मध्यप्रदेश में कौन पका रहा ख्याली पुलाव, बीजेपी के लिए 200 पार का चुनाव, कांग्रेस का 150 सीटों पर दांव, कैसे पूरा होगा ख्वाब

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Arun Dixit
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मध्यप्रदेश में कौन पका रहा ख्याली पुलाव, बीजेपी के लिए 200 पार का चुनाव, कांग्रेस का 150 सीटों पर दांव, कैसे पूरा होगा ख्वाब

BHOPAL. इन दिनों प्रदेश की सियासत में सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर मुंगेरीलाल के हसीन सपने कौन देख रहा है। सवाल इसलिए है क्योंकि बीजेपी कहती है अबकी बार 200 पार, जबकि कांग्रेस ने 150 सीटें जीतने की भविष्यवाणी कर दी है। पिछले चुनाव से तुलना करें तो बीजेपी 91 सीटें और कांग्रेस 36 सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं। विधानसभा चुनाव के बाद उपचुनाव, नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव भी हुए। इन चुनावों के नतीजों ने तस्वीर बदली हुई दिखाई। द सूत्र ने इन दावों की पड़ताल करने की कोशिश की है। आइए आपको बताते हैं दोनों राजनीतिक दलों के इन दावों के पीछे की वजह क्या है।





बीजेपी के सपने और हकीकत





आज की तारीख में बीजेपी के विधायकों की संख्या 127 है, लेकिन 2018 में ये संख्या 109 थी। यदि 2018 के हिसाब से देखें तो 200 पार के सपने को पूरा करने के लिए बीजेपी को 91 सीटों की जरूरत है। वर्तमान के आधार पर 73 सीटें और चाहिए 200 के आंकड़े पर पहुंचने के लिए, लेकिन ये रास्ता कितना चुनौतीपूर्ण है ये पिछले साल हुए नगरीय निकाय चुनाव से साबित हो जाता है। पिछले नगर निगम चुनाव में 16 मेयर बनाकर अपनी बादशाहत जमाने वाली बीजेपी पांच साल बाद सात निगम गंवा बैठी। यानी उसके हिस्से में सिर्फ 9 नगर निगम ही आए। हैरानी की बात है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर जैसे दिग्गजों के बाद भी ग्वालियर-चंबल में 52 सालों का इतिहास बदल गया। ग्वालियर और मुरैना नगर निगम भी कांग्रेस ने जीत लीं। विधानसभा चुनाव में विंध्य में भारी सफलता पाने वाली बीजेपी रीवा और सिंगरौली नगर निगम हार गई। सतना कांग्रेस के बागी के सहारे बमुश्किल जीत पाई। 2018 के चुनाव में ग्वालियर-चंबल कांग्रेस के साथ था। 31 सीटों वाले इस इलाके में कांग्रेस को 24 और बीजेपी को 6 सीटें मिली थीं। एक से बसपा जीती। यानी कि साफ है कि बीजेपी को 200 पार जाने के लिए 2018 के बिल्कुल उलट परिणाम लाने होंगे। यही कारण है कि बीजेपी के पूर्व प्रदेश प्रभारी और सांसद विनय सहस्त्रबुद्धे बीजेपी की जीत का दावा तो करते हैं, लेकिन सीटें नहीं बताते। 





200 सीटों के लिए बीजेपी को चाहिए महाकौशल





बीजेपी की दूसरी बड़ी चुनौती महाकौशल है। इस इलाके में जीत के लिए बीजेपी को महाकौशल की जरुरत है। 2018 में कमलनाथ के इस गढ़ में कांग्रेस 38 में से 24 सीटें जीतीं। स्थानीय निकायों के परिणाम भी कांग्रेस के अनुकूल कहे जा सकते हैं। जबलपुर और छिन्दवाड़ा में कांग्रेस तो कटनी में निर्दलीय उम्मीदवार ने बीजेपी को मात दी। महानगर एक तरह से उस जिले के मतदाताओं की नब्ज माने जाते हैं। यदि उनकी पल्स को नापें तो पता चल जाता है कि मतदाताओं का दिल किसके लिए धड़क रहा है। 200 पार के लिए बीजेपी को इस महाचुनौती से पार पाना होगा। बीजेपी महिलाओं की लाड़ली बहना, युवाओं की सीखो कमाओ और आदिवासी वर्ग के लिए धड़ाधड़ हो रही घोषणाओं के जरिए दो सौ पार के ख्वाब संजो रही है। बीजेपी प्रवक्ता हितेष वाजपेयी भी 200 पार बोलने से परहेज बरतते हैं। हालांकि वे 2003 का उदाहरण भी देते हैं जब बीजेपी को 173 सीटें मिली थीं, वे 2018 की स्थिति से तुलना नहीं करते। 





कांग्रेस की 150 सीटें : सच या जुबानी जमा खर्च





कांग्रेस को वर्तमान आधार पर 150 के आंकड़े को पार करने के लिए 54 सीटें चाहिए जबकि 2018 के लिहाज से 36 सीटों की जरुरत है। कांग्रेस के सामने भी इस आंकड़े को पार करने के लिए पहाड़ जैसी चुनौतियां हैं। 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने विंध्य में भारी सूखा काटा। यहां के मतदाताओं ने छप्पर फाड़कर बीजेपी की झोली भरी। बीजेपी को 30 में से 24 सीटें  मिलीं। कांग्रेस के हिस्से में बमुश्किल आधा दर्जन सीटें ही आ पाईं। कांग्रेस ने यहां पर पूरी तरह से दिग्विजय सिंह को झोंक दिया है। नगरीय निकाय चुनाव से कांग्रेस को लोगों के मानस बदलने का संकेत मिल रहा है। रीवा नगर निगम कांग्रेस के हिस्से में आई तो सिंगरौली भी बीजेपी से छिनकर आप की झोली में चली गई। कांग्रेस निकाय चुनाव की जीत की उम्मीद की किरण के साथ बीजेपी की एंटीइन्कमबेंसी में ही अपनी जीत तलाश रही है। 





राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से उम्मीद





कर्नाटक में जिस तरह से कांग्रेस ने जीत हासिल की है,उसकी बड़ी वजह राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा मानी जा रही है। इसी सफलता की आशा मप्र कांग्रेस भी करने लगी है। मालवा-निमाड़ में इस यात्रा के असर की उम्मीद के सहारे कांग्रेस है। प्रदेश में राहुल गांधी की भारत छोड़ों यात्रा ने बुरहानपुर से प्रवेश किया। यात्रा उज्जैन होते हुए गुजरात चली गई। भारत छोड़ों यात्रा छह जिलों से होकर गुजरी। इन छह जिलों में वहां 30 सीटें हैं। 2018 के चुनाव में इनमें से कांग्रेस को 15 और भाजपा को 12 सीटें मिली। कांग्रेस इस प्रदर्शन को और दुरुस्त करने की तैयारी कर रही है। कांग्रेस के सामने चुनौती ये भी है कि मालवा-निमाड़ बीजेपी का सबसे मजबूत पक्ष रहा है। यहां पर संघ का सबसे ज्यादा असर माना जाता है। 2018 के चुनाव परिणाम के बाद संघ ने यहां पर जमीनी स्तर पर अपनी ढीली पकड़ को मजबूत करने के प्रयास तेज किए हैं। हालांकि सरकार में इस इलाके को उपेक्षा का शिकार होना पड़ा है। क्या कांग्रेस अपना पुराना प्रदर्शन यहां दोहरा पाएगी ये बड़ा सवाल है। कांग्रेस ने बीजेपी की काट के लिए महिलाओं को 1500 रुपए देने, 500 में गैस सिलेंडर देने, किसानों का कर्ज माफ करने,सस्ती बिजली देने जैसी बड़ी घोषणाएं अपने वचन पत्र में शामिल की हैं। 





दलित और आदिवासी वर्ग को भी साधने की चुनौती





कांग्रेस और बीजेपी को दलित और आदिवासी वर्ग को भी साधने की चुनौती है। इस वर्ग के आरक्षित 82 सीटें सत्ता की चाबी मानी जाती हैं। जहां पर इस वर्ग का पलड़ा झुकता है वहीं पर सरकार बनाने का रास्ता साफ होता है। इस वर्ग के लिए सीएम ने योजनाओं की झड़ी लगा दी है जबकि कांग्रेस इन वर्गों पर बीजेपी सरकार में सबसे ज्यादा अत्याचार होने का आरोप लगा रही है। बहरहाल अब गेंद जनता के पाले में है और जनता ही तय करेगी कि आखिर कौन देख रहा है मुंगेरीलाल के हसीन सपने। 



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