BHOPAL. आप ने राम के प्रसिद्ध भजन- 'तेरे मन में राम... तन में राम... रोम-रोम में राम रे....' तो खूब सुना ही होगा, लेकिन यहां हम आपको एक ऐसे संप्रदाय की पूरी कहानी बता रहे हैं जो इस भजन पर पूरी तरह सटीक बैठती है। ये संप्रदाय है नामनामी।
जपते रहते हैं राम नाम
इस नामनामी संप्रदाय को मानने वाले हर वक्त 'राम नाम' जपते रहते हैं। काम-काज करते हुए, लोगों से मिलते-जुलते... इसके अलावा हर वक्त राम भक्ति में लीन रहते हैं। इतना ही नहीं इस पंथ के लोग अपने पूरे शरीर पर राम नाम गुदवाते हैं। इनके परिधानों यानी कपड़ों पर भी राम राम अंकित रहता है। इनके जीवन के हर पल में राम व्याप्त है। राम भक्ति में भजन-कीर्तनों पर खूब झूमते हैं। अकेले और टोलियों में।
मूर्ति पूजा से नहीं रखते यकीन
राम में अटूट विश्वास रखने वाले ये लोग मूर्ति पूजा यानी मंदिर में पूजा नहीं करते हैं और पीले वस्त्र भी नहीं पहनते हैं। साथ ही सिर पर तिलक भी नहीं लगाते हैं।
इस पंथ के लोग सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ और झारखंड में
रामनामी संप्रदाय के सबसे ज्यादा लोग छत्तीसगढ़ के जांजगीर चांपा और सरंगढ़ जिले में रहते हैं। इसके साथ ही झारखंड में भी इस पंथ को मानने वाले बड़ी संख्या में हैं।
शव नहीं जलाते, ना रात में अंतिम संस्कार करते
आमतौर पर हिंदू समाज में मरने पर शव को जलाया जाता है, लेकिन ये लोग शव को जलाते नहीं हैं, बल्कि दफनाते हैं। इसके पीछे की वजह एक रामनामी बताते हैं, 'हम लोग किसी मुर्दा को जलाते नहीं हैं, क्योंकि हम अपनी आंखों के सामने राम नाम को जलते हुए नहीं देख सकते।'
शव को दफनाया जाता है, इसके पीछे ठोस तर्क
इनके अंतिम संस्कार के भी नियम हैं। सूरज ढलने पर शव को दफनाया नहीं जाता है। रात हो जाती है तो मुर्दा घर में ही रखा जाता है। दफनाने से पहले उसे नहलाया जाता है। फिर उसके शरीर पर हल्दी का लेप लगाते हैं और उसे सफेद रंग के कपड़े से ढक दिया जाता है। सभी लोग राम नाम का भजन करते हुए उसे दफनाने के लिए बांस की काठी पर ले जाते हैं।
मरने पर नहीं मनाते मातम
हिंदू समाज में किसी की मौत होने पर सूतक लगता है। लोग शुभ काम नहीं करते हैं, लेकिन ये लोग किसी की मौत होने पर मातम नहीं मनाते। शव भी उसी कमरे में रखा जाता है, जहां घर-परिवार के बाकी लोग बैठते हैं। घर में हर दिन की तरह ही खाना पकता है, सब लोग वैसे ही खाना खाते हैं। सारे काम उसी तरह होते हैं, जैसे सामान्य दिनों में किए जाते हैं।
रामचरित मानस सामने रखकर करते हैं शादी, पंडित को नहीं बुलाते
रामनामी पंथ के लोग शादी के लिए किसी पंडित को नहीं बुलाते हैं। लड़के और लड़की पक्ष के लोग जैतखांब ( लकड़ी या सीमेंट का बना स्तंभ ) के सामने खड़े होते हैं। जैतखांब रामनामी समाज का प्रतीक है। जो सफेद रंग से पुता होता है। इस पर सफेद रंग की ध्वजा लगी रहती है।
शादी के लिए जैतखांब के चारों ओर वर-वधु सात बार फेरे लेते हैं। इसके बाद रामचरित मानस पर दोनों पक्ष के लोग कुछ रुपए चढ़ाते हैं। वर-वधु को वैवाहिक दक्षिणा देते हैं। समाज के बड़े लोग उन्हें आशीर्वाद देते हैं। शादी के दौरान वर-वधु के सिर पर राम नाम गुदवाया जाता है।
रामनामी चार प्रकार के होते हैं, सिर्फ वानप्रस्थी सामान्य जीवन जीते हैं
रामनामी चार प्रकार के होते हैं। ब्रह्मचारी, त्यागी, वानप्रस्थी और संन्यासी रामनामी। ब्रह्मचारी रामनामी ताउम्र शादी नहीं करते हैं। त्यागी वे होते हैं जो शादी करते हैं, साथ रहते हैं, लेकिन फिजिकल रिलेशन नहीं बनाते हैं। त्यागी महिलाएं सिंदूर, बिंदी का भी त्याग कर देती हैं और उनकी जगह राम नाम लिखवाती हैं। चूड़ी, मंगलसूत्र और जेवर उतारकर राम नाम लिखे जेवर पहनती हैं। वहीं वानप्रस्थी शादी करते हैं। बच्चा भी पैदा करते हैं। इनकी लाइफ आम लोगों की तरह होती है। जबकि संन्यासी तप करने जंगलों में चले जाते हैं।
देश में 1.5 लाख रामनामी, छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा
इनका इतिहास बताता है कि पहले रामनामी समाज के लोगों को ऊंची जाति के लोग मंदिरों में जाने नहीं देते थे। इन्हें अछूत मानते थे। इसी के विरोध स्वरूप 1890 में आज के छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा के एक दलित युवक ने अपने पूरे शरीर पर ही राम-राम लिखवा लिया। उसको देखकर दूसरे लोग भी अपने शरीर पर राम नाम लिखवाने लगे। धीरे-धीरे यह परंपरा बन गई।
रामनामी परंपरा को मानने वाले दलित कम्युनिटी से आते हैं। पूरे देश में इस समय करीब 1.5 लाख रामनामी हैं। छत्तीसगढ़ में इनकी आबादी सबसे ज्यादा है। हालांकि अब इनकी संख्या घट रही है। नई पीड़ी के युवा शरीर पर राम नाम लिखवाने से परहेज कर रहे हैं। उनका तर्क है, ऐसा करने से बड़े शहरों में नौकरी नहीं मिलती है।