैर मौजूदगी ने कांग्रेस को बीजेपी की फूट उजागर करने का मौका दे दिया है। सरकार के मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास का कहना है कि इस प्रदर्शन से राजे की गैर मौजूदगी ने साफ कर दिया है कि बीजेपी में जबर्दस्त फूट है और पार्टी में वर्टिकल डिवाइड है। इनके झगड़े तो टिकट वितरण के समय और बढ़ेंगे।