AYODHYA. शंकराचार्य होने का दावा करने वाले अविमुक्कतेश्वरानंद सरस्वती और शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती के बीच पदवी को लेकर लम्बे समय से विवाद चल रहा है। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। अब दोनों राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के मुहुर्त और नई मूर्ति की स्थापना को लेकर आमने-सामने हैं। इसी संदर्भ में वासुदेवानंद सरस्वती ने एक अखबार से बातचीत में अविमुक्कतेश्वरानंद के सवालों के दो टूक जवाब दिए। इससे तमाम लोगों के मन में फैल रही भ्रांतियां भी काफी हद तक दूर हुई होंगी।
यहां बता दें अविमुक्तेश्वरानंद खुद को उत्तराखंड की ज्योतिषपीठ का शंकराचार्य बताते हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनके पट्टाभिषेक पर रोक लगाई हुई है। दोनों के बीच पदवी को लेकर लम्बे समय से विवाद चल रहा है।
अविमुक्तेश्वरानंद को राम मंदिर ट्रस्ट की तरफ से न्योता नहीं दिया गया है, जबकि ट्रस्ट ने न्योता ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य होने का दावा करने वाले जगद्गुरू शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती को भेजा है।
अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा है कि 22 जनवरी को राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का कोई मुहूर्त ही नहीं है। साथ ही अधूरे मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा हो ही नहीं सकती। इन्हीं कुछ सवालों के जवाब जानने के लिए वासुदेवानंद सरस्वती से बात के अंश-
अविमुक्तेश्वरानंद कह रहे हैं कि 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का मुहूर्त गलत है?
वासुदेवानंद: वे विद्वान हैं, कुछ भी कह सकते हैं। राम जी अपने घर में प्रवेश कर रहे हैं। ये उनका घर है, भवन है, महल है। ऐसा होता है कि लोग घर में प्रवेश कर जाते हैं और बाद में उसे बनवाते रहते हैं। घर पूरा हो जाए, तभी प्रवेश किया जाएगा, ऐसा तो कहीं नहीं लिखा।
जहां तक मुहूर्त की बात है तो उस दिन का मुहूर्त भी ठीक है। राम का जन्म अभिजित मुहूर्त में हुआ था। 22 जनवरी को भी वही मुहूर्त है। उस दिन सर्वार्थसिद्धि योग और अमृतसिद्ध योग भी है। राम अपने जन्म के मुहूर्त पर ही घर में प्रवेश कर रहे हैं। सिर्फ बयान देने के लिए तो कुछ भी बोला जा सकता है। काशी के विश्व पंचांग में देखें, सब दिखेगा।
अविमुक्तेश्वरानंद जब शंकराचार्य ही नहीं तो कैसे उस पदवी के हवाले बोल रहे ?
वासुदेवानंद: मैं कहता हूं कि वे कुछ भी नहीं हैं। वे बस विवाद खड़ा करना जानते हैं। ये मेरे क्षेत्र का विषय है। ज्योतिषपीठ का शंकराचार्य मैं हूं। आपके सामने बैठा हूं। और कह रहा हूं कि मुहूर्त बिल्कुल ठीक है।
आप खुद को ज्योतिषपीठ का शंकराचार्य बताते हैं, जबकि अविमुक्तेश्वरानंद ये सारे बयान इसी पदवी के साथ दे रहे हैं?
वासुदेवानंद: अविमुक्तेश्वरानंद ही नहीं उनके गुरु स्वरूपानंद सरस्वती का भी इस पीठ से कोई संबंध नहीं था। उनके गुरु भी कोर्ट केस लड़ते हुए मरे, अब ये भी लड़ रहे हैं।
क्या स्वरूपानंद सरस्वती शंकराचार्य नहीं थे?
वासुदेवानंद: हां थे, लेकिन द्वारिकापीठ के थे, ज्योतिषपीठ के नहीं। वे बनना चाहते थे इसीलिए कोर्ट कचहरी करते-करते मर गए।
अविमुक्तेश्वरानंद कह रहे हैं कि स्वरूपानंद सरस्वती ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था?
वासुदेवानंद: ये गलत है, स्वरूपानंद सरस्वती ने किसी को उत्तराधिकारी चुना ही नहीं था। वे खुद इस पीठ के शंकराचार्य नहीं थे, तो उत्तराधिकारी कैसे चुन लेंगे। हां, वे बनना चाहते थे और अविमुक्तेश्वरानंद उनके शिष्य हैं, तो उनकी लड़ाई आगे बढ़ा रहे हैं।
आपने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, उसके बाद अविमुक्तेश्वरानंद के पट्टाभिषेक पर रोक लगी?
वासुदेवानंद: हां, सुप्रीम कोर्ट ने इनके पट्टाभिषेक पर रोक लगा दी थी। अब सोचिए, जब अभिषेक नहीं हुआ तो खुद को किस आधार पर शंकराचार्य कह रहे हैं।
आपने कहा, अविमुक्तेश्वरानंद ब्राह्मण और संन्यासी भी नहीं हैं?
वासुदेवानंद: मैं ज्यादा बोलकर नए विवाद को हवा नहीं देना चाहता, लेकिन उनसे पूछिए कि वो कौन से ब्राह्मण हैं। ये तो वही बताएंगे।
अविमुक्तेश्वरानंद का दावा है कि बाकी के शंकराचार्य भी मुहूर्त के सही न होने के कारण रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा में नहीं आ रहे?
वासुदेवानंद: ऐसा नहीं है। वैसे भी राम की स्थापना जहां हो रही है, मैं उस क्षेत्र के शंकराचार्य हूं। इसलिए शामिल हो रहा हूं। इसमें सबके आने की जरूरत नहीं है। किसी भी शंकराचार्य ने वो नहीं कहा, जो अविमुक्तेश्वरानंद कह रहे हैं।
आप तो उत्तराखंड में शंकराचार्य हैं। फिर अयोध्या आपका क्षेत्र कैसे हुआ?
वासुदेवानंद: ये यूपी, उत्तराखंड का मसला नहीं है। मैं जिस पीठ का शंकराचार्य हूं, वो उत्तरानायम है। यानी उत्तर भारत के सभी इलाके हमारी पीठ के तहत आते हैं। इसी लिहाज से अयोध्या हमारी पीठ में आता है।
आप खुद को शंकराचार्य बताते हैं। आपके गुरु भी शंकराचार्य रहे होंगे। आपके गुरु कौन थे?
वासुदेवानंद: हां, मेरे गुरु ने ही मुझे उत्तराधिकारी घोषित किया था। शांतानंद गिरी सरस्वती जी महाराज उनका नाम है। वे और स्वरूपानंद सरस्वती गुरुभाई थे।
आपके गुरुजी ने आपको उत्तराधिकारी घोषित किया, तो फिर विवाद कहां से खड़ा हुआ?
वासुदेवानंद: उस वक्त भी विवाद खड़ा किया गया था। इनका काम ही विवाद खड़ा करना है। इनके स्वभाव में विवाद खड़ा करना है। कुछ नहीं मिला नया, तो अब राम मंदिर ही सही।
आपका पट्टाभिषेक हुआ था?
वासुदेवानंद: हां, मेरे गुरु ने किया था। इनके गुरु ने तो कुछ किया नहीं। वे तो खुद जीवन भर कोर्ट-कचहरी करते रहे।
अविमुक्तेश्वरानंद पूछ रहे हैं कि रामलला की जो मूर्ति प्रकट हुई, कई साल टेंट में रही, जिसने धूल-धूप सब सहा। क्या उसकी जगह नई मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा गलत नहीं है?
वासुदेवानंद: पुरानी मूर्ति मंदिर में ही रहेगी। गर्भगृह में ही रहेगी। उसकी रोज पूजा-अर्चना होगी। मंदिर बड़ा है इसलिए दूर से दर्शन के लिए मूर्ति भी तो बड़ी चाहिए होगी न।
34 साल पुराना है शंकराचार्य पदवी का विवाद
8 अप्रैल 1989, में ज्योतिषपीठ के वरिष्ठ संत बोधश्रम के निधन के बाद स्वरूपानंद सरस्वती ने खुद को उनका उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। वहीं, 15 अप्रैल 1989 में ज्योतिष पीठ के वरिष्ठ संत शांतानंद जी ने वासुदेवानंद सरस्वती जी को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।
अब एक ही पीठ के दो शंकराचार्य हो गए। विवाद चलता रहा और 11 सितंबर, 2022 को संत स्वरूपानंद सरस्वती का निधन हो गया। उसके बाद अविमुक्तेश्वारानंद ने अगले दिन खुद को शंकराचार्य घोषित कर दिया। 16 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने अविमुक्तेश्वरानंद के पट्टाभिषेक और छत्र-चंवर के इस्तेमाल पर रोक लगा दी।
वासुदेवानंद राम मंदिर ट्रस्ट के सदस्य
वासुदेवानंद सरस्वती राम मंदिर ट्रस्ट के 15 सदस्यों में शामिल हैं। ट्रस्ट में देश के सम्मानित संतों और कुछ अधिकारियों को शामिल किया गया है। इसलिए यह पदवी बेहद महत्वपूर्ण है।
अविमुक्तेश्वरानंद ने मोदी और योगी की खिलाफत की
अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का विवादों से पुराना नाता है। अविमुक्तेश्वरानंद ने 2019 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपना कैंडिडेट खड़ा किया था। कैंडिडेट का नाम भगवान दास पाठक था। हालांकि उनका नामंकन रद्द हो गया। इसके खिलाफ इन्होंने धरना भी दिया था। इसके बाद योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया, तो इन्होंने बयान दिया कि कोई योगी सीएम या पीएम नहीं बन सकता। वह पहले से एक पद पर आसीन होता है, फिर एक साथ दूसरे पद पर कैसे बैठ सकता है।
9 मंदिरों में देव स्थापना पहले, शिखर बाद में बने
अधूरे बने मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के सवालों पर प्राण प्रतिष्ठा का मुहूर्त निकालने वाले गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ ने ने पत्र लिखकर बताया कि बिना शिखर के ही मंदिर में भगवान की प्राण प्रतिष्ठा की जा सकती है। यह पूरी तरह से शास्त्र सम्मत है।
उन्होंने ये भी बताया है कि देश के 9 मंदिरों में देव स्थापना पहले की गई थी, इसके बाद शिखर बनाया गया। ज्योतिर्लिंग और चार धाम में आने वाले रामेश्वरम मंदिर में शिवलिंग की पहले प्रतिष्ठा की गई। इसके 277 साल बाद 78 फीट ऊंचा शिखर बना।
इन 9 मंदिरों में शिखर बनने से पहले प्राण-प्रतिष्ठा हुई
रामेश्वरम मंदिर: 12 ज्योर्तिलिंग और चार धामों में शामिल रामेश्वरम मंदिर 1173 ईसवी में बना। शिवलिंग की प्रतिष्ठा के 277 साल बाद मंदिर में 78 फीट ऊंचा शिखर बनाया गया। इसे सेतुपति ने बनवाया था। आज भी मंदिर के शिखर का काम लंबे समय से रुका हुआ है।
सोमनाथ: गुजरात के सोमनाथ मंदिर में ज्योतिर्लिंग की प्रतिष्ठा के 14 साल बाद मंदिर का शिखर तैयार हुआ। तब इसका शिखर पूजन किया गया। 11 मई 1951 को शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा हुई। भारत के तब राष्ट्रपति रहे राजेंद्र प्रसाद ने शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा की। 1956 में शिखर का निर्माण हुआ। 3 मई, 1965 को महाराजा जाम साहब श्री के हाथों शिखर पर कलश स्थापित किया गया।
श्री लक्ष्मी नृसिंह मंदिर : शिवमोगा के पास श्री लक्ष्मी नृसिंह मंदिर में काफी लंबे समय तक शिखर नहीं बना था। अब शिखर बनकर तैयार हुआ है। यहां भी प्राण प्रतिष्ठा पहले की गई थी।
मुरुदेश्वर मंदिर: कर्नाटक के मुरुदेश्वर मंदिर में भगवान शिव की प्राण प्रतिष्ठा पहले की गई थी। 237 फीट ऊंचा शिखर 2008 में बनकर तैयार हुआ। ये मंदिर द्वापर युग का माना जाता है, यानी वेद व्यास के काल में शिखर रहित मंदिरों में भगवान की प्राण प्रतिष्ठा होती रही है।
दत्तात्रेय मंदिर: नासिक में भगवान दत्तात्रेय का 550 साल पुराना मंदिर है। भगवान दत्तात्रेय और गुरु गोरखनाथ की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के बाद यहां शिखर पूजन हुआ।
गोकर्ण क्षेत्र: गोकर्ण क्षेत्र के प्रसिद्ध गणेश मंदिर का शिखर अब तक नहीं बना है। इस मंदिर को दक्षिण की काशी कहा जाता है। इसमें प्राण प्रतिष्ठा गुप्त काल के बाद 500 ईसवी के आसपास हुई थी।
पद्मनाभ स्वामी मंदिर: केरल का महापद्मनाभ स्वामी मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कलयुग के पहले दिन, यानी 5 हजार साल पहले हुई थी। ट्रावनकोर के राजा मार्तंड ने इसका शिखर 1733 में बनवाया।
विनायक मंदिर: धारवाड़ के सिद्धि विनायक मंदिर में अब भी कलश स्थापना नहीं हो पाई है। भगवान विनायक की प्राण प्रतिष्ठा यहां पहले ही कर दी गई थी।
बैजनाथ मंदिर: बाबा बैजनाथ मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से 9वां ज्योतिर्लिंग है। शिखर पर त्रिशूल की जगह पंचशूल लगाया गया है। बाबा बैजनाथ धाम में भी मंदिर निर्माण का कुछ काम अधूरा है। वहां पर शिखर का काम पूरा नहीं हुआ है।