BHOPAL. राजा का बेटा राजा, चोर का बेटा चोर- पुरानी फिल्मों का ये जुमला बहुत पुराना हो चुका है। इन दिनों तो बात होती है नेपोटिज्म की। स्टार किड्स के नाम पर लोगों का गुस्सा फूटता है। नेपोटिज्म की आग बॉलीवुड से अब राजनीति की दुनिया में आ चुकी है। वैसे तो नेता का बेटा ही नेता बने ये दस्तूर भी पुराना ही रहा है, लेकिन अब बीजेपी में ये साफ हो गया है कि नेता का बेटा नेता नहीं बन सकेगा। अब तक तो हर विधायक या सांसद को ये उम्मीद थी कि वो अपना टिकट छोड़ेंगे या चुनावी राजनीति से संन्यास ले लेंगे तो उनके बच्चों को टिकट मिल जाएगा, लेकिन अब ये आखिरी रास्ता भी बीजेपी में बंद हो गया है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये इशारा कर दिया है। जिसका असर मध्यप्रदेश के उन नेताओं पर भी पड़ेगा जो अपने करियर की बलि चढ़ाकर अपने बच्चों का सियासी भविष्य सिक्योर करना चाहते थे।
विजयवर्गीय को बेटे को देखकर बंधी उम्मीद अब टूट रही है
आकाश विजयवर्गीय को पिछले चुनाव में टिकट मिला और वो जीते भी तो बीजेपी के नेताओं में उम्मीद की एक किरण दौड़ गई। कांग्रेस के गांधी परवार पर वंशवाद का आरोप लगाने वाली पार्टी में ही एक नेता के बेटे को टिकट मिला और उसका सियासी करियर पटरी पर आ गया। उस वक्त ये कहा गया कि बीजेपी में रहकर अगर बच्चों को टिकट दिलाना है तो पिताओं को खुद सत्ता का त्याग करना पड़ेगा। अलबत्ता वो संगठन में जरूर रह सकते हैं। कैलाश विजयवर्गीय ने भी पार्टी की शर्तों को मानते हुए सत्ता से समझौता किया और संगठन में आ गए। जो उम्मीद कैलाश विजयवर्गीय और उनके बेटे को देखकर बंधी थी वो उम्मीद अब टूट रही है। बीजेपी में फिर एक बार क्राइटेरिया बदल सकता है। और, अगर नया क्राइटेरिया लागू हुआ तो पिता के रहते बेटे को टिकट मिलना तो दूर उनके राजनीतिक संन्यास के बाद भी नहीं मिल सकेगा।
मोदी ने जो कहा है उससे पार्टी में खलबली मची है
हाल ही पीएम नरेंद्र मोदी ने जो कहा है उससे पार्टी में खलबली मची है। पीएम की बात को हर नेता अपनी-अपनी तरह से डिकोड करने में लगा है। चुनाव विशेषज्ञ दावा कर रहे हैं कि नरेंद्र मोदी का भाषण विपक्षी एकता को पस्त करने लिए है, लेकिन उसने बीजेपी नेताओं की बची खुची उम्मीद के सितारे को भी अस्त कर दिया है। वैसे तो बीजेपी में परिवार के एक सदस्य के बाद दूसरे सदस्य को टिकट मिलता रहा है, लेकिन परिवारवाद पर निशाना साधने के चक्कर में बीजेपी के ही लोगों के परिवार राजनीतिक संशय का शिकार होते जा रहे हैं।
शिवराज के बेटे कार्तिकेय पार्टी के कामों में अभी से व्यस्त हैं
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बेटे कार्तिकेय सिंह चौहान पार्टी के कामों में अभी से व्यस्त हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के बेटे महाआर्यमन सिंधिया भी सियासी मैदान में नजर आने लगे हैं।
- नरोत्तम मिश्रा के बेटे सुकर्ण
अब नेता पुत्रों को भी टिकट नहीं मिलेगा
इन सभी लीडर संस के सियासी करियर पर दी एंड लिखा जा चुका है। वैसे तो किसी एक का करियर तो खत्म होना ही था या तो पिता का या पुत्र का, लेकिन अब ये गुंजाइश भी खत्म हो गई है कि पिता के चुनावी राजनीति से दूर रहने के बाद बेटों को टिकट मिल जाएगा, लेकिन पीएम मोदी के ताजा भाषण में कही गई बात ये जाहिर कर रही है कि अब नेता पुत्रों को भी टिकट नहीं मिलेगा।
वैसे ऐसा नहीं है कि बीजेपी में इससे पहले परिवार के किसी अन्य सदस्य को टिकट हासिल न हुआ है। मध्यप्रदेश में ही ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं। जिनमें परिवारवाद की झलक नजर आती है।
- सीएम सुंदरलाल पटवा के भतीजे सुरेंद्र पटवा पूर्व मंत्री और वर्तमान में विधायक हैं।
पीएम मोदी के बयान के बाद बीजेपी में खलबली मच गई है
इस बार भी कुछ नेताओं को जरूर ये उम्मीद रही होगी कि वो अपने टिकट का त्याग करते हैं तो शायद अपने बेटे या बेटी को टिकट दिलवा सकेंगे। वरिष्ठ नेता गौरी शंकर बिसेन तो अपनी बेटी मौसम बिसेन के लिए जोर शोर से टिकट की मांग कर भी चुके हैं। इस बीच पीएम मोदी के बयान के बाद एक बार फिर बीजेपी के हलकों में खलबली मच गई है। माना जा रहा है कि ये बयान विपक्षी एकता को कमजोर करने के लिए दिया गया। पीएम मोदी ने साफ कहा कि किसी नेता का घर चलाना चाहते हैं तो उसे या उसके बच्चों को वोट दें। अपना घर चलाना चाहते हैं तो बीजेपी को वोट दें। इसके मायने अब ये निकाले जा रहे हैं कि इस बयान के बाद आने वाले चुनावों में किसी नेता पुत्र या पुत्री को टिकट नहीं मिल सकेगा।
टिकट के क्राइटेरिया में बदलाव से बीजेपी की दिशा तय होगी
कांग्रेस ने तो इस बयान को बगावत भड़काने वाला बयान बता दिया है। कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि भले ही पीएम मोदी या बीजेपी परिवारवाद की खिलाफत कर रही हो, लेकिन उनकी ही पार्टी के नेता अपने बच्चों का सियासी भविष्य सुरक्षित करना चाहते हैं। ऐसे में जिन्हें टिकट नहीं मिलेगा वो कोई और रास्ता चुनने पर मजबूर होंगे। हालांकि, स्थिति अभी बीजेपी में ही स्पष्ट नहीं है। टिकट के क्राइटेरिया में कुछ बदलाव होता है या नहीं। उसी के आधार पर बीजेपी में आगे की दशा और दिशा तय होगी।
जो तुमको हो पसंद वही काम करेंगे कि तर्ज पर फैसला मंजूर करेंगे!
मध्यप्रदेश में वैसे ही बीजेपी के हाल बेहाल हैं। बगावत और गुटबाजी की जड़ें गहरी हो चली हैं। बहुत से नेता ऐसे हैं जो सियासी पूरी करने के करीब हैं या पूरी कर चुके हैं। कुछ के टिकट पर इस बार उम्र के क्राइटेरिया के चलते संकट भी नजर आ रहा है। ऐसे में अगर लीडर सन इन वेटिंग को टिकट नहीं मिला तो उनका फैसला क्या होगा। क्या वो नई पार्टी चुनेंगे या फिर चुपचाप जो तुमको हो पसंद वही काम करेंगे कि तर्ज पर फैसला मंजूर करेंगे। अब पार्टी का क्राइटेरिया और उसके आधार पर लीडर और लीडर सन के फैसले तय करेंगे कि बगावत से जूझ रही पार्टी अगली पीढ़ी के बागी तेवर देखती है या अपनी सियासी विरासत बचाकर रख पाती है।