अयोध्या नामा भाग 8: जब विश्व हिन्द परिषद ने कहा कि कारसेवा तो होकर रहेगी
AYODHYA, रविकांत दीक्षित.
त्रेता युग में भगवान श्रीराम को 14 बरस का वनवास हुआ था, लेकिन तब के कोशलपुर से लेकर आज तक की अयोध्या ने भी मानो 500 वर्ष का 'वनवास' भोगा है। अवध ने अपने कण-कण में बसे भगवान राम के मंदिर में विराजमान होने का लंबा इंतजार किया है।
पर कहते हैं...
जा पर कृपा राम की होई, ता पर कृपा करहिं सब कोई।
जिनके कपट, दम्भ नहिं माया, तिनके हृदय बसहु रघुराया।।
अब राम कृपा से अयोध्या फिर राममय होने जा रही है। शुभ शकुन हो रहे हैं। नगाड़े बज रहे हैं। रामराज्य का गान हो रहा है। भाव-विभोर करने वाले इस ऐतिहासिक मौके पर हर कोई हर्षित है। मन प्रफुल्लित है।
पर...आह्लादित करने वाले इस अवसर पर अयोध्या का अतीत भी याद आता है। 9 नवम्बर 1989 को विश्व हिन्दू परिषद ने तय जगह पर मंदिर निर्माण की 'नींव का पत्थर' रख दिया था। धूमधाम से कार्यक्रम संपन्न हुआ। इसके सिर्फ 20 दिन बाद ही लोकसभा चुनाव हुए।
भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी
लोकसभा चुनाव में तीसरे नंबर की पार्टी बनी। 25.25 फीसदी वोट पाने वाली भाजपा 85 सीट लेकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। यह उभरते हुए राष्ट्रवाद की शुरुआत भर थी। इसके बाद भाजपा और अन्य दलों के समर्थन से वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने। इधर, उत्तर प्रदेश में समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव बड़ी शक्ति बनकर उभरे थे।
आडवाणी ने भांप लिया मिजाज
इसी अवधि में लालकृष्ण आडवाणी देश के बदलते सियासी मिजाज को भांप चुके थे। वे 25 सितंबर 1990 को सोमनाथ मंदिर से 30 अक्टूबर तक अयोध्या की 10 हजार किलोमीटर लंबी 'राम रथ यात्रा' पर निकल पड़े थे। यहां से भाजपा राम मंदिर आंदोलन में शत प्रतिशत रम गई। आडवाणी ने एक साथ पूरी ताकत के साथ आठ प्रदेश नाप डाले।
यह तो वनमैन शो ही था
बिहार के समस्तीपुर में 23 अक्टूबर को उनकी यात्रा रोकी गई, तब तक उन्होंने नौ हजार किलोमीटर से भी अधिक का सफर तय कर लिया था। उन 29 दिनों की यात्रा में उन्होंने कई सौ सभाओं को संबोधित किया। स्वतंत्र भारत में किसी एक मुद्दे पर किसी राजनेता का यह पहला वन मैन शो था।
यात्रा को रुकवाने की होड़
आडवाणी की लोकप्रियता और भाजपा को देशभर में मिल रहे समर्थन से प्रधानमंत्री वीपी सिंह के माथे पर चिंता के बल पड़ गए। कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का झुकाव भी दूसरे पक्ष की तरफ ज्यादा था। लिहाजा, वे आडवाणी की रथ यात्रा को रुकवाना चाहते थे।
अल्पमत में आ गई सरकार
दूसरी ओर बड़े सियासतदान कुछ और ही चाहते थे। यहां रथयात्रा को रोकना भी प्रतिष्ठा का सवाल हो गया था। समीकरण बिठाए गए और 23 अक्टूबर 1990 को बिहार के समस्तीपुर में रथ यात्रा के पहिए थम गए। लालू प्रसाद यादव ने आडवाणी को गिरफ्तार करवा दिया। इसी के साथ भाजपा ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया और सरकार अल्पमत में आ गई।
सरकार की तमाम पाबंदिया
इधर, मुलायम यादव की तमाम पाबंदियों के बावजूद विश्व हिन्दू परिषद ने यह साफ कर दिया था कि 30 अक्टूबर 1990 को कारसेवा होकर ही रहेगी। कुल मिलाकर देश, खासकर उत्तर प्रदेश में एक संघर्ष की पटकथा लिखी जा चुकी थी।
निरंतर
अयोध्या नामा के अगले भाग में जानिए...
- 30 अक्टूबर 1990 का वो बड़ा संघर्ष
- फिर चुनावों की चौखट पर खड़ा देश