संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर में गौरव दिवस के अवसर पर 31 मई की रात को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और बीजेपी राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय एक सोफे पर काफी देर तक आपस में बात करते रहे। इसका वीडियो भी सामने आया और फोटो भी, जो थोड़ी ही देर में राजनीतिक गलियारे में चर्चा का मुद्दा बन गई। विजयवर्गीय से जब यह पूछा गया कि क्या बात हुई तो उन्होंने कहा बात तो हमेशा होती रहती है, इसमें नई बात नहीं है और सारी बात बताने की नहीं होती है। इसी कार्यक्रम के दौरान जब मंच से विजयवर्गीय ने कहा कि इंदौर संस्कारवान शहर है, लेकिन यहां नशे जैसी विकृति आ रही है तो सीएम अधिकारियों को निर्देश देकर जाएं कि सख्त कार्रवाई की जाए। इस पर सीएम ने मंच से ही विजयवर्गीय की बात का हवाला देते हुए कहा कि नशे पर सख्त कार्रवाई की जाए, सभी अधिकारी इस पर ध्यान दें।
शिव-कैलाश दोनों को एक-दूसरे की जरूरत
विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के लिए यह समय की मांग है कि दोनों एकजुट हो। दोनों के बीच की दूरियां किसी से छिपी नहीं है, विजयवर्गीय शिवराज सरकार के मंत्रीमंडल में रहे है, लेकिन उन्होंने ठाकुर के हाथ बंधे हुए होने का बात कहकर हलचल मचा दी थी। इसके बाद में इस्तीफा देकर केंद्र की राजनीति में चले गए। अब इस समय विजयवर्गीय के पास किसी राज्य का प्रभार नहीं है। ऐसे में उन्हें मप्र में अपनी जमीनी पकड़ मजबूत करने के साथ ही पार्टी में भी बड़े स्तर पर तवज्जो चाहिए, जिसमें शिवराज की हां लगेगी। वहीं, शिवराज सिंह चौहान को सत्ता के गलियारे मालवा-निमाड़ में उनसे बड़ा नेता भी नहीं मिलेगा। विधानसभा चुनाव के पहले जिस तरह से हालत बीजेपी कि दिख रही है, ऐसे में शिवराज सिंह चौहान को विजयवर्गीय की जरूरत होगी।
दोनों की साथ में ही शुरू हुई राजनीति, लेकिन रेस में पिछड़ गए विजयवर्गीय
विजयवर्गीय, सीएम चौहान से उम्र में मात्र 3 साल ही बड़े हैं। दोनों की ही राजनीति आगे-पीछे एबीवीपी से शुरू हुई। बाद में युवा मोर्चा में भी दोनों साथ रहे। विजयवर्गीय ने प्रदेश की राजनीति में अधिक दखल दिया। वहीं, चौहान सांसद बनकर केंद्र की ओर चले गए और वहां उनके रिश्ते मजबूत होते गए। बाद में वह साल 2005 में बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष बने और फिर सीएम बन गए। तभी से वह बीजेपी की ओर से मप्र के सीएम है। विजयवर्गीय इंदौर में प्रभावी महापौर रहे, फिर प्रभावी मंत्री भी रहे, लेकिन फिर सीएम से पटरी नहीं बैठी और केंद्र में चले गए। वहां हरियाणा विधानसभा की जीत और फिर पश्चिम बंगाल में लोकसभा की भारी जीत ने उन्हें केंद्र में काफी मजबूत कर दिया, लेकिन पश्चिम बंगाल की विधानसभा चुनाव की हार ने उन्हें बड़ा धक्का दिया। इसके बाद उनके पास किसी राज्य का जिम्मा नहीं है। ऐसे में वह मप्र के विधानसभा चुनाव के दौरान मालवा-निमाड़ में खुद को झोंकने में लगे हैं, जिससे पार्टी भी मजबूत हो और उन्हें भी पार्टी में अधिक तवज्जो हासिल हो सके।