BHOPAL. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर देश के मुस्लिम वोट बैंक में करीब 85 फीसदी की हिस्सेदारी वाले पसमांदा मुस्लिमों (सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े मुसलमान) की बदहाली और शोषण का जिक्र करते हुए उन्हें रिझाने का दांव चला है। भोपाल में बीजेपी के बूथ लेवल कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करने वालों ने पसमांदा मुस्लिमों का जमकर शोषण किया, लेकिन देश में कभी इसकी चर्चा नहीं हुई। बीजेपी की सरकार उन्हें भी पक्का घर और मुफ्त स्वास्थ्य सुविधाएं दे रही है। हम उनके पास भी विश्वास के साथ जाएंगे और उनके भ्रम दूर करेंगे।
कॉमन सिविल कोड का विरोध करने वालों से जुड़ा है, उत्तर प्रदेश की रानी चौरसिया जी का सवाल। अगर वोटबैंक की राजनीति करने वाले मुसलमानों के हितैषी होते तो हमारे मुस्लिम भाई-बहन शिक्षा, रोजगार में पीछे न रहते और मुसीबत की जिंदगी जीने को मजबूर न होते।https://t.co/lk3h1CF51V
— Narendra Modi (@narendramodi) June 27, 2023
पसमांदा मुसलमानों को रिझाने का प्रयास क्यों कर रही बीजेपी ?
ऐसे में लोगों के मन में ये सवाल उठ रहा है कि अब तक हिंदुत्व की राह पर चलने वाली बीजेपी और उसके नेता पसमांदा मुसलमानों को रिझाने का प्रयास क्यों कर रहे हैं। आइए आपको समझाते हैं कि आखिर बीजेपी की नजर में पसमांदा मुसलमान क्यों महत्वपूर्ण हो गए हैं और उन्हें साधकर वो क्या हासिल करना चाहती है।
पसमांदा पर दांव, बीजेपी की सोची-समझी रणनीति
बीजेपी और उसकी राजनीति पर नजर रखने वाले पॉलिटिकल एक्सपर्ट के मुताबिक वर्तमान राजनैतिक हालात में बड़ी आबादी वाले पसमांदा मुसलमानों को रिझाना उसकी सोची-समझी राजनीति का हिस्सा है। ऐसा करके वो 2 लक्ष्य साधना चाहती है। पहला- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिमों के प्रति अपनी पुरानी छवि बदलने और चमकाने के लिए। दूसरा- लोकसभा चुनाव 2024 में विपक्षी दलों के मुकाबले अपना वोट शेयर बढ़ाकर ज्यादा सीटें हासिल करने के लिए।
भोपाल में पीएम मोदी ने ये कहा
भोपाल में बीजेपी के बूथ लेवल कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि यदि हम मुसलमान भाई-बहनों की तरफ देखते हैं तो पसमांदा मुसलमानों का वोट बैंक की राजनीति करने वालों ने जीना मुश्किल करके रखा हुआ है। उनके ही धर्म के एक वर्ग ने पसमांदा मुसलमानों का जमकर शोषण किया है, लेकिन इसकी देश में कभी चर्चा नहीं हुई। उनकी आवाज सुनने को भी कोई तैयार नहीं है। उन्हें आज भी बराबरी का दर्जा नहीं मिला है। उन्होंने मोची, भठियारा, जोगी, मदारी, जुलाहा, लंबाई, तेजा, लहरी, हलदर जैसी पसमांदा जातियों का जिक्र करते हुए कहा कि इनके साथ इतना भेदभाव हुआ है जिसका नुकसान उनकी कई पीढ़ियों को भुगतना पड़ा। बीजेपी सरकार उन्हें भी पक्का घर, मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा दे रही है। हम उनके पास भी विश्वास के साथ जाएंगे और उनके भ्रम दूर करेंगे। पीएम मोदी ने यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) और 3 तलाक का भी जिक्र किया। उन्होंने विपक्ष पर यूसीसी को लेकर भ्रम फैलाने का आरोप लगाते हुए कहा कि हम उनका हर भ्रम दूर करने की कोशिश करेंगे।
कौन हैं पसमांदा मुसलमान ?
बीजेपी में मुसलमानों के इस बड़े तबके के प्रति उमड़े प्रेम के कारणों को विस्तार से समझने से पहले जान लेते हैं कि आखिर पसमांदा मुसलमान कौन हैं। दरअसल, पसमांदा शब्द उर्दू-फारसी का है, जिसका अर्थ है पीछे छूटे या नीचे धकेल दिए गए लोग। वैसे तो भारत में जातिगत जनगणना सालों से नहीं हुई है, लेकिन एक अनुमान के मुताबिक भारत की कुल आबादी में 15 फीसदी मुसलमान हैं, जिनमें से तकरीबन 85 फीसदी पसमांदा मुसलमान हैं। ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के अध्यक्ष और पूर्व सांसद अली अनवर के मुताबिक पसमांदा अब पेशमांदा (आगे रहने वाला) होना चाहता है। पसमांदा मुसलमान भारत के मूल निवासी हैं। हम अकलियत (अल्पसंख्यक) के लोग नहीं बल्कि अकसरियत (बहुजन) में शामिल हैं। संगठन का मानना है कि 'पसमांदा' हर धर्म में हैं और उसी तरह से मुसलमानों में भी हैं।
पसमांदा मुस्लिमों में ये जातियां शामिल
देश में पसमांदा मुसलमान सामाजिक और आर्थिक के साथ ही राजनीतिक और शैक्षणिक रूप से भी काफी पिछड़े हैं। देश में मुसलमानों की कुल आबादी में करीब 85 फीसदी पसमांदा हैं जबकि 15 फीसदी उच्च जाति के मुसलमानों की आबादी है। अगड़ी मुस्लिम जातियां सामाजिक और आर्थिक रूप से मजबूत हैं। राजनीति की बात करें तो इस क्षेत्र में भी इन्हीं अगड़ी मुस्लिम जातियों का वर्चस्व रहा है। दलित और बैकवर्ड मुस्लिम, पसमांदा वर्ग में आते हैं। मुसलमानों का यह तबका हमेशा हाशिए पर ही रहा है। यही वजह है कि पीएम मोदी बार-बार पसमांदा मुसलमानों की बात कर रहे हैं। बीजेपी को लगता है कि मुस्लिमों में बहुसंख्यक पसमांदा उपेक्षित रहा है और इसे सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ देकर बीजेपी के करीब लाया जा सकता है। मुसलमानों के ओबीसी तबके में कुंजड़े (राईन), जुलाहे (अंसारी), धुनिया (मंसूरी), कसाई चिकवा, कस्साब (कुरैशी), फकीर (अलवी), नाई (सलमानी), मेहतर (हलालखोर), ग्वाला (घोसी), धोबी, गद्दी, लोहार-बढ़ई (सैफी), मनिहार (सिद्दीकी), दर्जी (इदरीसी), वन-गुज्जर, गुर्जर, बंजारा, मेवाती, गद्दी, मलिक गाढ़े, जाट, अलवी, जैसी जातियां आती हैं।
इन राज्यों में लोकसभा की 190 सीटों पर सबसे ज्यादा पसमांदा
ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के संस्थापक अली अनवर अंसारी के अनुसार वैसे तो देश के 18 राज्यों में जहां भी मुस्लिम आबादी है, हर जगह पसमांदा हैं। लेकिन देश के 5 राज्यों विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, बंगाल और असम में इनकी संख्या ज्यादा है। 2011 जनगणना के मुताबिक इन 5 राज्यों में मुस्लिम आबादी की बात करें तो उत्तर प्रदेश में 19.26%, बिहार में 16.87%, बंगाल में 27.01%, झारखंड में 14.53% और असम में 34.22% मुस्लिम हैं। इनमें ज्यादातर संख्या पसमांदा मुस्लिमों की है। इन राज्यों में 190 से ज्यादा लोकसभा की सीटें हैं। इसलिए बीजेपी लोकसभा चुनाव 2024 को ध्यान में रखते हुए यहां पसमांदा को साधने में लगी है। इसके अलावा दक्षिण भारत के तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों में भी पसमांदा मुस्लिमों की अच्छी-खासी संख्या है।
यूपी चुनाव में बीजेपी को 8% पसमांदा मुस्लिमों का वोट मिला
उत्तर प्रदेश के 45% मुस्लिम आबादी वाली रामपुर लोकसभा सीट पर उपचुनाव में BJP को 42 हजार वोटों से जीत मिली थी। मुस्लिमों का गढ़ माने जाने वाले आजमगढ़ उपचुनाव में भी 13 साल बाद BJP कमल खिलाने में कामयाब रही है। इस उपलब्धि पर यूपी बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष ने दावा किया था कि विधानसभा चुनाव में 8% पसमांदा का वोट BJP को मिला है। इसके अलावा CSDS लोकनीति सर्वे 2022 ने भी अपनी रिपोर्ट में बताया है कि 8% पसमांदा मुस्लिमों ने UP विधानसभा में BJP को वोट दिए। इसी वजह से कई सीटों पर BJP की जीत में पसमांदा ने अहम भूमिका निभाई है। UP विधानसभा चुनाव 2022 में 34 मुस्लिम विधायक जीतकर विधानसभा में पहुंचे हैं, इनमें से 30 विधायक पसमांदा हैं। उत्तर प्रदेश की कुल आबादी में पसमांदा मुस्लिम 18% हैं। ऐसे में साफ है कि BJP न सिर्फ 80 लोकसभा वाले उत्तर प्रदेश बल्कि बिहार, बंगाल, झारखंड जैसे राज्यों में भी राजनीति साधने की कोशिश कर रही है।
पसमांदा की कई जातियों को SC के दर्जे की मांग राह में रोड़ा
पसमांदा मुसलमानों को साधने की राह में बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती इस तबके में शामिल कई जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिए जाने की मांग है। ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज संगठन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बकायदा एक चिट्ठी लिखकर मांग की है कि पसमांदा मुसलमानों की करीब दर्जनभर जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जाए, जो फिलहाल ओबीसी में आते हैं। हालांकि संगठन ये मांग नई नहीं है, लेकिन बीजेपी के पसमांदा मुसलमानों के बीच पैठ बनाने की कोशिशों के बीच एक बार फिर इस मांग को नए सिरे से उठाया गया है। संगठन के रहनुमाओं का कहना है कि यदि सरकार वाकई में पसमांदा मुसलमानों का भला करना चाहती है तो उनकी पुरानी मांग को माना जाए। राजनीति के जानकारों की मानें तो इस मांग को स्वीकार किए बिना बीजेपी के लिए पसमांदा मुसलमानों का समर्थन हासिल करना मुश्किल है। यही मांग बीजेपी और पसमांदा मुसलमानों के बीच सबसे बड़ी दीवार बनकर खड़ी है।
कई जातियों का पेशा दलितों के समान, इसलिए मिले एससी का दर्जा
ज्यादातर पसमांदा ओबीसी के अंतर्गत ही आते हैं, लेकिन ओबीसी में आने वाली कुछ जातियों की मांग है कि उन्हें एससी का दर्जा मिले क्योंकि उनका पेशा वही है जो हिंदू दलितों का है। अली अनवर का कहना है कि पसमांदा मुसलमानों के अंदर करीब 1 दर्जन जातियां ऐसी हैं जिन्हें अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं मिल रहा है और ऐसा सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्रा आयोग की सिफारिशों के बावजूद है। वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सवाल करते हैं कि क्या सरकार ऐसी दर्जनभर जातियों को एससी का दर्जा देने को तैयार है? यदि नहीं तो सिर्फ भावनात्मक बातों से पसमांदा मुसलमानों का कोई भला नहीं होने वाला है।
सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में दलित पसमांदा को SC में शामिल करने सुझाव
मुस्लिमों की स्थिति में सुधार के लिए यूपीए सरकार के शासन में गठित सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक 1936 में जब अंग्रेजों के सामने ये मामला गया तो एक इंपीरियल ऑर्डर के तहत सिख, बौद्ध, मुस्लिम और ईसाई दलितों को बतौर दलित मान्यता दी गई, लेकिन इन्हें हिंदू दलितों को मिलने वाले फायदे नहीं दिए गए। 1950 में आजाद भारत के संविधान में भी यही व्यवस्था रही। हालांकि 1956 में सिख दलितों और 1990 में नव-बौद्धों को दलितों में शामिल तो कर लिया गया पर मुस्लिम दलित जातियों को मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू होने के बाद OBC लिस्ट में ही जगह मिल पाई। इसलिए कमीशन की रिपोर्ट में दलित पसमांदा मुस्लिमों को SC में शामिल करने का सुझाव दिया गया।
बीजेपी SC का दर्जा देने के पक्ष में नहीं
पसमांदा मुसलमानों की कुछ जातियों को एससी में शामिल करने की मांग पर सरकार की तरफ से उन्हें कोई जवाब नहीं मिला है। सच तो ये है कि सत्ता में आने से पहले भी बीजेपी ने पहले कभी पसमांदा मुसलमानों की इस मांग का समर्थन नहीं किया है। इस मुद्दे के जानकारों के मुताबिक संविधान के अनुच्छेद 341 के जरिए, अनुसूचित जाति को आरक्षण मिलता है, लेकिन उसमें राष्ट्रपति का एक आदेश जुड़ा हुआ है। इसके तहत, हिंदुओं में अछूत माने जाने वाली जातियों को ही इसका लाभ मिलेगा। बाद में इसमें 2 बदलाव लाए गए, जिसके तहत मजहबी सिख और बौद्ध धर्म के मानने वाले लोगों को इसमें शामिल किया गया, लेकिन अभी तक इस्लाम और ईसाई धर्म मानने वाली जातियों को इसमें शामिल नहीं किया गया है। सरकार ये मांग मानेगी, इसकी संभावना कम है। इसके पीछे एक ही वजह है कि बीजेपी को इस बात का डर है कि ईसाई और इस्लाम धर्म मानने वालों में कुछ जातियों को SC दर्जा दे दिया गया तो धर्म परिवर्तन की दर और बढ़ जाएगी। इसके लिए उसका वैचारिक थिंक टैंक यानी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी राजी नहीं होगा।
छवि चमकाने के साथ, वोट शेयर बढ़ाने का प्रयास
राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार दुबे की राय में BJP पसमांदा मुस्लिमों को साधने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। पसमांदा के लिए BJP कई कार्यक्रम आयोजित करने के साथ ही उत्तर प्रदेश में 'स्नेह यात्रा' भी निकाल चुकी है। ऐसा इसलिए क्योंकि पसमांदा की एक शिकायत रही है कि मुस्लिमों के संपन्न तबके के लोग ही सत्ता में रहते हैं। पसमांदा की इस शिकायत को दूर कर BJP इस समुदाय के कुछ लोगों को अपनी ओर खींच सकती है। उनका मानना है कि यदि ठोस राजनीतिक और आर्थिक कार्यक्रम लेकर पसमांदा के बीच जाएगी तो इसका फायदा मिल सकता है। वैसे भी BJP की राजनीति काफी फ्लेक्सिबल यानी लचीली रही है। एक वक्त था जब NDA बनाने के लिए BJP ने अनुच्छेद 370 और राम मंदिर जैसे मुद्दे को साइड कर दिया था, लेकिन सत्ता में आते ही सबसे पहले यही काम किया। ऐसे में यदि बीजेपी पसमांदा मुसलमानों को रिझाकर उनके कुछ प्रतिशत वोट भी हासिल करने में कामयाब होती है तो ये उसकी रणनीति की सफलता मानी जाएगी। उनकी नजर में BJP मुख्य तौर पर दुनियाभर में मुसलमानों के प्रति अपनी छवि चमकाने और अपना वोट शेयर बढ़ाने के लिए पसमांदा मुसलमानों को लुभाने का प्रयास कर रही है।