AYODHYA. अयोध्या में श्रीराम मंदिर के गर्भगृह में स्थापित होने वाली रामलला की दो मूर्तियां फाइनल हो गई हैं। इनमें से एक गर्भगृह में स्थापित की जाएगी, जबकि दूसरी मूर्ति मंदिर परिसर में कहीं स्थापित होगी। हालांकि शुक्रवार तक गर्भगृह में स्थापित होने वाली रामलला की प्रतिमा पर अंतिम फैसला नहीं हो पाया था। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सभी सदस्यों ने तीन मूर्तियों पर अपना मत लिखित रूप से महासचिव चंपत राय को दे दिया है। इसके बाद अब इस पर आाखिरी फैसला अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास और चंपत राय ने लिया है और दो मूर्तियां पर मुहर लगा दी है। इनमें से एक मूर्ति को प्राण प्रतिष्ठा के लिए चुना गया है। पीएम नरेंद्र मोदी 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान मौजूद रहेंगे।
रामसेवकपुरम में ट्रस्ट सदस्यों ने देखी रामलला की मूर्तियां
इससे पहले मंदिर ट्रस्ट की बैठक का शुक्रवार को दूसरा दिन था। सुबह शुरू हुई बैठक दोपहर 1 बजे तक मंदिर परिसर में चली। ट्रस्ट के कुल 15 सदस्यों में से 10 सदस्य मौके पर मौजूद रहे। बाकी, ट्रस्ट अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास, के. पराशरण समेत 5 सदस्य ऑनलाइन जुड़े। ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष गोविंद देवगिरी ने बताया, ‘मूर्ति के चयन का काम पूरा नहीं हुआ है। सबने अपना-अपना मत लिखित तौर पर दे दिया है।’ बैठक के दौरान सभी सदस्य मंदिर परिसर से 3 किलोमीटर दूर रामसेवकपुरम गए। वहां 3 मूर्तिकारों की बनाई गई मूर्तियों को मेज पर रखा गया। करीब आधे घंटे तक सभी सदस्यों ने मूर्तियों को बारीकी से देखा।
रामलला की तीन मूर्तियों में से चुनी गईं दो मूर्तियां
इससे पहले बुधवार (27 दिसंबर) को ट्रस्ट के सचिव चंपत राय ने कहा था, भगवान राम की 51 इंच ऊंची मूर्ति के तीन डिजाइनों में से एक चुनी जाएगी। जिस प्रतिमा में दिव्यता होगी और चेहरे पर बालक जैसा भाव होगा, उसका चयन किया जाएगा। हालांकि शनिवार सुबह दो मूर्तियों का चयन कर लिया गया। इनमें से एक मूर्ति मंदिर के गर्भगृह में स्थापित की जाएगी और दूसरी मंदिर परिसर में कहीं।
कर्नाटक के दो और राजस्थान के एक पत्थर से मूर्तियां तैयार
गर्भगृह में रामलला बाल स्वरूप में विराजेंगे। इसके लिए रामलला की 3 मूर्तियां बनकर तैयार की गई हैं। कर्नाटक के दो और राजस्थान के एक पत्थर से कुल तीन मूर्तियां बनाई गई हैं। कर्नाटक के पत्थर की मूर्तियां श्याम रंग की हैं, जबकि राजस्थान की श्वेत संगमरमर की है। कर्नाटक के मूर्तिकार डॉ. गणेश भट्ट, जयपुर के सत्यनारायण पांडे और कर्नाटक के ही अरुण योगीराज ने ये मूर्तियां तैयार की हैं।